UP Politics: उत्तर प्रदेश में एनडीए का कुनबा फिर और बड़ा होने की संभावना जताई जा रही है. सूत्रों का दावा है कि जयंत चौधरी बीजेपी के साथ बातचीत कर रहे हैं और ये बातचीत अंतिम दौर में है. दोनों पार्टियों के बीच अब केवल मुजफ्फरनगर सीट को लेकर मामला फंसा हुआ है. हालांकि इन सबसे अलग बीते चुनावों के रिजल्ट पर नजर डालें तो आरएलडी को बीजेपी के साथ गठबंधन करने का हमेशा फायदा हुआ है.
हम अगर बीते पांच लोकसभा चुनावों के रिजल्ट पर नजर डालें तो 1999 के आम चुनाव में आरएलडी ने किसी के साथ गठबंधन नहीं किया था. तब पार्टी ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल दो सीटों पर जीत दर्ज कर पाई था. हालांकि इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी और सपा के बीच गठबंधन हुआ था. इस गठबंधन में आरएलडी को 10 सीटें मिली और केवल तीन पर उसने जीत दर्ज की.
लोकसभा चुनाव के आंकड़े
2009 के आम चुनाव में आरएलडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया. हालांकि इस चुनाव में बीजेपी की बड़ी हार हुई थी. लेकिन दूसरी ओर आरएलडी ने इस चुनाव में अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया. पार्टी ने 7 सीटों पर गठबंधन में चुनाव लड़ा और 5 सीटों पर जीत दर्ज की. इसके बाद फिर 2014 में आरएलडी ने कांग्रेस का रुख किया. कांग्रेस के साथ गठबंधन में आरएलडी ने 8 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक भी सीट नहीं जीत पाई.
बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी ने सपा और बीएसपी के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था. लेकिन इस गठबंधन का भी उसको कोई फायदा नहीं हुआ. इस चुनाव में आरएलडी ने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन पार्टी को तीनों ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. यानी देखा जाए तो बीते पांच चुनावों में आरएलडी को सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी के 2009 में हुआ था.
अब बात विधानसभा चुनावों की करते हैं, बीते पांच विधानसभा चुनावों के रिजल्ट पर नजर दौड़ाने के बाद पुरानी ही तस्वीर बनती है. 2002 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में पार्टी ने 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें उसने 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन पार्टी ने 2007 में विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा था.
विधानसभा चुनाव में भी वही बात
2007 चुनाव में आरएलडी ने 254 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन केवल 10 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई थी. इसके बाद आरएलडी ने 2012 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ गठबंधन में लड़ा था. तब आरएलडी ने 46 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. इस चुनाव में आरएलडी को केवल 9 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन फिर 2017 का विधानसभा चुनाव आरएलडी ने अकेले लड़ने का फैसला किया था.
इस चुनाव में आरएलडी ने 277 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे और इस बार आरएलडी का हाल बहुत खराब रहा. पार्टी को अब तक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. 2017 के विधानसभा चुनाव में आरएलडी को केवल एक सीट पर जीत मिली थी. बीते विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने फिर गठबंधन की राह देखी और सपा गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा. इस चुनाव में 33 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और 8 जीत सीटों पर जीत मिली थी.
यानी देख जाए तो लोकसभा की तरह विधानसभा चुनावों में भी आरएलडी को बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने का हमेशा फायदा हुआ है. पार्टी ने जब भी बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा तो आरएलडी ने अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया है. ऐसे में राजनीति के जानकार बार-बार इसी आंकड़े को रखकर आरएलडी के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन को सही मान रहे हैं. हालांकि अभी तक इस गठबंधन की तस्वीर साफ नहीं हो पाई है.