Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि शुरू हो गई है. इसी के साथ हिंदू नव वर्ष की शुरुआत भी हो जाती है. यह हिंदू संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसे भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह नौ दिवसीय त्योहार देवी दुर्गा को समर्पित है और यह केवल उपवास और प्रार्थना से कहीं अधिक है. चैत्र नवरात्रि के नौ दिन आध्यात्मिक नवीनीकरण की यात्रा का प्रतीक हैं, जहाँ भक्त प्रार्थना, ध्यान और उपवास के माध्यम से दिव्य आशीर्वाद, शक्ति और समृद्धि की तलाश करते हैं. ऐसे में नवरात्रों में देशभर के शक्तिपीठों में माता के दरबार मे भक्तों का जन सैलाब देखने को मिलता है.
आज हम आपको बताएंगे मध्य प्रदेश के मैहर जिले में स्थित 51 शक्ति पीठ में से एक मैहर की ‘मां शारदा शक्ति पीठ’ के बारे में जो हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. जहां मान्यता है कि अमरता का वरदान प्राप्त आल्हा और ऊदल आज भी सबसे पहले माता की पूजा करने आते हैं. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे सेवा भी है. यह मंदिर लोगों के बीच बेहद मशहूर है. यहां देश-विदेश के कोने-कोने से भक्त आते हैं. आइए जानते है मां शारदा शक्तिपीठ के बारे में विस्तार से….
विंध्य की पर्वत श्रृंखलाओं में है मां शारदा शक्तिपीठ
त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है. मैहर का मतलब ‘मां का हार’ है. मां शारदा देवी का मंदिर विंध्य की पर्वत श्रंखलाओं में से एक शिखर के मध्य में स्थित है. ऐसी मान्यता है कि माता शारदा मां सरस्वती का साक्षात स्वरूप हैं. देश भर में माता शारदा का अकेला मंदिर सतना के मैहर में ही है. ऐसी मान्यता है कि यहां मां शारदा की सबसे पहले पूजा आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी. विध्य के त्रिकुट पर्वत का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. नवरात्रि के समय में हर दिन यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
मैहर शारदा माता ऐसे हुई थीं प्रकट
शास्त्रों के मुताबिक दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव से विवाह करना चाहती थीं. उनकी यह इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी. फिर भी सती ने अपनी जि़द पर भगवान शिव से विवाह कर लिया. एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया. उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया. शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुईं. यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा. इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे. इस अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी.
भगवान शंकर को जब इस घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया. उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकालकर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे. ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया. जहां भी सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ. कहते हैं कि यहां सती का हार और कंठ गिरा था. हार गिरने की वजह से इस देवस्थान का नाम मैहर पड़ा और कंठ गिरने से शारदा माता विराजीं जो भक्तों को विद्या और सुरीला कंठ प्रदान करती हैं. आगे चलकर इस मंदिर को मैहर माता मंदिर कहा जाने लगा.
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इन योद्धाओं ने की थी इस मंदिर की खोज
मां शारदा का यह मंदिर त्रिकूट की पहाड़ियों पर स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि मां शारदा के इस मंदिर की खोज आल्हा, उदल नाम के दो सगे भाईयों ने की थी जो योद्धा थे. कहा जाता है कि आल्हा और उदल मां शारदा के परम भक्त थे. उन्होंने पर्वत की चोटी पर मौजूद इस मंदिर को ढूंढ़ निकाला था.
इसके बाद उन दोनों ने 12 सालों तक कठोर तपस्या कर देवी मां को प्रसन्न किया. इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था. ऐसी मान्यता है कि यहां आज भी हर दिन ब्रम्ह मुहुर्त में यहां आल्हा और उदल मां की पूजा करते हैं.
मंदिर में ठहरने की व्यवस्था
मैहर में ठहरने के लिए हर तरह के होटल, लॉज और धर्मशाला उपलब्ध हैं. बजट होटलों की कोई कमी नहीं है. मां शारदा प्रबंध समिति द्वारा संचालित यात्री निवास भी है. मां के गर्भगृह तक 3 तरह से पहुंचा जा सकता है. 1063 सीढ़ियां चढ़कर, समिति की वैन सुविधा या फिर आप रोपवे से जाकर मां के दर्शन कर सकते हैं.