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36 घंटे और 450 साल पुराने शासन का अंत…भारतीय सेना ने गोवा से पुर्तगालियों को कैसे खदेड़ा, पढ़ें दिलचस्प कहानी

Goa Liberation Day

जब गोवा से पुर्तगालियों को सेना ने भगाया...

Goa Liberation Day: कहानी की शुरुआत 1498 से होती है, जब पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा भारत पहुंचा. उसका उद्देश्य था भारत के समुद्री रास्तों पर कब्जा करना और वहां से मसाले व अन्य व्यापारिक चीजें लाना. वास्को डी गामा के साथ आए पुर्तगाली व्यापारियों ने भारत में अपने कदम जमाए और धीरे-धीरे भारत के कई हिस्सों में पुर्तगालियों का दबदबा बढ़ने लगा.

खूबसूरत समंदर किनारे बसा गोवा पुर्तगालियों के लिए स्वर्ग जैसा था. 1510 में पुर्तगालियों ने गोवा पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया और इसे अपना प्रमुख व्यापारिक और सैन्य ठिकाना बना लिया. गोवा, दमन, दीव और नागर हवेली पुर्तगालियों के आखिरी उपनिवेश बन गए, जिन पर उनका शासन 450 सालों तक चलता रहा. लेकिन यह कहानी जितनी लंबी और स्थिर लगती है, उतनी स्थिर नहीं थी, क्योंकि भारत में एक दिन बदलाव की बयार उठने वाली थी.

आजादी के बाद भी गोवा पर पुर्तगालियों का क़ब्ज़ा

15 अगस्त 1947 को जब भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की, तो यह सबके लिए एक नई शुरुआत थी. लोग खुश थे कि अब उनका देश स्वतंत्र हो गया है, लेकिन एक बुरी खबर भी थी, गोवा अभी भी पुर्तगालियों के अधीन था. भारत के आज़ादी के दिन सभी जगह ख़ुशियां मनाई जा रही थीं, लेकिन गोवा के लोग ग़म में थे क्योंकि वे भी स्वतंत्रता की उम्मीद में थे. यह दुखद था कि जबकि पूरा भारत स्वतंत्र हो चुका था, गोवा में पुर्तगाली शासन कायम था. भारत सरकार ने कई प्रयास किए, लेकिन पुर्तगालियों ने गोवा को छोड़ने से साफ इंकार कर दिया.

भारत सरकार का एक्शन और पुर्तगालियों का जिद

भारत ने पहली बार 1950 में पुर्तगालियों से बात करने की कोशिश की. पहले उन्होंने गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, ताकि पुर्तगाल दबाव में आए और गोवा को छोड़ दे. लेकिन पुर्तगालियों के लिए यह कोई समस्या नहीं थी. वे अडिग थे, जैसे किसी ने कहा हो कि हम गोवा नहीं छोड़ेंगे! भारत सरकार ने कई बार बातचीत की कोशिश की, लेकिन हर बार पुर्तगाल ने इनकार किया.

इस स्थिति में भारतीय जनता के अंदर आक्रोश बढ़ने लगा. अब यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह भारत के सम्मान और अखंडता का सवाल बन गया था. यही वो समय था, जब भारत ने अपना रुख सख्त किया और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह तय किया कि अब हम गोवा को स्वतंत्र कराने के लिए सैन्य कार्रवाई करेंगे.

पुर्तगालियों की एक बड़ी गलती

इससे पहले, भारत के सामने एक बड़ी चुनौती थी – पुर्तगाल NATO का सदस्य था. इसका मतलब था कि यदि भारत ने पुर्तगाल पर हमला किया, तो NATO के सदस्य देश भारत के खिलाफ खड़े हो सकते थे. लेकिन, जैसा कि कहते हैं न, “हर घटना के पीछे एक कारण छिपा होता है”, वही कुछ ऐसा हुआ.

