Bihar Election: पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव के परिणाम ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है. इस चुनाव को आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए एक ‘लिटमस टेस्ट’ के रूप में देखा जा रहा था. हालांकि, इस टेस्ट में ‘लालू के लाल’ तेजस्वी यादव फेल साबित हुए हैं. पिता की कर्मभूमि ने उन्हें आईना दिखा दिया है कि इतने से नहीं होगा!
तेजस्वी यादव के दावे को झटका!
तेजस्वी यादव ने खुद को युवाओं का सबसे बड़ा प्रतिनिधि बताया था और आरजेडी को युवाओं की पार्टी कहा था, लेकिन इस चुनाव में उनका दांव पूरी तरह से फेल हो गया. आरजेडी के सभी कैंडिडेट्स को हार का सामना करना पड़ा. इससे पहले, 2022 के छात्र संघ चुनाव में भी आरजेडी के हाथ खाली रहे थे, और अब 2025 में भी वही हालात दोहराए गए हैं.
पटना विश्वविद्यालय में महिला उम्मीदवारों का दबदबा
इस चुनाव में एक और बड़ा बदलाव हुआ. पहली बार पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में एक महिला उम्मीदवार अध्यक्ष बनीं. केंद्रीय पैनल के पांच में से तीन पदों पर लड़कियों ने कब्जा जमाया. यह जीत साबित करती है कि युवाओं के बीच बदलाव और समानता की भावना गहरी हो रही है. खास बात यह कि अध्यक्ष का पद एबीवीपी के खाते में गया, कोषाध्यक्ष और संयुक्त सचिव का पद एनएसयूआई ने जीते, जबकि महासचिव और उपाध्यक्ष का पद निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीता.
आंकड़ों में नज़रिया
अगर हम आंकड़ों की बात करें, तो एबीवीपी की मैथिली मृणालिनी ने अध्यक्ष पद पर 596 मतों से जीत हासिल की. वहीं, आरजेडी की प्रियंका कुमारी को सिर्फ 1047 वोट मिले. उपाध्यक्ष पद पर निर्दलीय धीरज कुमार को 1789 वोट मिले, जबकि आरजेडी के उम्मीदवार को सिर्फ 582 वोट मिले. ये आंकड़े साफ तौर पर दर्शाते हैं कि आरजेडी का युवाओं में प्रभाव कमजोर पड़ा है.
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की बढ़ती ताकत
आरजेडी की हार के बाद, एक और महत्वपूर्ण बात सामने आई, और वह थी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का उदय. भले ही जन सुराज के किसी भी उम्मीदवार को जीत न मिली हो, लेकिन पार्टी ने युवाओं से जबरदस्त समर्थन हासिल किया. इसने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए जन सुराज के हौसले को और भी मजबूत कर दिया है. अगर यही ट्रेंड जारी रहा, तो आगामी विधानसभा चुनाव में जन सुराज को बड़ी चुनौती बनते हुए देखा जा सकता है.
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लालू की कर्मभूमि
पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों का महत्व सिर्फ इसके नतीजों तक ही सीमित नहीं है. इस विश्वविद्यालय से कई बड़े नेता निकले हैं जिनमें लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नाम शामिल हैं. यह विश्वविद्यालय हमेशा से बिहार की राजनीति का गढ़ रहा है, और अब छात्र संघ चुनाव के परिणाम ने यह दिखा दिया कि युवा वर्ग अब पारंपरिक राजनीति से हटकर कुछ नया देखना चाहता है.
तेजस्वी यादव को मिला बड़ा संदेश
तेजस्वी यादव को यह चुनावी परिणाम एक सियासी आईना दिखा गया है. जब वह खुद को युवाओं का सबसे बड़ा समर्थक और प्रतिनिधि कहते हैं, तो अब उन्हें यह समझना होगा कि युवाओं की उम्मीदों को पूरा करने के लिए केवल वादे ही काफी नहीं होते, बल्कि जमीन पर उन वादों को लागू करना भी बेहद ज़रूरी है. बिहार के युवा अब बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं, और तेजस्वी यादव के लिए यह एक चेतावनी हो सकती है कि उन्हें अपनी राजनीति और रणनीति को फिर से परखने की जरूरत है.
पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव ने बिहार की राजनीति में एक बड़ा संदेश दिया है. यह परिणाम यह भी दिखाता है कि युवा मतदाता अब अपने विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं, और जो पारंपरिक दल उन्हें पुरानी राजनीति के बजाय कुछ नया और बेहतर देने का वादा करेंगे, वही उनकी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे. यह नतीजे तेजस्वी यादव और उनके समर्थकों के लिए एक सिखने का मौका हो सकते हैं, जिससे वे आगामी चुनावों में अपनी रणनीति को बेहतर बना सकें.