Batenge Toh Katenge: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हालिया बयान “बंटेंगे तो कटेंगे” इन दिनों सियासी चर्चा का प्रमुख विषय बना हुआ है. इस नारे को लेकर बीजेपी और संघ परिवार पूरी तरह से एकजुट नजर आ रहे हैं, जबकि विपक्ष इसका विरोध कर रहा है. मुख्यमंत्री योगी ने यह बयान सबसे पहले तीन महीने पहले आगरा में बांग्लादेश के संदर्भ में दिया था, जहां उन्होंने कहा था कि एक मजबूत राष्ट्र तभी बन सकता है जब लोग एकजुट हों और धर्मनिष्ठता बनाए रखें. “बंटेंगे तो कटेंगे” का नारा अब उत्तर प्रदेश से बाहर भी गूंज रहा है, और यह न सिर्फ यूपी बल्कि महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों में भी प्रमुख मुद्दा बन गया है.
बीजेपी और संघ का समर्थन
योगी के इस बयान को बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का पूरा समर्थन प्राप्त है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी अपनी रैलियों में इस नारे का बार-बार जिक्र कर रहे हैं. विजयादशमी के अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू समाज की एकता की बात की और योगी के बयान को सही ठहराया. RSS के सरकार्यवाहक दत्तात्रेय होसबाले ने भी इस नारे का समर्थन करते हुए कहा कि हिंदू एकता का उद्देश्य लोक कल्याण के लिए है. उनका कहना था कि हिंदू समाज के जाति और विचारधारा के आधार पर विभाजन को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, जो राष्ट्रीय हित के खिलाफ है.
सियासी रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी ने “बंटेंगे तो कटेंगे” के नारे के जरिए हिंदू समाज के विभिन्न जातियों को एकजुट करने की कोशिश की है. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को महसूस हुआ कि मुस्लिम वोटों में ध्रुवीकरण तो हो गया था, लेकिन हिंदू वोटों में समानता नहीं आ पाई थी. बीजेपी अब इस नारे के जरिए जातिवाद को तोड़कर हिंदू समाज को एकजुट करने की रणनीति पर काम कर रही है.
विपक्ष का विरोध
विपक्षी दलों ने योगी के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस नारे को भाजपा और RSS की विभाजनकारी राजनीति करार दिया. उन्होंने योगी आदित्यनाथ पर हमला बोलते हुए कहा कि एक साधु होकर “बंटेंगे तो कटेंगे” जैसी बातें करना गलत है. इसी तरह, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी इस नारे का विरोध करते हुए इसे जातिवाद के आधार पर एकजुटता की बजाय समाज को तोड़ने की साजिश बताया. उन्होंने कहा कि “दलित-पिछड़े-अल्पसंख्यक मिलकर जीतेंगे”.
असदुद्दीन ओवैसी ने भी योगी के बयान को मुस्लिम विरोधी बताते हुए कहा कि जो लोग मुस्लिमों के घरों पर बुलडोजर चलवाते हैं, वे समाज को कैसे जोड़ सकते हैं. आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद संजय सिंह ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि उसे हिंदू वोटों की चिंता है, ना कि समाज के कल्याण की.
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बीजेपी के सहयोगी दलों का रुख
महाराष्ट्र और बिहार में बीजेपी के सहयोगी दलों ने योगी के बयान से दूरी बनाई है. महाराष्ट्र में अजित पवार और एकनाथ शिंदे ने साफ तौर पर कहा कि राज्य में इस तरह की सांप्रदायिक राजनीति की कोई जगह नहीं है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के लोग छत्रपति शाहू महाराज, ज्योतिबा फुले और बाबासाहेब आंबेडकर की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का पालन करते हैं, और ऐसे बयान यहां स्वीकार नहीं किए जाएंगे. बिहार में भी जेडीयू ने योगी के बयान को नकारते हुए कहा कि उनकी पार्टी किसी भी नारे को बढ़ावा नहीं दे सकती जो समाज को बांटने का काम करे.
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राजनीतिक विश्लेषकों की राय
विश्लेषकों के अनुसार, बीजेपी का उद्देश्य हिंदू समाज में एकता लाकर चुनावी लाभ हासिल करना है. राज्यवार चुनावों में जातीय राजनीति का असर बढ़ता जा रहा है, और बीजेपी इसे अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण और झारखंड में आदिवासी-मुस्लिम एकता बीजेपी के लिए सियासी चुनौती बनी हुई है. ऐसे में “बंटेंगे तो कटेंगे” जैसे नारे के जरिए बीजेपी हिंदू समाज के विभिन्न हिस्सों को एकजुट करने की कोशिश कर रही है.
विपक्ष का एजेंडा
विपक्षी दलों ने इस नारे का जवाब जातीय जनगणना और आरक्षण के मुद्दे के जरिए दिया है. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दल इस बात की वकालत कर रहे हैं कि जातीय जनगणना कराई जाए और 50% आरक्षण के बैरियर को तोड़ा जाए. बीजेपी इस मुद्दे पर रणनीतिक चुप्पी साधे हुए है, लेकिन वह हिंदू समाज में एकजुटता लाने के लिए “बंटेंगे तो कटेंगे” के नारे को अपनी ताकत बनाने की कोशिश कर रही है.
योगी आदित्यनाथ के “बंटेंगे तो कटेंगे” वाले बयान से उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र और झारखंड तक सियासी हलचल तेज हो गई है. बीजेपी इसे हिंदू समाज के जातीय विभाजन को खत्म करने के रूप में पेश कर रही है, जबकि विपक्ष इसे समाज को बांटने का प्रयास मान रहा है. आगामी चुनावों में इस बयान की राजनीतिक अहमियत और प्रभाव को लेकर सभी दल अपनी रणनीतियां तैयार करने में जुटे हैं.