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लोकसभा चुनाव से पहले BJP का ‘मास्टर प्लान!’ समझिए कर्पूरी ठाकुर-आडवाणी को भारत रत्न देने के पीछे की क्रोनोलॉजी

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पीएम नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी (फोटो- सोशल मीडिया)

Lok Sabha Election 2024: इस साल दो हस्तियों को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने का ऐलान किया गया है. केंद्र सरकार ने बीते महीने बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया था. अब शनिवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद इन दोनों फैसलों की चर्चा राजनीतिक तौर पर जमकर हुई है.

दरअसल, राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी हमेशा से उठाती रही है. अब बीते 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के बाद पार्टी अपने कार्यक्रम ‘अयोध्या दर्शन अभियान’ को धार दे रही है. इस अभियान के तहत पार्टी ने हर दिन 50 हजार लोगों को राम मंदिर में रामलला के दर्शन कराने का लक्ष्य रखा है. यानी संदेश साफ है कि हिंदुओं के लिए आस्था से जुड़े इस मुद्दे को लोगों से जोड़ने रखने का प्रयास किया जाएगा. इसके जरिए पार्टी मार्च तक 2.5 करोड़ परिवारों को दर्शन कराएगी.

यशवंत सिन्हा के बदले सुर

इसी दौरान बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला हुआ तो पीएम मोदी और बीजेपी के धूर विरोधियों ने भी रास आया और उन्होंने इस फैसले की सराहना की. सीएम नीतीश कुमार ने भी ‘अंतरात्मा’ की आवाज सुनी और एनडीए में फिर वापस आ गए. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई, पूर्व वित्त मंत्री और टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा ने भी कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने बीते 10 सालों में मोदी सरकार का इसे सबसे अच्छा फैसला बता दिया.

यानी देखा जाए तो विरोधियों को भी मोदी सरकार के फैसले रास आए हैं. इसके पीछे की वजह ये है कि कर्पूरी ठाकुर ही वो नेता थे जिन्होंने उत्तर भारत में 1978 में ओबीसी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग दोनों को आरक्षण देने की पेशकश की थी. बाद में कर्पूरी ठाकुर जनसंघ के समर्थन से उपमुख्यमंत्री बने और फिर बिहार के मुख्यमंत्री भी बने. ऐसे में देखें तो फैसलों से स्पष्ट है कि हिंदुत्व के साथ ही बीजेपी फिर से सामाजिक न्याय को अपना चुनावी हथियार बनाना चाहती है.

सोची समझी रणनीति से आगे बढ़ रही बीजेपी

लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का फैसला भी आगामी चुनाव लिहाज से इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है. दरअसल, लालकृष्ण आडवाणी ही वो नेता थे जिन्होंने राम मंदिर के लिए रथयात्रा निकाली थी. इस रथयात्रा की शुरूआत सोमनाथ मंदिर से हुई थी, जो कि एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था. इस रथयात्रा के बाद देखा जाए तो बीजेपी ने पहली बार लोकसभा चुनाव में सौ से ज्यादा सीटें जीती थी.

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1990 में हुई इस रथयात्रा ने बीजेपी को न केवल कांग्रेस के खिलाफ एक मजबूत विपक्षी के तौर पर स्थापित किया बल्कि दूसरी ओर 90 के दशक में ही सत्ता के केंद्र तक भी पहुंचा दिया. पहले यूपी में कल्याण सिंह के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी और फिर केंद्र में भी बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार बनी. बीजेपी ने अपने इस फैसले के जरिए फिर एक बार जता दिया है कि एक ओर हिंदुत्व तो दूसरी ओर सामाजिक न्याय का संदेश लेकर आगामी चुनाव में उतरेगी.

बीजेपी के फैसलों से एक संदेश और जा रहा है कि पार्टी एक हाथ में मंडल तो दूसरे हाथ में कमंडल लेकर दोनों पक्षों के साथ आगे बढ़ेगी. राम मंदिर के उद्घाटन के बाद कर्पूरी ठाकुर और लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का फैसला पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा नजर आ रहा है. हालांकि पार्टी ने भावनाओं से जुड़े मुद्दे को अपने से जोड़ने का पूरा प्रयास किया है. चौधरी चरण सिंह की जयंती पर छूट्टी के ऐलान को इसी से जोड़ के पश्चिमी यूपी में देखा गया है.

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