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“ये भारत की एकता के लिए…”, पांचजन्य में RSS ने जाति व्यवस्था को ठहराया उचित

मोहन भागवत

मोहन भागवत

Panchjanya: हाल ही में संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की जाति पर भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर की टिप्पणी से विवाद शुरू हो गया था. हालांकि, अब आरएसएस से जुड़े पांचजन्य साप्ताहिक के ताजा अंक में जाति व्यवस्था को उचित ठहराते हुए इसे एकता का कारक बताया गया है. पांचजन्य में लिखा है, “जाति व्यवस्था एक ऐसी जंजीर है जो भारत के विभिन्न वर्गों को उनके पेशे और परंपरा के अनुसार वर्गीकृत करके एक साथ रखती है. औद्योगिक क्रांति के बाद, पूंजीपतियों ने जाति व्यवस्था को भारत के रक्षक के रूप में देखा.”

इसमें तर्क दिया गया है कि जाति व्यवस्था हमेशा आक्रमणकारियों के निशाने पर रही है. मुगलों ने तलवार की ताकत से और मिशनरियों ने सेवा और सुधार की आड़ में इसे निशाना बनाया. जाति के रूप में भारतीय समाज ने एक साधारण बात समझी. अपनी जाति के साथ विश्वासघात करना राष्ट्र के साथ विश्वासघात है. मिशनरियों ने भारत के इस एकीकृत समीकरण को मुगलों से बेहतर समझा: यदि भारत और उसके स्वाभिमान को तोड़ना है, तो पहले जाति व्यवस्था के एकीकृत कारक को बाधा या जंजीर कहकर तोड़ो.”

जाति व्यवस्था को उचित ठहराना

बता दें कि जाति पर आरएसएस का यह रुख पहली बार देखने को नहीं मिला है. आरएसएस लगातार यह समझाने का पूरा प्रयास कर रहा है कि वह दलित वर्गों के लिए आरक्षण के खिलाफ नहीं है. पिछले साल नागपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि अगर निचली जातियों को 2,000 वर्षों से झेलना पड़ रहा भेदभाव दूर करने के लिए आरक्षण को अगले 200 वर्षों तक जारी रखना पड़े, तो वह इसका समर्थन करेंगे.

संपादकीय में कहा गया है, “भारत के उद्योगों को नष्ट करने के अलावा, आक्रमणकारियों ने भारत की पहचान को बदलने के लिए धर्मांतरण पर ध्यान केंद्रित किया. जब जाति समूह झुके नहीं, तो उन्हें अपमानित किया गया. ये वे लोग थे जिन्होंने एक गौरवशाली समुदाय को अपने सिर पर मानव मल ढोने के लिए मजबूर किया. भारत में इससे पहले ऐसी परंपरा का कोई रिकॉर्ड नहीं है.”

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संघ के निशाने पर कांग्रेस

पांचजन्य में तर्क दिया गया है कि मैनचेस्टर की मिलें बंगाल के बुनकरों द्वारा उत्पादित उत्पादों की तरह गुणवत्ता वाले उत्पाद नहीं बना सकतीं, जिन्होंने जाति समूह में पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित कौशल में महारत हासिल की थी. पांजजन्य ने कहा, “भारत की पीढ़ी दर पीढ़ी प्रतिभा को देखकर जो आंखें दुखती हैं, वही हिंदू धर्म की विविधता, परंपराओं और रीति-रिवाजों को नष्ट करने का सपना देखती हैं.”

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए संपादकीय में कहा गया है, “हिंदू जीवन, जिसमें गरिमा, नैतिकता, जिम्मेदारी और सांप्रदायिक भाईचारा शामिल है, जाति के इर्द-गिर्द घूमता है. यह कुछ ऐसा है जिसे व्यक्ति-केंद्रित मिशनरी समझ नहीं पाए. अगर मिशनरियों ने जाति को अपने धर्मांतरण कार्यक्रम में बाधा के रूप में देखा, तो कांग्रेस इसे हिंदू एकता में दरार के रूप में देखती है. अंग्रेजों की तर्ज पर वह जाति के आधार पर लोकसभा सीटों को बांटना चाहती है और देश में विभाजन को बढ़ाना चाहती है. यही कारण है कि वह जाति जनगणना चाहती है.”

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