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कोलकाता- महाराष्ट्र से लेकर उत्तराखंड तक, गिद्ध जैसे नोच रहे दरिंदे, महिलाओं के खिलाफ साल दर साल बढ़ रहे अपराध

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

Rape Case In India: कोलकाता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज में 31 वर्षीय पोस्ट-ग्रेजुएट इंटर्न डॉक्टर के साथ जघन्य बलात्कार और हत्या ने एक बार फिर समाज का ध्यान भारत में महिलाओं की सुरक्षा की ओर आकर्षित किया है. महिला डॉक्टर के साथ 9 अगस्त, 2024 को क्रूरतापूर्वक यौन उत्पीड़न किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई. इसके साथ ही उत्तरखंड के रुद्रपुर का मामला भी सुर्खियों में बना हुआ है. जहां एक नर्स के साथ रेप और हत्या के मामले में रोज धरना प्रदर्शन हो रहे हैं. इस भयावह घटना ने पूरे देश में कई लोगों को प्रभावित किया है, जिससे एक बार फिर से न्याय और कानूनी सुधार की मांग उठी है. खासकर इसलिए क्योंकि कोलकाता को भारत में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित शहरों में से एक माना जाता था. इस भयानक घटना ने भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

NCRB के आंकड़े

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में भारत में महिलाओं के खिलाफ 4,45,000 से अधिक अपराध दर्ज किए गए, जिनमें अकेले यौन उत्पीड़न के 31,000 से अधिक मामले थे. 2018 के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ 3,38,000 अपराध के मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 10 प्रतिशत बलात्कार की घटनाओं से संबंधित थे. NCRB के अनुसार, 2018 में भारत में प्रतिदिन 94 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए. ये संख्या बताती हैं कि भारत में महिलाएं खुद को कितनी असुरक्षित पाती हैं. सबसे दुखद बात यह है कि 25 प्रतिशत बलात्कार पीड़ित बच्चे हैं. एक और बड़ी चिंता की बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ 94 प्रतिशत अपराध पीड़ितों के परिचितों द्वारा किए जाते हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराधों की घटनाओं ने भारत को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देशों में नौवें स्थान पर पहुंचा दिया है.

जब पूरे देश में डॉक्टर कोलकाता की डॉक्टर के क्रूर यौन उत्पीड़न और हत्या में शामिल अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे थे, तब महाराष्ट्र के बदलापुर शहर में चार और पांच साल की दो मासूम लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न किया गया, जो दर्शाता है कि अपराधियों में कानून का कोई डर नहीं है. इतना ही नहीं उत्तराखंड के रुद्रपुर में एक नर्स के साथ भी दरिंदगी की गई. अब परिजनों ने सीबीआई जांच की मांग की है. सरकारी रिपोर्ट कहती है कि बाल शोषण के केवल 12 प्रतिशत मामले ही पुलिस को रिपोर्ट किए जाते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि यौन अपराधों से जुड़े कलंक के कारण माता-पिता मामले दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आते हैं.

महिलाओं के खिलाफ अपराध को रोकने के लिए कानूनों में संशोधन करके अपराधियों से सख्ती से निपटा गया है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. 2022 की रिपोर्ट में 2021 की तुलना में यौन अपराधों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ये सरकारी आंकड़ें कहते हैं. कहीं न कहीं महिलाओं के खिलाफ अपराध में वृद्धि में योगदान देने वालों में से एक समाज की चुप्पी भी है. जब प्रतिदिन बलात्कार की 94 घटनाएं होती हैं और समाज चुप रहता है, तो इससे अपराधियों को बढ़ावा ही मिलता है.

यह भी खेदजनक है कि जब कोई महिला डॉक्टर पीड़ित होती है, तो केवल चिकित्सा समुदाय ही विरोध करता है. जब कोई दलित महिला निशाना बनती है, तो केवल दलित समुदाय ही आवाज उठाता है, और जब कोई मुस्लिम महिला पीड़ित होती हैं, तो मुस्लिम समुदाय ही धीमी आवाज में विरोध करता है. कोई भी अन्य समूह उनमें से किसी के साथ खड़ा नहीं होता है. यह दर्शाता है कि हमने मानवता के खिलाफ गंभीर अपराधों को भी धर्म, जाति और पेशे के आधार पर विभाजित कर दिया है. महत्वपूर्ण बात यह है कि जब भी महिलाओं की गरिमा पर कोई हमला हो, तो समाज के हर वर्ग को सामूहिक रूप से उठ खड़ा होना चाहिए, चाहे पीड़ित की जाति, समुदाय या आस्था कुछ भी हो.

