Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और किसान-जवान-पहलवान के साथ कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा चुनावी चर्चा का केंद्र बन गई हैं. कांग्रेस के एक कार्यक्रम में अपने लिए जातिसूचक शब्दों का उपयोग किए जाने के बाद कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा ने प्रचार से दूरी बना ली. अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सैलजा को बहन बताया है. दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि इस घटना के लिए कड़ी निंदा भी हल्का शब्द है. वह हमारी सम्मानित नेता हैं और हम उनका सम्मान करते हैं. दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता भी सैलजा को अपनी बहन बताते हुए कांग्रेस को घेर रहे हैं.
कुमारी सैलजा पर जातिसूचक टिप्पणी को लेकर बीजेपी के प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेता मुखर हैं. हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहरलाल खट्टर ने सैलजा को बीजेपी जॉइन करने का ऑफर दे दिया तो वहीं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बडौली ने कहा, “हम तो चाहते हैं कि वह सीएम बनें. वह सीएम बनेंगी तो हरियाणा की पहली महिला मुख्यमंत्री होंगी और यह एक सकारात्मक कदम होगा.” बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ऐसा कह रहे हैं तो जरूर उन्होंने ‘पार्टी हित’ तो जरूर देखा ही होगा.
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एक्स फैक्टर क्यों बनीं कुमारी सैलजा?
कुमारी सैलजा के कांग्रेस छोड़ने के कयास भी लगाए जा रहे थे. कहा तो यहां तक जा रहा था कि वह 25 सितंबर को बीजेपी जॉइन कर सकती हैं लेकिन खुद कुमारी सैलजा ने ही इस तरह की खबरों को खारिज कर दिया. उन्होंने बीजेपी पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाया और हिदायत दी कि मैं और मेरी पार्टी अपना रास्ता तय करना जानते हैं. सवाल उठ रहे हैं कि वह हरियाणा की सियासत का एक्स फैक्टर क्यों बन गई हैं?
निर्णायक भूमिक में जाट-दलित वोटर्स
हरियाणा की कुल जनसंख्या में दलित वर्ग की भागीदारी 2011 की जनगणना के मुताबिक 20.2 फीसदी है. सूबे में अनुमानित जाट आबादी करीब 25 फीसदी है. जाट और दलित की आबादी करीब 45 फीसदी पहुंचती है. जाट-दलित का एकमुश्त वोट अगर किसी पार्टी के पक्ष में पोल हो जाए तो सत्ता तक पहुंचा सकता है.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सूबे में दो चुनाव से चला आ रहा सूखा पांच सीटें जीतकर समाप्त करने में सफल रही तो उसके पीछे भी जाट-दलित वोट का गणित मुख्य वजह बताया गया. सैलजा चैप्टर से बीजेपी को वोटों का यह समीकरण बिगाड़ने का मौका नजर आ रहा है. वहीं, कांग्रेस और हुड्डा की कोशिश इसे इंटैक्ट रखने की है. इसमें सैलजा एक्स फैक्टर हैं. सैलजा दलित बिरादरी से आती हैं और कांग्रेस की बड़ी नेता हैं.
दलित चेहरा
कुमारी सैलजा की नाराजगी के चर्चे जबसे शुरू हुए, बीजेपी दलित पॉलिटिक्स की पिच पर आक्रामक रणनीति के साथ उतर आई. सीएम नायब सिंह सैनी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बडौली तक, कांग्रेस को दलित विरोधी बताते हुए घेरते नजर आए. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने तो यहां तक कह दिया कि कांग्रेस में सैलजा को सीएम फेस घोषित करने की हिम्मत नहीं है.
हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी दलित नेता उदयभान हैं लेकिन सैलजा की पार्टी से दूरी से कहीं पार्टी के साथ एंटी दलित टैग न चिपक जाए, कांग्रेस नेताओं के जेहन में ये बात भी होगी. गृह मंत्री अमित शाह ने फतेहाबाद के टोहाना की रैली में कहा भी, “कांग्रेस दलितों का अपमान करती है. चाहे अशोक तंवर हो या बहन सैलजा.”
चुनावी समीकरण
हरियाणा चुनाव में जहां कांग्रेस की कोशिश एंटी इनकम्बेंसी के एकमुश्त वोट पाने की है, वहां अगर पार्टी के भीतर गुटबाजी और फूट की खबरें आती हैं तो इससे चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंच सकता है. सूबे की सत्ता से कांग्रेस 10 साल से बाहर है. पार्टी इस बार सत्ता से 10 साल का वनवास समाप्त कराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.
यही वजह है कि पार्टी की बैठकों से भी हुड्डा, सैलजा और रणदीप सुरजेवाला की साथ बैठकर बातें करते तस्वीरों के जरिये ये संदेश देने की कोशिश की गई कि सब एकजुट हैं. बीजेपी की रणनीति कांग्रेस की इस कोशिश की काट वाली नजर आ रही है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली का यह कहना कि कांग्रेस में सैलजा को सीएम फेस घोषित करने की हिम्मत नहीं है, यही संदेश देने की कोशिश से जोड़कर देखा जा रहा है.
कांग्रेस से लिए सैलजा क्यों जरूरी?
कुमारी सैलजा को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है. वह दलित बिरादरी से आती हैं. केवल यही फैक्टर सैलजा को कांग्रेस के लिए जरूरी नहीं बनाते. दरअसल, हरियाणा में कांग्रेस की पॉलिटिक्स का जो पैटर्न इस समय है, उस लिहाज से भी सैलजा पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हो जाती हैं. हरियाणा में कांग्रेस के पास संगठन नहीं है. हर नेता का अपना कैडर है. कुमारी सैलजा के पास भी अपना कैडर बेस है और कांग्रेस भी नहीं चाहेगी कि उनके जैसी बड़े कद की नेता नाराज हो.