Bhimrao Ambedkar: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने कांग्रेस पार्टी पर बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) का अपनाम करने का आरोप लगाया. साथ ही कहा कि कांग्रेस पार्टी ने ही आंबेडकर को दो बार चुनावों में हराया. आंबेडकर के मुद्दे पर गृह मंत्री अमित शाह ने भी कांग्रेस को जमकर घेरा. हालांकि, शाह के बयान के एक हिस्से को सोशल मीडिया पर उछालकर कांग्रेस ने पलटवार करते हुए उन पर आंबेडकर का अपमान करने के आरोप लगाए.
इस बीच पीएम मोदी ने सिलसिलेवार ट्वीट करते हुए कांग्रेस पर हमला बोला और कहा कि कांग्रेस ने एक नहीं, दो बार आंबेडकर को चुनाव में हराया. उन्हें भारत रत्न देने से इनकार लिया. दरअसल, भाजपा लगातार कहती रही है कि कांग्रेस ने आंबेडकर को चुनाव में हराया और इसी बहाने वह नेहरू पर भी सवाल उठाती रही है.
1952 में भारत की आजादी के चार साल बाद पहला लोकसभा चुनाव हुआ था. आंबेडकर तत्कालीन बॉम्बे प्रांत सेअपनी पार्टी शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे. उनका निर्वाचन क्षेत्र उत्तरी मुंबई था, जो दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र था. इस चुनाव में कांग्रेस ने आंबेडकर के खिलाफ नारायण काजरोलकर को उतारा था. काजरोलकर का दूध का कारोबार था और वे आंबेडकर के पीए भी रह चुके थे.
कांग्रेस उम्मीदवार के हाथों मिली हार
चूंकि, आंबेडकर दलितों के सबसे बड़े चेहरे थे, इसलिए चुनाव में उनकी दावेदारी मजबूत थी. लेकिन इसके नतीजों ने पूरे देश को हैरान कर दिया. काजरोलकर ने लोकसभा चुनाव में आंबेडकर को करीब 15000 वोटों से हरा दिया. इसके बाद से ही आरोप लगते रहे हैं कि कांग्रेस ने जानबूझकर बाबा साहब को हराया था.
उस वक्त मुंबई कांग्रेस के प्रमुख एस के पाटिल करते थे, जो समाजवादियों के कट्टर विरोधी माने जाते थे. पाटिल की मुंबई का राजनीति में अच्छी-खासी पकड़ थी. चुनाव से पहले पाटिल ने कहा कि आंबेडकर अगर किसी आरक्षित सीट से चुनाव लड़ते हैं तो पार्टी उनके खिलाफ किसी को नहीं उतारेगी. लेकिन काजरोलकर के चुनाव लड़ने और जीतने के बाद पाटिल के दावों पर सवाल उठे और कहा जाने लगा कि आंबेडकर के खिलाफ यह साजिश थी.
आचार्य अत्रे की मराठी भाषा की किताब ‘कन्हेचें पाणी’ के मुताबिक, “लोकसभा चुनाव में आंबेडकर की पार्टी और समाजवादियों का गठंबधन हुआ. यह अशोक मेहता की सोशलिस्ट पार्टी थी. इस गठबंधन से पाटिल नाराज हो गए और उन्होंने आंबेडकर के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया.”
एक धड़ा यह भी कहता है कि कम्युनिस्टों की वजह से आंबेडकर चुनाव हारे थे, क्योंकि कम्युनिस्टों ने आंबेडकर के खिलाफ वोट करने की अपील की थी और काजरोलकर को इस वजह से फायदा मिल गया. वहीं इस हार के बाद बाबा साहेब सदमे में चले गए थे और उनकी तबीयत तक खराब हो गई थी.
दूसरी बार भी हारे उपचुनाव
हालांकि, दूसरी बार आंबेडकर भंडारा उपचुनाव में उतरे लेकिन यहां भी कांग्रेस उम्मीदवार के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. तब वह राज्यसभा में थे लेकिन उनकी इच्छा लोकसभा के जरिए सदन में पहुंचने की थी. इस चुनाव में बाबा साहेब ने नेहरू की विदेश नीति पर जमकर सवाल उठाए थे. लेकिन जनता को वह अपने पक्ष में करने में कामयाब नहीं हो सके. इसके बाद वह कभी चुनाव नहीं लड़ सके, क्योंकि 1956 में उनका निधन हो गया.
शाह ने संसद में कांग्रेस को घेरा
भाजपा इन चुनावों में आंबेडकर की हार के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताती रही है. साथ ही कांग्रेस पर आंबेडकर का अपमान करने का आरोप भी लगाती रही है. राज्यसभा में अमित शाह ने संविधान पर चर्चा के दौरान नेहरू कैबिनेट से आंबेडकर के इस्तीफे का मुद्दा भी उठाया था. अमित शाह ने कहा था, “अभी एक फ़ैशन हो गया है आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर. इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.”
उन्होंने आगे कहा, “हमें तो आनंद है कि आंबेडकर का नाम लेते हैं. आंबेडकर का नाम अभी सौ बार ज्यादा लो. परंतु आंबेडकर जी के प्रति आपका भाव क्या है ये मैं बताता हूं. आंबेडकर जी को देश कि पहली कैबिनेट से इस्तीफा क्यों दे दिया. उन्होंने कई बार कहा कि वह अनुसूचित जाति और जनजातियों के साथ होने वाले व्यवहार से संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने तब सरकार की विदेश नीति से भी असहमति जताई थी, वह अनुच्छेद 370 से भी सहमत नहीं थे. आंबेडकर को आश्वासन दिया गया था, जो पूरा नहीं हुआ और तब उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था.” लेकिन कांग्रेस ने शाह के ‘आंबेडकर…आंबेडकर…आंबेडकर…’ वाले बयान पर उनको घेरना शुरु कर दिया और शाह से माफी की मांग करने लगे.