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क्या CM बनने के लिए शाह के सामने गिड़गिड़ाए थे शिंदे? ‘सामना’ में दावे से महाराष्ट्र की राजनीति में सनसनी

अमित शाह और शिंदे

अमित शाह और शिंदे

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष और मुख्यमंत्री पद को लेकर जारी खींचतान का एक नया अध्याय सामने आया है. वर्तमान कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पहले मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे. उन्होंने अपनी कुर्सी को बचाए रखने के लिए हर मुमकिन प्रयास किया. हालांकि, उनकी सारी कोशिशें बेकार गईं, और 5 दिसंबर 2024 यानी आज बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. इस बीच उद्धव गुट की शिवसेना के मुखपत्र सामना में एकनाथ शिंदे को लेकर बड़ा दावा किया गया है. सामना में छपे एक लेख में कहा गया है कि एकनाथ शिंदे कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे.

सामना में लिखा है, ” यह सब तब शुरू हुआ जब शिंदे ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की. 28 नवंबर 2024 को दिल्ली में हुई इस बैठक में शिंदे ने गिड़गिड़ाते हुए भाजपा नेतृत्व से कम से कम 6 महीने के लिए मुख्यमंत्री बनने की अनुमति देने की गुहार लगाई. उनका यह प्रस्ताव भाजपा नेतृत्व ने नकार दिया.”

गिड़गिड़ाते रहे शिंदे, लेकिन बेरहमी से ठुकराई गई मांग!

सामना में आगे लिखा है, “शिंदे ने बैठक के दौरान अपने पुराने वादे को याद दिलाया, जिसमें कहा गया था कि अगर महायुति को बहुमत मिलता है तो वह खुद मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे. शिंदे का तर्क था कि उनके नेतृत्व में ही पार्टी ने बहुमत हासिल किया है, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखा जाए. लेकिन भाजपा ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शिंदे की मांग को पूरी तरह से ठुकरा दिया. शाह ने कहा, “अगर हम छह महीने के लिए मुख्यमंत्री बनाएंगे, तो यह एक गलत मिसाल कायम करेगा, और प्रशासन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.”

बीजेपी ने स्पष्ट किया कि उनके लिए यह संभव नहीं था कि वे शिंदे को छह महीने के लिए मुख्यमंत्री पद पर बनाए रखें. भाजपा का कहना था कि वे किसी भी तरह से इस निर्णय को लागू करने की स्थिति में नहीं थे, क्योंकि यह पार्टी के हित में नहीं होता. भाजपा ने यह भी कहा कि यदि शिंदे के पास स्पष्ट बहुमत होता, तो क्या वे भी सीएम पद छोड़ने की स्थिति में होते?

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शिंदे की परेशानियां और मनमुटाव

सामना में दावा किया गया है कि केंद्र और राज्य में भाजपा नेतृत्व के साथ शिंदे के मनमुटाव की स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी. चुनाव के बाद महायुति को सीएम पद के लिए अपने उम्मीदवार पर सहमति बनाने में 10 दिन का वक्त लग गया. इस दौरान शिंदे बार-बार अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भाजपा नेताओं से मुलाकात करते रहे. बैठक के बाद शिंदे ने महापौर और अन्य पदों पर अपनी पसंद के नेताओं को नामित करने के लिए भाजपा से दबाव बनाना शुरू किया.

इसी कड़ी में उन्होंने देवेंद्र फडणवीस के साथ मुलाकात की, जहां शिंदे ने यह दावा किया कि उन्हें भाजपा की ओर से पहले किए गए वादों का समर्थन चाहिए था. हालांकि, फडणवीस ने यह स्पष्ट कर दिया कि भाजपा का निर्णय शिंदे के पक्ष में नहीं था. इसके बाद शिंदे के गुट के नेताओं ने शिंदे के खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्हें ठाणे और फिर अपने पैतृक गांव भेज दिया. लेकिन फिर भी शिंदे की कोशिशें एक बार फिर निष्फल हो गईं, और फडणवीस को ही मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई.

फडणवीस का आगमन

सामना में लिखा है, “अंततः, शिंदे की हर कोशिश के बावजूद भाजपा ने अपनी रणनीति को स्पष्ट किया और देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे कर दिया. शिंदे का मुख्यमंत्री बनने का सपना चूर-चूर हो गया. उन्होंने देर रात तक भाजपा के साथ सौदेबाजी की, लेकिन अंत में उन्हें हार माननी पड़ी. अब जबकि फडणवीस मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, शिंदे के लिए यह राजनीतिक पराजय एक सबक साबित होगी.”

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