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राजस्थान के कैंसर अस्पताल में चूहों का शिकार हुई बच्ची, प्रशासन की नाकामी पर बस सफाई के आदेश!

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राजस्थान के सबसे बड़े कैंसर अस्पताल में चूहों का आतंक

Rajasthan: राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी कैंसर अस्पताल (Rajasthan cancer Hospital) में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी है, जिसने न केवल अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं, बल्कि पूरे सिस्टम की लापरवाही को भी उजागर किया है. ब्लड कैंसर से जूझ रही 10 साल की एक बच्ची का पैर का अंगूठा चूहों ने कुतर डाला.

जब परिजनों ने बच्ची के अंगूठे से खून बहते देखा, तो डॉक्टर से संपर्क किया गया, लेकिन इलाज केवल दवा और पट्टी तक सीमित रह गया. अब बच्ची की मौत हो गई है. इस घटना के बाद अस्पताल प्रशासन ने कहा कि चूहे के काटने से बच्ची की मौत नहीं हुई. अब सवाल उठता है कि क्या अस्पताल के अधिकारियों को अपनी ही जिम्मेदारियों का अहसास नहीं है?

अस्पताल प्रशासन की लापरवाही

गुरुवार रात को हुए इस घटना ने न केवल अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल उठाए, बल्कि यह भी साफ कर दिया कि अस्पताल में कितनी गंदगी और लापरवाही फैली हुई है. अस्पताल में चूहों का आना-जाना कोई नई बात नहीं है. अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि मामले की जांच की जाएगी, लेकिन जिस तरह से अस्पताल ने इस घटना को हल्के में लिया, वह गंभीर चिंता का विषय है. बच्ची का पैर चूहे ने कुतर दिया, लेकिन अस्पताल प्रशासन का यह कहना कि इससे मौत नहीं हुई, क्या यह बेजान शब्दों का खेल नहीं है? क्या इस घटना के बाद कोई ठोस कदम उठाया गया?

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क्या सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं सुरक्षा के इंतजाम ?

यह पहली बार नहीं है जब राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में चूहों के हमले की खबरें आईं हैं. पिछले साल जोधपुर के एमडीएम अस्पताल और कोटा के एमबीएस अस्पताल में भी इस तरह के घटनाक्रम हुए थे. चूहे का किसी मरीज का पैर कुतरना या शवों का कुतर लिया जाना यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि अस्पतालों में सफाई और सुरक्षा इंतजामों की स्थिति कितनी खराब है.

प्रशासन की कोई जवाबदेही नहीं!

राजस्थान के स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट के अधीक्षक डॉ. संदीप जसूजा ने मामले की जांच के आदेश तो दिए, लेकिन उन्होंने इसे महज एक दुर्घटना करार दिया. वहीं, सवाई मान सिंह अस्पताल के प्रिंसिपल दीपक महेश्वरी ने घटना को गंभीरता से लिया और पेस्ट कंट्रोल के आदेश दिए. हालांकि, यह सवाल उठता है कि जब अस्पताल में एक साल से पेस्ट कंट्रोल नहीं हुआ था, तो यह लापरवाही क्यों की गई? क्या सरकार और अस्पताल प्रशासन को यह एहसास नहीं होता कि ऐसे मामलों को सिर्फ औपचारिकता के तौर पर निपटाया गया, तो मरीजों का भरोसा पूरी तरह से टूट जाएगा?

आदेशों से सबकुछ ठीक हो जाएगा?

अब, सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लिया है और सफाई के आदेश दे दिए हैं, लेकिन क्या यह सिर्फ तात्कालिक कदम हैं? क्या अस्पतालों में जमीनी स्तर पर सुधार होगा या यह महज एक और ‘बयान’ होगा, जो फिर से समय के साथ भुला दिया जाएगा? जब तक सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेगी, तब तक चूहों के हमले, गंदगी और सुरक्षा की कमी के मामलों में कोई सुधार नहीं होगा.

क्या हम सुरक्षित हैं?

चूहे द्वारा काटे जाने के बाद बच्ची की मौत और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से यह सवाल उठता है कि क्या हमारे सरकारी अस्पताल मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं? क्या यह हमारे लिए एक चेतावनी नहीं है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज की उम्मीद रखने वाले मरीज और उनके परिजन कितनी गंभीर स्थिति में हैं? जब अस्पतालों में गंदगी, चूहे, और अन्य जानवरों का आना-जाना जारी रहेगा, तो यह सवाल हर नागरिक के मन में उठेगा – “क्या हम सुरक्षित हैं?”

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