Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी गढ़ मानी जाने वाली सीटों पर अपना आधार मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है. अखिलेश यादव चुनावी रेस में बीजेपी से भी आगे निकल गए हैं. उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया. कई सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान भी कर दिया. अब अखिलेश की नज़र परिवार के लोगों को सदन तक पहुंचाने पर है. अखिलेश पिछली बार की तरह किसी भी हाल में बेइज्जती नहीं करवाना चाहते हैं.
आज़मगढ़, बदायूं, फिरोज़ाबाद, कन्नौज और मैनपुरी सीटों पर दशकों से या तो मुलायम परिवार के सदस्य या फिर पार्टी के कद्दावर नेता चुनाव लड़ते आए हैं. लेकिन 2019 में अखिलेश यादव को इनमें से कई सीटों पर तगड़ा झटका लगा था. इसबार सपा पहले से भी ज्यादा तैयारी के साथ इन सीटों पर धाक जमाने की कोशिश में है. पिछले हफ्ते आज़मगढ़ में एक लोकप्रिय मुस्लिम चेहरे, पूर्व बसपा विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को पार्टी में शामिल करने में कामयाब रही.
आजमगढ़ से गुड्डू जमाली
जमाली के पार्टी में शामिल होने के बाद अखिलेश यादव ने कहा था कि गुड्डू जमाली पार्टी में नई ऊर्जा लाएंगे. यह सिर्फ आज़मगढ़ के लिए नहीं बल्कि पूरे पूर्वी यूपी के लिए एक संकेत है. उन्होंने कहा था कि जमाली के प्रवेश से सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्याक) मुद्दे को बढ़ावा मिलेगा.
बता दें कि अखिलेश ने 2019 के लोकसभा चुनाव में यह सीट जीती थी, लेकिन 2022 के यूपी चुनाव में निर्वाचित होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. बाद में हुए उपचुनाव में उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव 8,679 वोटों के मामूली अंतर से सीट हार गए. जमाली उस समय बसपा के उम्मीदवार थे और उन्होंने अपने दम पर 2.66 लाख वोट हासिल किए थे. इसके अलावा मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से 2019 में जीत दर्ज की थी. डिंपल यादव हार गई थीं और मुलायम के निधन के बाद वे मैनपुरी से उपचुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं.
बदायूं से धर्मेंद्र यादव हार गए थे चुनाव
गौरतलब है कि 2019 के ही लोकसभा चुनाव में बदायूं से अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव भी चुनाव हार गए थे. इस बार अखिलेश नहीं चाहते की परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव हारे और किरकिरी हो. इस बीच अखिलेश यादव और मुस्लिम समुदाय के प्रभुत्व वाली फिरोजाबाद सीट पर अखिलेश के एक और चचेरे भाई अक्षय यादव को मैदान में उतारा गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, फिरोजाबाद में तीन लाख से ज्यादा दलित वोट हैं. सपा का मानना है कि वरिष्ठ दलित नेता और फिरोजाबाद से चार बार के सांसद रामजी लाल सुमन को राज्यसभा के लिए नामांकित करने के बाद पार्टी को लोकसभा चुनाव में समुदाय के वोटों को अपने पक्ष में मजबूत करने में मदद मिलेगी.
सपा महासचिव और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय ने 2014 में फिरोजाबाद सीट जीतकर चुनावी शुरुआत की थी. हालांकि, वह 2019 में निर्वाचन क्षेत्र से 28,781 वोटों से हार गए, जिसका श्रेय तत्कालीन सपा के विद्रोही नेता शिवपाल यादव को दिया गया. तब अखिलेश के चाचा शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था और 91,869 वोट हासिल किए थे. बाद में शिवपाल की सपा में वापसी हो गई.
अजीम भाई से अखिलेश की मुलाकात
अखिलेश यादव इस बार कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते. इसी क्रम में अखिलेश यादव ने 23 फरवरी को पूर्व सपा विधायक अज़ीम भाई के आवास पर गए थे. अजीम भाई पार्टी के टिकट पर 2007, 2012 और 2017 के चुनावों में फिरोजाबाद विधानसभा सीट पर उपविजेता रहे थे. साल 2022 के चुनावों में टिकट नहीं दिए जाने के बाद अजीम ने बगावत कर दी थी और सपा छोड़कर बसपा में शामिल हो गए थे. उनकी पत्नी साज़िया हसन ने तब बसपा के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ा था और 37,643 वोट हासिल किए थे, जिससे सपा उम्मीदवार सैफुर्रहमान के वोट कटे थे. इस सीट पर बीजेपी के चंद्र सेन जादौन ने 32,955 वोटों से जीत दर्ज की.
बदायूं में सपा ने अपनी रणनीति को नये सिरे से तैयार किया है. उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची में पार्टी ने इस सीट से अखिलेश के एक और चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा. लेकिन 19 फरवरी को पांच बार के सांसद सलीम शेरवानी के सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा देने के बाद अखिलेश ने धर्मेंद्र की जगह शिवपाल यादव को बदायूं से मैदान में उतार दिया.