BJP President: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद एनडीए की सरकार बन गई है. रविवार को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ ली. इसके अगले दिन यानी की सोमवार को मोदी कैबिनेट की हुई पहली बैठक में मंत्रालयों का बंटवारा भी हो गया. जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है. जेपी नड्डा को कैबिनेट में शामिल होने के बाद से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर चर्चाओं का बाजार गरम है. इस बार भी करीब दर्जन भर लोगों का नाम भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष के लिए चल रहा है.
पार्टी नेता बीएल संतोष, सुनील बंसल, फग्गन सिंह कुलस्ते, केशव प्रसाद मौर्या आदि का नाम अध्यक्ष पद की रेस में है. इन सभी के नाम के साथ कुछ प्लस पॉइंट और कुछ माइनस पॉइंट हैं. पर एक और नाम इस दौड़ में शामिल है वह है बिहार के प्रभारी विनोद तावड़े का. इन्हें उत्तर भारत में कम ही लोग जानते हैं. अगर वर्तमान राजनीतिक जरूरतों, पार्टी के मानदंडों, व्यक्तिगत सफलताओं को पैमाना बनाया जाए तो ऐसा लगता है कि रेस में विनोद तावड़े का नाम सबसे आगे चल रहा है.
मराठा नेता की खोज में बीजेपी
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. लोकसभा चुनावों में एनडीए गठबंधन की जो दुर्गति हुई है वह किसी से छुपी नहीं है. बीजेपी ही नहीं उस सहयोगीकी पार्टियों का प्रदर्शन भी बहुत खराब रहा है. इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि राज्य की जनता विशेषकर मराठा समुदाय की नाराजगी की चलते इतना बड़ा डैमेज हुआ. दरअसल पार्टी शुरू से ही एक मराठा क्षत्रप की खोज में थी. शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने की मजबूरी केवल इसलिए ही हुई थी कि किसी तरह से मराठा वोटों को बांटा जा सके.
कई बार ऐसा भी लगा कि उद्धव ठाकरे खुद एनडीए में आ सकते हैं, पर शायद बात नहीं बनी. अभी भी गाहे-बगाए ऐसी चर्चा चल ही जाती है कि एनडीए के साथ उद्धव ठाकरे आ सकते है. पार्टी को चुनावों के पहले ही शिंदे गुट और अजीत पवार गुट की सफलता में संशय दिख रहा था. और हुआ भी ऐसा. विनोद तावड़े को पार्टी अध्यक्ष बनाकर बीजेपी मराठा जनता को संदेश दे सकती है कि वो मराठों से पार्टी का कोई दुराव नहीं है.
मराठा सुमदाय से आते हैं तावड़े
कहा जाता है कि बीजेपी की राज्य में एक समस्या रही है कि उसे हमेशा मराठा नेतृत्व की आवश्यकता महसूस हुई है. तावड़े के लिए सौभाग्य की बात है कि वह मराठा समुदाय से हैं. पर मराठा होते हुए भी वह मुख्यमंत्री पद की रेस कुछ समय पहले वो हार चुके हैं. पर वो कभी निराश नहीं हुए. सीएम के लिए रेस से बाहर होने पर एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था ओनली राष्ट्र, नो महाराष्ट्र. उनकी चर्चा आज पार्टी के सबसे बड़े पद के लिए हो रही है. तावड़े के राजनीतिक जीवन में इस तरह का उतार-चढ़ाव लगा रहता है.
2019 में बोरीवली से उनका विधायक का टिकट काट दिया गया. पर वो निराश नहीं हुए और धूमकेतु बनकर उभर रहे हैं . पहले पार्टी के महासचिव बने अब अध्यक्ष की रेस में हैं. पिछले साढ़े चार वर्षों में, तावड़े ने पार्टी के शीर्ष नेताओं का जिस तरह भरोसा हासिल किया है और दिल्ली में अपनी मौजूदगी स्थापित की है, उससे यही लगता है कि उनके नाम पर मुहर लग सकती है.