Maratha Reservation: महाराष्ट्र विधानसभा में मंगलवार को मराठाओं को 10% आरक्षण देने का बिल पास हुआ. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे इस बिल को आगे विधान परिषद में पेश करेंगे, जिसके बाद यह कानून बनेगा. लेकिन इन सब के बीच मराठा समाज के आरक्षण का इतिहास अपने आप में अनोखा है. मराठा समाज के लोग खुद को कुनबी समाज का बताते हैं. कुनबी समाज के अधिकतर लोग कृषि से जुड़े हैं, जिन्हें महाराष्ट्र के अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की कैटेगरी में रखा गया है. मराठा समाज में आरक्षण की नींव तब पड़ी जब 26 जुलाई 1902 को छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी करते हुए ये कहा था कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमे 50 % आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समाज को दिया जाना चाहिए.
अतीत के पन्नों को पलटें तो ये पता चलता है कि साल 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान मराठा समाज को 10 साल तक आरक्षण मिला था. इसके साथ ही साल 1982 में 22 मार्च को अन्नासाहेब पाटिल ने मुम्बई में मराठाओं के लिए आरक्षण सहित 11 अन्य मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था.
ये भी पढ़ें: मराठाओं को शिंदे सरकार की बड़ी सौगात, नौकरियों में 10% आरक्षण का बिल महाराष्ट्र विधानसभा में पास
मराठा आंदोलन का इतिहास, 1997 से 2024 तक
मराठा आंदोलन के लिए सबसे बड़ा आंदोलन साल 1997 में मराठा महासंघ और मराठा सेवासंघ ने शुरू किया. साल 2008 में पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार और विलासराव देशमुख ने मराठा आरक्षण की मांग को समर्थन दिया था. साल 2014 में पृथ्वीराज चव्हाण सरकार ने प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में मराठाओं को 16 % आरक्षण की स्वीकृति दी. इसके बाद साल 27 जून 2019 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठाओं को आरक्षण देने वाले कानून की संवैधानिक समय सीमा पर रोक लगाते हुए इसे 16 % से घटा कर 12 % करने का सुझाव दिया, जिसके बाद 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा रिज़र्वेशन को असंवैधानिक घोषित कर दिया. साल 2023 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठाओं को आरक्षण देने का वादा किया.