UP By-Election: देश की 48 विधानसभा सीटों पर इस महीने उपचुनाव होने वाले हैं. उपचुनाव की सबसे ज्यादा सीटें उत्तर प्रदेश में है. यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने को है. राज्य में बीजेपी और सपा, दोनों ही दलों के लिए यह चुनाव नाक का सवाल बन चुका है. 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में एक सीट ऐसी भी है जहां के मतदाता बाहरी उम्मीदवार पर भरोसा करते हैं. इस सीट से वोटर्स लोकल चेहरे पर भरोसा नहीं करते हैं.
यूपी की यह सीट है मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट है. मीरापुर विधानसभा सीट से पिछले पांच दशक से कोई लोकल नेता चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंच सका है.
दो बार बदल चूका है नाम
मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर विधानसभा सीट का नाम पहले भोकरहेड़ी विधानसभा था. बाद में इसका नाम बदलकर मोरना कर दिया गया. 2012 के विधानसभा चुनाव से इस सीट का नाम दूसरी बार बदल कर मीरापुर कर दिया गया. इस सीट से एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों को इस क्षेत्र की जनता ने विधानसभा भेजने का काम किया.
एक परिवार की तीन पीढ़ी पहुंची विधानसभा
मीरापुर विधानसभा सीट से एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों ने प्रतिनिधित्व किया है. इस सीट से पूर्व डिप्टी सीएम बाबू नारायण सिंह यहां से विधायक रहे थे. इसके बाद बाबू नारायण सिंह के पुत्र और पोते ने भी जीत हासिल की थी. विधायक बनने के बाद दोनों ही फिर संसद भी पहुंचे थे. बाबू नारायण सिंह के बेटे संजय चौहान सपा के टिकट पर साल 1996 मीरापुर विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हुए थे.
2022 के यूपी चुनाव में सपा की अगुवाई वाले गठबंधन से RLD के टिकट पर संजय चौहान के बेटे चंदन चौहान विधायक निर्वाचित हुए. संजय चौहान भी सांसद रहे थे और अब चंदन चौहान के भी संसद सदस्य निर्वाचित होने की वजह से ही यह सीट खाली हुई है. दोनों ही पिता-पुत्र बिजनौर सीट से लोकसभा चुनाव जीते हैं.
59 साल से लोकल विधायक नहीं
मीरापुर सीट पर 1985 से लेकर अब तक 11 विधायक चुने गए हैं. खास बात यह है कि इस सीट से कोई लोकल नेता विधायक नहीं बना है. साल 2012 विधानसभा चुनाव में इस सीट से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीते मौलाना जमील मीरापुर विधानसभा क्षेत्र के ही टंडेढ़ा गांव में रहते हैं. लेकिन वह भी मूल रूप से देवबंद के जहीरपुर गांव निवासी हैं.