जब पीड़ित समुदाय ही लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन आयोजित करके न्याय की मांग करता है, तो इससे अपराधियों को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि ऐसे विरोध प्रदर्शन कुछ दिनों या कुछ हफ्तों के बाद गायब हो जाते हैं बिना पर्याप्त न्याय मिले या बिल्कुल भी न्याय नहीं मिलता. यह न्याय की मांग के लिए विरोध या आंदोलन को सांप्रदायिक बना देता है. तत्काल आवश्यकता है कि लोग ऐसे अपराधों के खिलाफ सामूहिक रूप से खड़े हों और अपराधियों को एक कड़ा संदेश दें कि पीड़ित की पहचान चाहे जो भी हो, किसी भी तरह का अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

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यौन उत्पीड़न अपराधों के लिए कड़ी सजा की आवश्यकता

कोलकाता की घटना का स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स (NTF) का गठन किया है, जिसमें उसे चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए गए है. विभिन्न सिफारिशों के बीच, एनटीएफ को अस्पतालों के भीतर सुरक्षा बढ़ाने, पुरुष और महिला डॉक्टरों के लिए अलग-अलग शौचालय बनाने, प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से प्रभावी सुरक्षा उपायों को लागू करने, अस्पताल के भीतर सभी क्षेत्रों तक पहुंच को प्रतिबंधित करने, रात के समय परिवहन सुविधाएं प्रदान करने, हर तीन महीने में सुरक्षा प्रोटोकॉल की समीक्षा करने और अस्पताल परिसर में पुलिस की मौजूदगी सुनिश्चित करने के बारे में सुझाव देने का काम सौंपा गया है.

न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने दिसंबर 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड के बाद जघन्य यौन उत्पीड़न के मामलों में शामिल अपराधियों से निपटने के लिए कानून में कई सिफारिशें की थीं. परिणामस्वरूप निर्भया मामले के चार आरोपियों को मार्च 2020 में फांसी पर लटका दिया गया. इसके बाद, बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड की जनता की मांग बढ़ रही थी.

निर्भया कांड के बाद से ही कई राजनीतिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों ने यौन उत्पीड़न के मामलों में कठोर दंड की वकालत शुरू कर दी है. कानून की समझ रखने वाले लोगों की मानें तो ये दंड कठोर लग सकते हैं, लेकिन ये अपराध की रोकथाम और समाज में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बहुत ज़रूरी हैं. कठोर दंड का उद्देश्य अपराधियों में डर की भावना पैदा करके उन्हें रोकने के साधन के रूप में इस्तेमाल करना है, न कि समाज में डर पैदा करना. ये दंड समाज में शांति लाने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. इनका उचित कार्यान्वयन एक मजबूत और सुरक्षित समाज की गारंटी है.

कई सांसदों व विधायकों पर भी लगे हैं आरोप

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा तैयार की गई एक हालिया रिपोर्ट में 16 मौजूदा सांसदों और 135 मौजूदा विधायकों ने अपने चुनावी हलफनामों में कबूल किया है कि उनके खिलाफ महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हैं, जिनमें से कई पर बलात्कार, एसिड अटैक, महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसे गंभीर अपराध के आरोप हैं. यह रिपोर्ट 2019 से 2024 के बीच सभी 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 4,693 मौजूदा सांसदों और विधायकों के हलफनामों की जांच पर आधारित है. जब सांसद खुद ही अपराध में लिप्त हों, तो देश में न्याय और शांति कैसे स्थापित हो सकती है? ऐसी परिस्थितियों में आम नागरिकों को अपने जीवन, संपत्ति और सम्मान की सुरक्षा कैसे मिलेगी?

सत्ता का नशा?

कहा जाता है कि भारतीय समाज के बारे में एक मनोवैज्ञानिक सत्य यह है कि जब किसी व्यक्ति को थोड़ी सी भी सत्ता मिलती है – चाहे वह खाकी वर्दी के रूप में हो या प्रशासन में अधिकार का छोटा सा पद – तो वह इसके नशे में चूर हो जाता है. यह नशा उसे अंधा कर देता है, जिससे वह महिलाओं की इज्जत को रौंदने, घरों को नष्ट करने, कैदियों को मारने, शवों को अपवित्र करने और कानून के रक्षक के बजाय कानून तोड़ने वाले बन जाते हैं. हालांकि, अब आवश्यक है कि सरकार ऐसे दानवों से समाज को छुटकारा दिलाए.

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