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क्या खतरे में है महाविकास अघाड़ी गठबंधन? Rahul Gandhi ने सावरकर पर बयान देकर लिख दी पटकथा!

Rahul Gandhi

कांग्रेस नेता राहुल गांधी

Rahul Gandhi: संसद में संविधान पर बहस के दौरान राहुल गांधी ने वीर सावरकर को लेकर एक बयान दिया, जिसने न सिर्फ सदन में हंगामा मचाया, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी भूचाल ला दिया है. राहुल गांधी ने सावरकर को ‘माफी वीर’ बताते हुए उन पर तीखा हमला किया और कहा कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी. उनका यह बयान राजनीति में कई सवाल खड़े कर रहा है, खासकर महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (MVA) के अंदर के रिश्तों को लेकर.

राहुल गांधी का सावरकर पर बयान क्या था?

लोकसभा में संविधान पर बहस के दौरान, राहुल गांधी ने वीर सावरकर पर तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा कि सावरकर, जिन्होंने मनुस्मृति को अपनाया था, भारतीय संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ थे. उनका कहना था कि सावरकर को भारतीयता का कोई एहसास नहीं था, क्योंकि वे संविधान की बातों के खिलाफ थे. राहुल ने आगे कहा कि सावरकर ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों से माफी मांगी थी और वे एक समझौतावादी नेता थे.

राहुल ने कहा कि उन्होंने एक बार इंदिरा गांधी से सावरकर के बारे में पूछा था, तो इंदिरा गांधी ने कहा था कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी, जबकि अन्य स्वतंत्रता सेनानी जेल गए और संघर्ष करते रहे.

सावरकर की भूमिका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत विवादित रही है. वे एक समय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में प्रसिद्ध थे, लेकिन उनके खिलाफ यह आरोप भी लगते रहे हैं कि उन्होंने अंग्रेजों के साथ समझौता किया और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान माफी मांग ली थी. सावरकर के योगदान को लेकर भारतीय राजनीति में हमेशा दो धाराएं रही हैं. एक तरफ उनकी वीरता को सम्मानित किया जाता है, जबकि दूसरी तरफ उनके ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति समझौते की आलोचना की जाती है.

महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी का संकट

राहुल गांधी के सावरकर पर दिए गए इस बयान का महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरा असर पड़ा है, खासकर महाविकास अघाड़ी (MVA) के भीतर. MVA का गठन 2019 में हुआ था. इसमें शिवसेना (उद्धव गुट), कांग्रेस और एनसीपी शामिल हैं. यह गठबंधन राज्य में शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस के बीच एक संवेदनशील समझौते के तहत हुआ था.

शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत ने सार्वजनिक रूप से सावरकर को “वीर” बताते हुए राहुल गांधी को सावरकर के खिलाफ बयानबाजी से बचने की सलाह दी थी. राउत का मानना है कि सावरकर के खिलाफ बयानबाजी से महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच संबंधों में तनाव आ सकता है. इस कारण, राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से सावरकर पर टिप्पणी करने से परहेज किया था.

लेकिन, राहुल गांधी ने अब सावरकर के मुद्दे पर फिर से बयान दिया है, जो इस गठबंधन को और नाजुक बना सकता है. इस बयान से यह संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच की खाई और गहरी हो सकती है.

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क्या है सावरकर पर चुप्पी तोड़ने का समय?

राहुल गांधी ने 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सावरकर को लेकर कुछ बयान दिए थे, लेकिन उस वक्त उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने सार्वजनिक रूप से विरोध किया था. तब एक समझौता हुआ था कि राहुल इस विषय पर चुप्पी रखेंगे, क्योंकि यह मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति में संवेदनशील था और कांग्रेस के लिए गठबंधन को बचाने की आवश्यकता थी.

लेकिन अब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद राहुल ने सावरकर पर एक और बयान देकर न सिर्फ उस समझौते को तोड़ा है, बल्कि यह भी साफ किया है कि वे सावरकर के विचारों से सहमत नहीं हैं. यह कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच रिश्तों को और बिगाड़ सकता है, खासकर जब महाराष्ट्र में निकट भविष्य में मुंबई नगर निगम चुनाव जैसी महत्वपूर्ण राजनीतिक लड़ाई होनी है.

विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और शिवसेना UBT के रिश्ते

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षानुसार परिणाम नहीं मिला और शिवसेना (उद्धव गुट) ने हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा. उद्धव ठाकरे की पार्टी ने यह आरोप लगाया कि कांग्रेस ने उनके उम्मीदवारों का समर्थन नहीं किया और चुनाव में कई सीटों पर कांग्रेस के नेताओं ने शिवसेना के खिलाफ काम किया. उदाहरण के लिए, सोलापुर दक्षिण सीट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे ने निर्दलीय उम्मीदवार का समर्थन किया, जिससे शिवसेना (उद्धव गुट) के उम्मीदवार को नुकसान हुआ.

इन कारणों से शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस के बीच पहले से ही तनाव था, और राहुल गांधी का सावरकर पर दिया गया बयान इस तनाव को और बढ़ा सकता है.

राहुल गांधी का सावरकर पर बयान महाविकास अघाड़ी के लिए एक नई चुनौती पेश कर सकता है. महाराष्ट्र की राजनीति में यह न केवल कांग्रेस और शिवसेना के बीच संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि उद्धव ठाकरे की पार्टी को चुनावी मैदान में भी इसका असर महसूस हो सकता है. शिवसेना (उद्धव गुट) के लिए यह स्थिति बेहद संवेदनशील हो सकती है, खासकर जब वे अगले चुनावों में हिंदुत्व और मराठा मुद्दों को प्रमुखता से उठाने की योजना बना रहे हैं.

यदि कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) के रिश्तों में और खटास आती है, तो यह महाविकास अघाड़ी के भविष्य के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है. यह महाराष्ट्र की राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दे सकता है और आने वाले समय में नए गठबंधन और राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं.

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