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झारखंड में ‘रोटी-बेटी-माटी’ का मुद्दा बेदम, कुछ नहीं कर पाए ‘कोल्हान टाइगर’, JMM ने ऐसे जीती बाजी

हेमंत सोरने और चंपई सोरेन

हेमंत सोरने और चंपई सोरेन

Jharkhand Election: झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राज्य की राजनीति में आदिवासी अस्मिता और महिला कल्याण योजनाओं का कितना बड़ा प्रभाव हो सकता है. राज्य में कुल 81 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से बहुमत के लिए 41 सीटें चाहिए थीं. चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला था. हालांकि, अंततः इंडिया ब्लॉक की गठबंधन सरकार ने भारी जीत हासिल की.

मुख्यमंत्री सोरेन के अपमान का मुद्दा

राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजे जाने का मामला इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन गया था. भाजपा ने इसे राजनीतिक रूप से बढ़ाया और इसे आदिवासी अस्मिता से जोड़ते हुए प्रचारित किया. आदिवासी समुदाय में यह महसूस किया गया कि भाजपा का यह कदम उनके खिलाफ था. सोरेन के नेतृत्व को लेकर आदिवासी समाज में गुस्सा था, और भाजपा का आदिवासी वोटों पर अधिक प्रभाव नहीं था. यही कारण था कि राज्य के आदिवासी वोटरों ने इंडिया ब्लॉक को समर्थन दिया.

आदिवासी समाज को जोड़ने में विफल रही बीजेपी

बीजेपी ने आदिवासी समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए बाबूलाल मरांडी और चंपई सोरेन जैसे पुराने नेताओं पर भरोसा किया. इन नेताओं को आदिवासी इलाकों में भाजपा के पक्ष में वोट जुटाने की उम्मीद थी, लेकिन ये प्रयास उतने सफल नहीं रहे. विशेष रूप से कोल्हान क्षेत्र में, जहां आदिवासी वोटों की महत्वपूर्ण संख्या थी, भाजपा ने इन नेताओं का सहारा लिया, लेकिन इनकी रणनीति काम नहीं आई. आदिवासी वोटरों को जोड़ने में जेएमएम के नेतृत्व ने बेहतर प्रदर्शन किया और भाजपा के प्रयासों को नकारा.

महिलाओं के लिए ‘मंईयां सम्मान योजना’ की सफलता

राज्य में महिलाओं की अहम भूमिका को ध्यान में रखते हुए इंडिया ब्लॉक ने झारखंड में एक विशेष योजना लागू करने का वादा किया, जिसे मंईयां सम्मान योजना के तहत हर महीने 2500 रुपये की सम्मान राशि देने की बात कही गई. यह योजना दिसंबर 2024 से लागू होने वाली है, और झारखंड जैसे राज्य में यह राशि काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. महिलाओं को आर्थिक सहायता देने वाली इस योजना ने चुनाव के दौरान बहुत प्रभाव डाला.

इसके अलावा, खाद्य सुरक्षा और गैस सिलेंडर की सब्सिडी पर भी वादा किया गया था, जिसके तहत राज्य के हर गरीब परिवार को 450 रुपये में गैस सिलेंडर दिए जाने का वादा किया गया. इन योजनाओं ने महिला वोटरों को खासा प्रभावित किया और इंडिया ब्लॉक को वोटों की भारी संख्या में मदद की.

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बीजेपी का ‘रोटी-बेटी-माटी’ मुद्दा असफल

बीजेपी ने इस चुनाव में रोटी, बेटी और माटी के मुद्दे को उठाया था, जिसमें मुख्य रूप से बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ आक्रामक प्रचार किया गया था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मुद्दे को बार-बार उठाया और दावा किया था कि हेमंत सोरेन सरकार राज्य की अस्मिता और सुरक्षा को बचाने में विफल रही है. उनका कहना था कि राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी महिलाओं से शादी करके उनकी संपत्ति पर कब्जा कर रहे हैं और नागरिकता प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं.

हालांकि, भाजपा की यह रणनीति राज्य की जनता पर ज्यादा असर नहीं डाल सकी. आदिवासी समाज और महिला वोटरों को जोड़ने के भाजपा के प्रयास विफल रहे, और इंडिया ब्लॉक की योजनाओं के मुकाबले भाजपा के मुद्दे कहीं नहीं टिक पाए.

बीजेपी ने आदिवासी समाज को अपने पक्ष में करने के लिए बिरसा मुंडा जयंती और आदिवासी गौरव जैसे कार्यक्रम आयोजित किए थे, लेकिन ये प्रयास भी चुनाव परिणामों पर ज्यादा असर नहीं डाल सके. भाजपा ने आदिवासी संस्कृति और उनके सम्मान को बढ़ावा देने के नाम पर जो कदम उठाए थे, वे जनता के बीच कोई विशेष संदेश नहीं दे पाए.

आदिवासी और महिला कल्याण योजनाओं की अहमियत

कुल मिलाकर देखा जाए तो, जेएमएम और उसके सहयोगी दलों ने आदिवासी अस्मिता और महिला कल्याण योजनाओं के मुद्दे को पूरी तरह से सफलतापूर्वक उठाया. इन मुद्दों ने राज्य के मतदाताओं को इंडिया ब्लॉक के पक्ष में वोट देने के लिए प्रेरित किया. दूसरी ओर, भाजपा के द्वारा उठाए गए बांग्लादेशी घुसपैठ और रोटी-बेटी-माटी जैसे मुद्दे न केवल प्रभावी साबित नहीं हुए, बल्कि आदिवासी समाज के बीच उनकी छवि को भी नुकसान पहुंचा. राज्य की जनता ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक को अपनी मंजूरी दी, और यह साफ संदेश दिया कि झारखंड की राजनीति में आदिवासी और महिला कल्याण योजनाओं की अहमियत बहुत अधिक है.

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