Zakir Hussain: भारत के मशहूर तबला वादक, संगीतज्ञ और विश्व प्रसिद्ध कलाकार ज़ाकिर हुसैन अब दुनियां को अलविदा कह चुके हैं, जिन्हें उनकी अनूठी कला और अद्भुत शैली के लिए जाना जाता है. उनका निधन 15 दिसंबर को हुआ. ज़ाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई, भारत में हुआ था. वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के दिग्गज उस्ताद अल्ला रखा के पुत्र थे, जिन्होंने उन्हें संगीत की गहरी समझ और शिक्षा दी. ज़ाकिर हुसैन की संगीत यात्रा उनके जन्म से पहले ही शुरू हो गई थी, जब वे बहुत छोटे थे. उनके पिता ने देखा कि वह बोलने से पहले ही घर के वस्तुओं पर परफेक्ट बीट्स पर थाप बजाते थे, जो उनके असाधारण ताल और संगीत के प्रति स्वाभाविक प्रवृत्ति को दर्शाता है.
बचपन में प्रतिभा और संगीत का प्रारंभ
ज़ाकिर हुसैन ने संगीत की यात्रा बहुत कम उम्र में शुरू की. चार साल की उम्र में, उन्होंने पहली बार अपने पिता के मार्गदर्शन में तबला बजाना सीखा. 7 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी पहली सार्वजनिक प्रस्तुति दी, और महज 12 साल की उम्र में उनका प्रदर्शन श्रोताओं और संगीतकारों द्वारा सराहा गया. उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे बचपन में ही एक अद्भुत प्रतिभा के रूप में सामने आए थे, जिन्होंने केवल तबला ही नहीं, बल्कि रिदम के हर पहलू को समझने में भी गहरी रुचि दिखाई थी.
अभिनय में भी हाथ आजमाया
हालाँकि ज़ाकिर हुसैन संगीत की दुनिया में एक दिग्गज हैं, लेकिन उन्होंने अभिनय में भी अपना हाथ आजमाया. 1983 में आयी फिल्म Heat and Dust में उन्होंने एक तबला वादक का किरदार निभाया. इसके अलावा, उन्होंने फिल्म Saaz में भी अभिनय किया, जो लता मंगेशकर और आशा भोसले के जीवन से प्रेरित थी. हाल ही में, उन्होंने Monkey Man फिल्म में भी अभिनय किया, जिसे देव पटेल ने निर्देशित और प्रोड्यूस किया था.
पश्चिमी संगीतकारों के साथ सहयोग
ज़ाकिर हुसैन का संगीत सफर केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने पश्चिमी संगीतकारों के साथ भी कई प्रमुख सहयोग किए. 1970 के दशक में, उन्होंने Beat Generation के प्रसिद्ध कवि एलन गिंसबर्ग के साथ काम किया. इसके अलावा, उन्होंने जॉर्ज हैरिसन, जॉन हैंडी और सर जॉर्ज इवान मॉरिसन जैसे कलाकारों के साथ भी मिलकर काम किया. इस सहयोग ने न केवल भारतीय और पश्चिमी संगीत के बीच की खाई को पाटा, बल्कि वैश्विक संगीत समुदाय में उनकी प्रतिष्ठा को भी बढ़ाया.
शिक्षा में योगदान
ज़ाकिर हुसैन ने न केवल मंच पर प्रदर्शन किया, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया. 2005–2006 के दौरान, उन्होंने प्रिंसटन विश्वविद्यालय में Old Dominion Fellow के रूप में कार्य किया और संगीत विभाग के प्रोफेसर के रूप में छात्रों को मार्गदर्शन दिया. इसके अलावा, उन्होंने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में भी विज़िटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत और तबला के महत्व को समझाया.
शक्ति और फ्यूजन संगीत
ज़ाकिर हुसैन का फ्यूजन संगीत के प्रति भी गहरा आकर्षण रहा है. 1991 में, उन्होंने प्रसिद्ध गिटारिस्ट जॉन मैक्ललिन के साथ मिलकर “शक्ति” नामक एक फ्यूजन बैंड की शुरुआत की. इस बैंड ने भारतीय और पश्चिमी संगीत का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत किया. 2020 में, शाक्ति का पुनर्मिलन हुआ और उनका एल्बम This Moment ग्रैमी पुरस्कार जीतने में सफल रहा, जो ‘बेस्ट ग्लोबल म्यूजिक एल्बम’ के तहत श्रेणीबद्ध था. इस सफलता ने ज़ाकिर हुसैन की वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान बनाई, और यह संगीत के प्रति उनके समर्पण को और भी प्रकट करता है.
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ज़ाकिर हुसैन की विरासत और योगदान
ज़ाकिर हुसैन ने भारतीय संगीत को न केवल अपनी अद्वितीय शैली से बल्कि पश्चिमी दुनिया के संगीतकारों के साथ सहयोग करके भी नया आयाम दिया. उनका संगीत भारत की शास्त्रीय धरोहर को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करता है. उनका योगदान केवल संगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा और कला के प्रति उनके दृष्टिकोण ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है.
आज भी जब हम भारतीय शास्त्रीय संगीत और तबला की बात करते हैं, तो ज़ाकिर हुसैन का नाम शीर्ष पर आता है. उनका जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे किसी भी कला के प्रति समर्पण और कठोर परिश्रम से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है. वे संगीत जगत के एक महान हस्ताक्षर हैं, जिनकी धुनें और ताल हमेशा हमारे दिलों में गूंजती रहेंगी.
ज़ाकिर हुसैन की यात्रा संगीत, अभिनय, और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को समझने का एक अद्वितीय उदाहरण है. उनकी कला ने भारतीय और पश्चिमी संगीत के बीच पुल का काम किया है, और उनका नाम हमेशा भारतीय संगीत के सबसे महान कलाकारों में लिया जाएगा. उनका जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि कला की कोई सीमाएं नहीं होतीं, और अगर समर्पण और मेहनत सच्चे दिल से की जाए, तो कोई भी ऊंचाई छुई जा सकती है. ऊंचाई छुई जा सकती है।