नवंबर 1961 में पुर्तगाली सैनिकों ने भारतीय मछुआरों पर गोलीबारी की और एक मछुआरे की हत्या कर दी. यह घटना आग में घी का काम करती है. देश की जनता अब पूरी तरह से इस मुद्दे पर एकजुट हो चुकी थी. यह घटना एक मोड़ साबित हुई. भारतीय सरकार ने इसे एक मौका माना और तय किया कि अब सैन्य कार्रवाई की जाएगी.

ऑपरेशन विजय

17 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ नामक सैन्य अभियान की शुरुआत की. इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना, वायु सेना और नौसेना के लगभग 30,000 सैनिक गोवा में तैनात किए गए. भारतीय सैनिक पूरी तैयारी के साथ गोवा की ओर बढ़े. भारतीय सैनिकों का आत्मविश्वास उस समय इस कदर ऊंचा था कि उन्हें यह समझ में आ गया था कि इस बार गोवा को पुर्तगालियों के चंगुल से मुक्त कराना ही होगा.

इस दौरान पुर्तगालियों ने अपनी पूरी कोशिश की, वे गोवा में भारतीय सेना के रास्ते में रुकावट डालने के लिए वास्को के पास पुल उड़ा दिए. लेकिन भारतीय वायु सेना ने बमबारी कर उनके सारे ठिकाने तबाह कर दिए. और जैसे ही भारतीय सेना ने आगे बढ़ना शुरू किया, पुर्तगालियों का आत्मविश्वास टूटने लगा.

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पुर्तगालियों ने टेके घुटने

19 दिसंबर 1961 को पुर्तगाली गवर्नर मेन्यू वासलो डे सिल्वा ने समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर किए. यह पल भारतीय इतिहास का ऐतिहासिक पल था. भारत ने सिर्फ 36 घंटे में 450 साल पुराने पुर्तगाली शासन को समाप्त कर दिया. गोवा अब भारतीय संघ का हिस्सा बन चुका था.

गोवा की मुक्ति एक ऐतिहासिक दिन था, जो केवल भारतीय सेना की शक्ति और साहस को दर्शाता नहीं था, बल्कि यह भी दिखाता था कि जब भी जरूरत पड़े, भारत अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है.

गोवा को कब मिला राज्य का दर्जा

गोवा की मुक्ति के बाद, इसे भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया. 30 मई 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और यह भारत का 25वां राज्य बन गया. गोवा को भारतीय संघ का हिस्सा बनाना एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक कदम के रूप में देखा गया. गोवा की मुक्ति न केवल भारतीय लोगों के लिए गौरव की बात थी, बल्कि यह भी दिखाता था कि भारत को कभी भी उसके लक्ष्य से नहीं हटा सकते.

भारतीय सेना की रणनीति

ऑपरेशन विजय में भारतीय सेना की रणनीति, बहादुरी और समर्पण अद्वितीय था. भारतीय सैनिकों ने कड़ी मेहनत और पूरी योजना के साथ पुर्तगालियों को हराया. वायु सेना ने बमबारी की, नौसेना ने समुद्री मोर्चे पर कार्य किया, और थल सेना ने मैदान में अपनी ताकत दिखाई. भारतीय सेना के इस सामूहिक प्रयास ने पुर्तगालियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.

गोवा की मुक्ति एक असाधारण उदाहरण है कि कैसे एक देश अपनी अखंडता के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है. यह घटना सिर्फ सैन्य विजय का नहीं, बल्कि यह भारतीय भावना, स्वतंत्रता और संकल्प का प्रतीक बन गई. गोवा मुक्ति दिवस हर साल हमें याद दिलाता है कि भारत ने अपनी मेहनत, साहस और रणनीति से 450 साल पुराने विदेशी शासन को समाप्त कर दिया और गोवा को स्वतंत्रता दिलाई.

इस विजय ने यह भी साबित कर दिया कि जब भारतीय सेना और जनता एकजुट होती है, तो कोई भी शक्ति उन्हें रोक नहीं सकती. गोवा मुक्ति दिवस हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है, और यह हमें हमेशा यह याद दिलाता है कि देश की स्वतंत्रता और अखंडता के लिए हमें किसी भी कीमत पर संघर्ष करना चाहिए.

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