Ram Mandir: आज़ाद देश भारत में राम मंदिर बनने के सपने, संघर्ष और सच्चाई को जानने और इसके बीच के फासले को समझने के लिए हमें अतीत के पन्नों को पलटना होगा. साल 1964 में विश्व हिन्द परिषद की परिकल्पना और स्थापना की गई. बदले वक्त के साथ साल 1989, 1992 और फिर एक लंबे अंतराल के बाद साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और राम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ. लेकिन इन तारीखों के बीच ऐसे कई ‘नायक’ रहे जिनके संघर्ष की चर्चा आज भी हर कोई करता है, कई लोगों ने अपना बलिदान दिया था.
परमहंस रामचन्द्र दास: ताला नहीं खुला तो मैं आत्मदाह करूंगा…
श्री राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने के लिए यह ‘परमहंस रामचन्द्र दास’ ही थे जिन्होंने कहा था, “अगर श्रीराम मंदिर का ताला 8 मार्च 1986 तक नहीं खुला तो मैं आत्मदाह करूंगा”. उन्होंने घोषणा की थी कि यदि 8 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि तक रामजन्मभूमि पर लगा ताला यदि नहीं खुला तो महाशिवरात्रि के बाद ताला खोलो आंदोलन, ताला तोड़ो में बदल जायेगा”.
महंत नृत्यगोपाल दास ने 12 वर्ष की उम्र में वैराग्य धारण कर लिया था
एक लंबे संघर्ष को जीवित रखने में महंत नृत्यगोपाल दास का अहम योगदान है. आपको बता दें कि नृत्यगोपाल दास की अगुवाई में ही राम मंदिर के लिए पत्थरों की तराशी तेज हुई थी. महंत नृत्यगोपाल दास अयोध्या के सबसे बड़े मंदिर, मणि रास दास की छावनी के प्रमुख होने के साथ राम जन्मभूमि न्यास व श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख हैं.
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गोहत्या के विरुद्ध चलाया था मुहिम: आचार्य धर्मेन्द्र
आचार्य धर्मेन्द्र ने साल 1984 में विश्व हिंदू परिषद की ओर से राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने के लिए जनजागरण यात्राएं निकली थीं. साथ ही आपको बता दे कि सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम जानकी रथ यात्रा में अहम योगदान भी दिया था. वहीं साल 1965 में उन्होंने गोहत्या के विरुद्ध भी मुहिम चलाकर विशाल आंदोलन भी खड़ा किया था.