पर्यावरण रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन के टॉक्सिक्स लिंक नाम की संस्था ने हाल के ही एक रिसर्च में पाया है कि भारतीय नमक और चीनी ब्रांड्स में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद हैं. संस्थान ने पाया कि चाहे वो छोटे ब्रांड हों या बड़े ब्रांड्स, सभी के प्रोडक्ट्स में खतरनाक मिलावट है. यह रिसर्च अलग-अलग नमक पर किया गया था, जिसमें टेबल, रॉक, समुद्री और स्थानीय कच्चा नमक, साथ ही ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और स्थानीय बाजारों से खरीदी गई विभिन्न प्रकार की चीनी शामिल हैं.
रिसर्च से पता चला कि 0.1 से 5 एमएम वाले कण जैसे कि फाइबर, पेलेट्स, फिल्म्स और फ्रैगमेंट्स के रूप में नमक-चीनी में माइक्रोप्लास्टिक की पहचान की गई. विश्लेषण से नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की अलग-अलग कंसंट्रेशन का पता चला. नमक में, कंसंट्रेशन 6.71 से लेकर 89.15 टुकड़े प्रति किलोग्राम सूखे वजन तक में पाई गई, जिसमें पैकेज्ड आयोडीन युक्त नमक में सबसे ज्यादा कंसंट्रेशन 89.15 टुकड़े प्रति किलोग्राम की पहचान की गई.
माइक्रोप्लास्टिक स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक
ऑर्गेनिक रॉक नमक में सबसे कम केसंट्रेशन 6.70 टुकड़े प्रति किलोग्राम दर्ज की गई. इसके अलावा, चीनी के नमूनों में प्रति किलोग्राम 11.85 से 68.25 टुकड़ों के बीच माइक्रोप्लास्टिक कंसंट्रेशन पाई गई, जबकि गैर-कार्बनिक चीनी के सैंपल्स में यह सबसे ज्यादा दर्ज की गई. बता दें कि माइक्रोप्लास्टिक स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं. यह खाना, पानी और हवा के जरिए शरीर में प्रवेश करता है. मानव अंगों जैसे फेफड़े और हृदय, और यहां तक कि स्तन के दूध और भ्रूण के प्लेसेंटल टिशूज में भी माइक्रोप्लास्टिक पाए जाने के सबूत मिले हैं.
बड़े स्तर पर रिसर्च की जरूरत
टॉक्सिक्स लिंक के एसोसिएट डायरेक्टर, सतीश सिन्हा ने बताया कि स्वास्थ्य पर इसका कितना गंभीर असर हो सकता है, इसके लिए बड़े स्तर पर रिसर्च की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के उलट रिपोर्ट में यह बताया गया है कि औसत भारतीय हर रोज लगभग 10.98 ग्राम नमक और लगभग 10 चम्मच चीनी का सेवन करता है, और ऐसे में शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के जाने की चिंता बढ़ जाती है.
भारत में नमक-चीनी का ज्यादा इस्तेमाल
कई स्टडी रिपोर्ट बताती है कि औसत भारतीय तय मानक से बहुत ज्यादा नमक और चीनी का उपभोग करते हैं. कुछ रिपोर्ट के मुताबिक और भारतीय एक दिन में 10.98 ग्राम नमक और करीब 10 चम्मच चीनी खा लेता है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन या WHO के मानकों से बहुत अधिक है. इसी वजह से भारतीयों को तरह-तरह की बीमारियां घेर रही हैं. डायबिटीज के मामले में तो भारतीय कुछ ज्यादा ही आगे निकल रहे हैं.