खबरें हैं कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ (Kamal Nath) अपने बेटे नकुलनाथ और पार्टी के करीब 22 विधायकों को साथ लेकर बीजेपी में जा सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक, पार्टी नेतृत्व ने उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं दिया, इस बात से वह नाराज हैं. हालांकि, कमलनाथ से जब इस विषय में पूछा गया तो न उन्होंने इनकार किया और न ही स्वीकार. मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा, “कांग्रेस नेतृत्व ने उनसे संपर्क करने का कोई प्रयास नहीं किया है. राज्यसभा टिकट के लिए कमलनाथ सक्रिय रूप से पैरवी कर रहे थे, जिससे चीजें उलझ गई हैं.” अब सवाल उठता है कि अगर कमलनाथ भारी संख्या में विधायकों को तोड़कर बीजेपी में शामिल होते हैं तो क्या दलबदल कानून के तहत उन विधायकों को अयोग्य ठहराया जा सकता है? क्या कांग्रेस इस मामले को लेकर अदालत का रुख कर सकती है?
क्या है दलबदल कानून?
दलबदल कानून एक मार्च 1985 में अस्तित्व में आया, ताकि अपनी सुविधा के हिसाब से पार्टी बदल लेने वाले विधायकों और सांसदों पर लगाम लगाई जा सके. साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दलबदल विरोधी कानून’ पारित किया गया था. संविधान के 10वीं अनुसूची में इस अधिनियम के बारे में बताया गया है. इस कानून का मुख्य उद्देश्य देश की राजनीति में दलबदल की समस्या से निपटाना है.
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इन स्थिति में अयोग्य नहीं ठहराए जाएंगे सदस्य
बता दें कि इस कानून में कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियों का जिक्र किया गया है, जिनमें दलबदल पर भी सदस्य को अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता. दल-बदल विरोधी कानून के मुताबिक, एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय की अनुमति है बशर्ते उसके कम से कम दो तिहाई विधायक दूसरी पार्टी में शामिल होने के पक्ष में हों.
मतलब, अगर किसी पार्टी से दो तिहाई सदस्य टूटकर दूसरी पार्टी में जाते हैं तो उनका पद बना रहेगा, यानी विधायक का पद बचा रहेगा, लेकिन अगर संख्या इससे कम होती है तो उन्हें विधायक के पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है.
कब-कब लागू होगा दल-बदल कानून
अगर कोई विधायक या सांसद ख़ुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है.
अगर कोई निर्वाचित विधायक या सांसद पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाता है.
अगर कोई सदस्य पार्टी ह्विप के बावजूद वोट नहीं करता.
अगर कोई सदस्य सदन में पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करता है.
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आजादी के बाद जोड़-तोड़ की राजनीति
गौरतलब है कि आजादी के बाद से विधायकों और सांसदों के जोड़-तोड़ से देश में राज्य सरकारें बनने और गिरने लगीं. साल 1967 में हरियाणा के एक विधायक गया लाल ने 15 दिनों के भीतर तीन बार दल बदलकर इस मुद्दे को राजनीति गलियारों में चर्चा में ला दिया था. उस दौर में ‘आया राम गया राम’ की राजनीति से देश में खूब बवाल हुआ.आख़िर में 1985 में संविधान संशोधन कर यह कानून लाया गया इसके बाद भी ये समस्या जस की तस बनी रही. हाल के साल में भी कई राज्य में दल बदल राजनीति प्रभावी रही है.
MP की राजनीतिक स्थिति
बता दें कि इस वक्त बीजेपी में कांग्रेसियों का आने का सिलसिला जारी है. यदि कमलनाथ के साथ 44 विधायक आते हैं तो उसके बाद कांग्रेस के पास सिर्फ 22 विधायक बचेंगे. दलबदल कानून लागू नहीं होने के लिए दो तिहाई यानी 44 विधायकों की जरूरत होगी, क्योंकि कांग्रेस के पास राज्य में कुल 66 विधायक हैं. अगर कमलनाथ अपने साथ 44 से कम विधायक लेकर बीजेपी जॉइन करेंगे तो उन्हें दलबदल कानून का सामना करना पड़ सकता है. कांग्रेस इस मुद्दे को चुनाव आयोग और कोर्ट के सामने उठा सकती है. अगर इस स्थिति में दलबदल कानून लागू हुआ तो कमलनाथ के साथ-साथ उन विधायकों की सदस्यता भी जा सकती है.