दिल्ली की प्यास बुझाने वाला तालाब, अब सत्ता और आंदोलन का गवाह…रामलीला मैदान की अनकही कहानी
कहानी रामलीला मैदान की
Ram Leela Maidan: दिल्ली का सबसे चर्चित और ऐतिहासिक स्थल,रामलीला मैदान, सिर्फ एक मैदान नहीं है. ये वो जगह है जहां समय-समय पर बदलती सियासत की तस्वीरें उकेरी गई हैं. अगर कहें कि दिल्ली की सत्ता का दिल यही है, तो शायद ये गलत नहीं होगा! हर बड़ा आंदोलन, हर ऐतिहासिक बदलाव और हर राजनीतिक उथल-पुथल का गवाह रहा है ये मैदान.
कभी यह तालाब हुआ करता था, जहां दिल्लीवाले अपनी प्यास बुझाते थे, और आज यही मैदान राजनीतिक और धार्मिक ताकतों का सेंटर बन चुका है. इस मैदान के हर एक कोने में एक कहानी छुपी है, जो केवल दिल्ली ही नहीं, पूरे देश को प्रभावित करती रही है. तो क्या है वो कहानी, जो इस मैदान ने खुद में समेट रखी है? चलिए, विस्तार से बताते हैं, जहां से सत्ता की दिशा और देश के आंदोलनों की दिशा तय हुई.
तालाब से मैदान तक की कहानी
आज जिस रामलीला मैदान को हम जानते हैं, वह एक समय था जब दिल्ली के इंद्रप्रस्थ गांव में एक बड़ा सा तालाब हुआ करता था. दिल्लीवाले अपनी प्यास इसी तालाब से बुझाते थे. लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, इस तालाब को पाटकर समतल कर दिया गया और यह जगह कृषि कार्यों के लिए इस्तेमाल होने लगी.
1850 में जब मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर ने यहां रामलीला का मंचन करवाया, तो इसी मैदान से रामलीला की शुरुआत हुई. यह वह समय था जब धार्मिक आयोजनों के लिए यह मैदान मशहूर हुआ. धीरे-धीरे इस मैदान का नाम रामलीला मैदान पड़ा और यहीं से राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की कहानी भी लिखी गई.
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ब्रिटिश राज में संघर्ष
अब बात करते हैं उस समय की जब ब्रिटिश राज में भी इस मैदान ने स्वतंत्रता संग्राम की गवाहियां दीं. पंडित नेहरू, महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे बड़े नेता इसी मैदान से देशवासियों से आज़ादी की अपील करते थे. वही मैदान, जहां लोग धर्म की बातों के लिए एकत्र होते थे, वहां अब आज़ादी के जंग की आवाज़ें उठने लगीं.
इसी मैदान से अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ उठाई गई. चाहे महात्मा गांधी का आंदोलन हो या पंडित नेहरू का भाषण, इस मैदान ने हर इतिहास को अपनी आंखों से देखा. और जब विभाजन के समय पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को दिल्ली में ठहराया गया, तो वह भी यहीं पर ठहरे थे.
बीजेपी और रामलीला मैदान का कनेक्शन
अब आप सोच रहे होंगे कि यह मैदान बीजेपी से क्यों जुड़ा है? खैर, ये मैदान बीजेपी के लिए काफी अहम रहा है. 1952 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने यहां जम्मू और कश्मीर के मुद्दे पर सत्याग्रह किया था. वह इसी मैदान से आवाज़ उठा रहे थे. बीजेपी के आदर्श पुरुषों में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम बेहद सम्मान से लिया जाता है और यहीं से इस पार्टी का राजनीतिक संघर्ष भी शुरू हुआ.
1963 में लता मंगेशकर ने इस मैदान पर देशभक्ति गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया, जिससे पूरे देश में एक नया जोश भर गया. फिर 1965 में लाल बहादुर शास्त्री ने यहां ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया. यह नारा देशभर में गूंज उठा और इसने किसानों और जवानों के बीच एक नई एकता का निर्माण किया.
आंदोलन, परिवर्तन और राजनीति
अब इस मैदान का एक और पहलू है, जो इसे और भी ऐतिहासिक बनाता है. वह है आंदोलन. 1975 में जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने पटना के बाहर संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका, तो वह भी रामलीला मैदान से था. वही मैदान, जहां जनसेवा और सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई गई. 1977 में इसी मैदान से जनता पार्टी की नींव रखी गई, जिसमें मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं का अहम योगदान था.
फिर 2011 में जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे ने अनशन किया, तो वह भी इस मैदान पर हुआ. यह आंदोलन देशभर में फैला और उसने लोगों को सशक्त किया. इसके अलावा, 2013 में जब अरविंद केजरीवाल ने पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो यह भी रामलीला मैदान पर ही हुआ.
अब नया इतिहास रचने के लिए तैयार है रामलीला मैदान
अब 2025 में एक और ऐतिहासिक पल आने वाला है! 27 साल बाद बीजेपी दिल्ली की सत्ता में लौटी है और 20 फरवरी को रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण समारोह होने वाला है. यह केवल बीजेपी के लिए नहीं, बल्कि दिल्लीवासियों के लिए एक नया इतिहास होगा. एक ऐसा इतिहास, जहां रामलीला मैदान सिर्फ धार्मिक आयोजन का स्थल नहीं, बल्कि सत्ता के बदलाव का प्रतीक बन जाएगा.
सिर्फ एक मैदान नहीं रामलीला मैदान
यार, अब आपको समझ में आ ही गया होगा कि रामलीला मैदान सिर्फ एक मैदान नहीं है, ये दिल्ली के इतिहास और राजनीति का दिल है. यह वो जगह है, जहां से आवाज़ उठी, जहां बदलाव की लहर चली, और जहां से सत्ता की राह बनी. अब, अगली बार जब आप इस मैदान से गुजरें, तो यह समझिए कि इस जमीन पर खड़े होकर आपने न सिर्फ दिल्ली, बल्कि देश के इतिहास को देखा है.