Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर वैसा ही कुछ हुआ है जो पिछले साल हुआ था. साल और तारीख भले ही बदला हो लेकिन कहानी वैसी ही है. जैसे पिछले साल शिवसेना में फूट पड़ी और उद्धव ठाकरे को पार्टी से ही हाथ धोना पड़ा. ठीक वैसा ही कुछ NCP के साथ हुआ है. दरअसल, आज चुनाव आयोग ने शरद पवार के भतीजे अजित के गुट को ही असली एनसीपी मान लिया है. इस प्रकार शरद पवार से खुद की बनाई पार्टी छिन गई.
जानकारी के मुताबिक, छह महीने से अधिक समय तक चली 10 से अधिक सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने एनसीपी में विवाद का निपटारा किया है. चुनाव आयोग के फैसले के मुताबिक, अब एनसीपी का नाम और चुनाव चिह्न ‘घड़ी’ अजित पवार के पास रहेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि अब शरद पवार के पास क्या-क्या ऑप्शन बचे हैं?
शरद पवार गुट के लिए आगे क्या है?
अपनी ही बनाई पार्टी का नाम और निशान छिन जाने के बाद शरद पवार को अब एक महत्वपूर्ण निर्णय का सामना करना पड़ रहा है. चुनाव आयोग ने गुट को एक नई राजनीतिक इकाई बनाने और महाराष्ट्र से राज्यसभा की छह सीटों के लिए आगामी चुनाव के लिए तीन प्राथमिकताएं प्रस्तुत करने का एक बार का विकल्प प्रदान किया है. शरद पवार गुट को अपना चुना हुआ नया नाम बुधवार शाम 4 बजे तक चुनाव आयोग के सामने प्रस्तुत करना होगा.
इसके अलावा शरद पवार आयोग के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं. कहा जा रहा है कि इस फैसले का असर महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर के समक्ष अयोग्य ठहराए गए मामले की सुनवाई पर चल सकता है. इस बीच महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख ने कहा, “यह लोकतंत्र की हत्या है. जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है.चुनाव आयोग ने यह फैसला “ऊपर से दबाव” के तहत दिया. ”
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कैसे पड़ी थी NCP में फूट
बता दें कि एनसीपी के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर यह विवाद तब पैदा हुआ जब अजित पवार विपक्षी खेमे से निकलकर महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ दल में मिल गए. इससे उन्हें फायदा भी हुआ. उनके गुट के 8 नेताओं ने महाराष्ट्र सरकार में मंत्री पद की शपथ ली.बाद में पार्टी में विभाजन की नौबत आ गई. चुनाव आयोग ने पहले पार्टी के दोनों गुटों को पत्र लिखकर विभाजन को स्वीकार किया था और दोनों नेताओं को मतदान निकाय को सौंपे गए दस्तावेजों को एक-दूसरे के साथ साझा करने का भी निर्देश दिया था.
आयोग ने पिछले साल जुलाई में अजित पवार गुट द्वारा दायर याचिका के बाद शरद पवार के नेतृत्व वाले राकांपा समूह को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था. करीब 6 महीने बाद चुनाव आयोग ने अब शरद पवार के हाथ से छीनकर अजित पवार को सौंप दिया है.