गणतंत्र दिवस परेड में जहां मुख्यतः विदेशी हथियारों से लैस सेना की टुकड़ी निकलती थी, आज उसकी जगह स्वदेशी हथियाराें ने ले रखी है. क्या भारत आज उस स्थिति में है कि स्वयं की रक्षा जरूरतों के लिए पराए मुल्क की तरफ हाथ न बढ़ाना पड़े? क्या भारत हमेशा से हाथियार आयात करने वाला देश था, जो बीते कुछ साल में निर्यात का रुख कर चुका है?
“वित्तीय वर्ष 2022-2023 में भारत ने कुल ‘रू 15,920 करोड़’ के हथियार का निर्यात किया” भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने X प्लेटफार्म पर जानकारी दी थी.
ये भारतीय इतिहास में पहली बार हुआ है, ये आंकड़ा पिछले वित्त वर्ष 2021-2022 के तुलना में लगभग तीन हजार करोड़ की वृद्धि को दर्शाता है, वहीं यदि साल 2016-2017 से तुलना करें तो यह लगभग दस गुना ज्यादा है.
भारत की इस उपलब्धि में प्राइवेट सेक्टर का योगदान सबसे अधिक देखा गया है. भारतीय रक्षा मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज में बताया कि अब भारत 85 से अधिक देश में रक्षा संबंधित सामग्री का निर्यात कर रहा है.
वहीं 2023 में हुए भारत के ‘ऐरो इंडिया’ में कुल 114 देश ने हिस्सा लिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐरो इंडिया कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा, “भारत आज डेढ़ बिलियन डॉलर का निर्यात कर रहा है और हमारा लक्ष्य है कि वित्त वर्ष 2024–2025 तक इस निर्यात को बढ़ा के पांच बिलियन डॉलर तक ले जायेंगे.”
अगर भारत के रक्षा बजट की बात करें तो 01 फरवरी 2023 को भारतीय रक्षा मंत्रालय को 5.95 लाख करोड़ का बजट आवंटित हुआ था जो कुल बजट 45.03 लाख करोड़ का 13.18 प्रतिशत है.
ये आंकड़े इशारा करते हैं कि अपने रक्षा जरूरतों के लिए भारत अब रूस एवं अमेरिका जैसे बड़े हथियार के निर्यातकों से न सिर्फ अपनी निर्भरता कम कर रहा बल्कि खुद एक प्रतिस्पर्धी के रुप में उभर रहा है. अर्थ साफ है कि दुनिया का सबसे ज्यादा हथियार आयात करने वाला देश अब दुनिया के दस मुख्य निर्यातकों के सूची में अपना नाम दर्ज कराने में अग्रसर है.
इतिहास
भारत हमेशा से हथियार का आयात करने वाला नहीं था, भारतीय तलवार पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा चुकी थी, ये हल्की और लचीली होती थी, मध्य काल में भारत में तोप भी बनाए गए और गन पाउडर का भी उत्पादन हुआ.
पीएम मोदी ने डिफेंस एक्स्पो 2020 में कहा था, “भारत सैकड़ों वर्षों से हाथियार उत्पादन में आगे रहा है लेकिन आजादी के बाद से भारत की छवि दुनिया के सबसे बड़े हाथियार निर्यातक के रूप में विकसित हुई.”
आज़ादी के बाद पहली बड़ी जंग 1962 में हुई और भारत की शिकस्त की समीक्षा में संसाधनों की कमी प्रमुखता से सामने आई. 1962 के जंग के दौरान उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिका की तरफ मदद का हांथ बढ़ाया और अमेरिका द्वारा किसी भी प्रकार से सैन्य सामग्री एवं हथियारों के ना मिलने से भारत ने अपने कई वीर जवानों का बलिदान दे दिया.
बाद में हुई 1965, 1972, 1999 की जंग में भारत विजेता तो रहा लेकिन तब तक भारत मुख्यतः रूस, इजरायल, फ्रांस जैसे देशों पर हाथियार के लिए निर्भर हो चुका था.
दुनियाभर में होने वाले हथियारों की खरीद पर नजर रखने वाली संस्था Stockholm International Peace Research Institute (SIPRI) के आंकड़ों की मानें तो भारत अपनी जरूरत के पचास प्रतिशत से अधिक हाथियार रूस से खरीदता रहा है, हालांकि 2016 के बाद इन आंकड़ों में बदलाव आया है और मुख्य कारण घरेलू निर्माण को बताया जा रहा है, जिसमें ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भूमिका एहम है.
साथ ही ‘डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर’ और Foreign Direct investment (FDI) की सीमा को 74 प्रतिशत तक बढ़ाना, 2002 से चली आ रही योजना Defence Procurement Procedure (DPP) नया नाम ‘Defence Acquisition Procedure’ (DAP) के तहत विदेशी कंपनी को भारत में उत्पादन के लिए बुलाना एवं हाथियार निर्माण करने के साझा हुए तकनीक से बड़े पैमाने पर उत्पादन का काम सौंपा गया.
भारतीय डिफेंस एक्सपोर्ट
भारत और रूस के साझा प्रयास से बना ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल हों या भारत का आकाश डिफेंस सिस्टम अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी मांग निरंतर बढ़ रही है, वहीं फिलीपींस ने भारत में निर्मित ब्रह्मोस मिसाइल को तैनात भी कर रखा है, भारतीय तेजस फाइटर जेट नाइजीरिया, फिलीपींस, अर्जेंटीना और इजिप्ट की पसंद बनकर उभरा है.
वही भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार Brahmos, Tejas के अलावा Dornier-228, Artillery Guns, PINAKA Rocket & launchers, Radars, Simulators, Armoured Vehicles का निर्यात भारत सफलतापूर्वक कर रहा है।
शेयर बाजार में हलचल
भारतीय रक्षा निर्यात ने न सिर्फ सरकार को बल्कि स्टॉक मार्केट में निवेश करने वालों को भी बेहतरीन रिटर्न दिए हैं, जिनमें प्रमुख रुप से Hindustan Aeronautics Ltd, Mazagon Dock Shipbuilders, Bharat Electronics Ltd, Bharat Dynamics Ltd जैसे लिस्टेड कंपनीज ने खूब सुर्ख़ियां बटोरीं.
भारतीय से ही क्यों खरीदें हाथियार
भारत के हथियार निर्यात में आगे बढ़ने का मुख्य कारण क्वालिटी और दाम है, जहां अमेरिकी या यूरोपियन हथियार महंगे आते हैं, वहीं चीनी हथियार के टिकाऊ होने पर ही सवाल खड़ा है. ऐसे में भारतीय हथियार ना सिर्फ तुलनात्मक रूप से सस्ते मिलते बल्कि इनकी मजबूती का लोहा आर्मेनिया-अज़रबैजान युद्ध में आर्मेनिया की तरफ़ से इस्तेमाल के दौरान प्रमाणिक भी हो चुका है.
बात करें हथियार उत्पादन की तो भारत में आने वाले समय में अधिकतम हथियार उत्पादन और निर्यात की संभावना दिखाई देती है, जिसमें प्रमुख योगदान भारत के साथ साझा उत्पाद के लिए अमेरिका, इजरायल, फ्रांस की अहम भूमिका होने वाली है.
देखा जाए तो सस्ते और टिकाऊ हथियार की भरपाई पारंपरिक रूप से रूस करता आया है, लेकिन रूस-युक्रेन युद्ध के कारण यह बाज़ार खाली पड़ गया था जिसकी भरपाई आज रूस का पुराना मित्र भारत कर रहा है.
भारत के संबंध रूस एवं अमेरिका दोनों से अच्छे होने के कारण भारत को निर्यात में सहूलियत मिलती दिखाई पड़ती है. वहीं चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए पश्चिमी देश एक मजबूत भारत चाहते हैं, जो चीन के आक्रामक रवैए का डटकर सामना कर सके.
हालांकि, अभी भी भारत अंतर्राष्ट्रीय निर्यात का केवल 0.2 प्रतिशत हिस्सा अपने नाम कर पाया है और विश्व निर्यात में 23वें पायदान पर है. वहीं आज भी भारत के रक्षा निर्यात को देखा जाए तो इस सूची में फ्रांस, अमेरिकी, इजरायल और रूस के नाम प्रमुखता से दिखाई पड़ते हैं.