Lok Sabha Election 2024: हाल ही संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस (SP-Congress) की गठबंधन ने यूपी में एनडीए को रोकने में काफी हद तक सफल रही. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से सपा-कांग्रेस ने 43 पर जीतने में कामयाब रहे. पिछले चुनाव में 62 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) महज 33 सीटें ही जीत सकी. वहीं बीजेपी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी की NDA की बात करें तो यहां उसे कुल 36 सीटों पर ही जीत मिली. यूपी में सपा के साथ गठबंधन का फायदा देखते हुए कांग्रेस की नजर अब मायावती पर टिकी है.
कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी (Pramod Tiwari) ने मायावती की पार्टी बसपा को इंडिया ब्लॉक में शामिल होने का न्योता दिया है. लोकसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि अगर बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) इंडिया गठबंधन के साथ होती तो यूपी में नतीजा कुछ और ही होता. प्रमोद तिवारी ने दावा किया कि बसपा साथ होती तो इंडिया ब्लॉक (INDIA Block) 80 की 80 सीटें जीत लेता. प्रमोद तिवारी ने कहा कि महागठबंधन ने अपनी ओर से बहुत कोशिश की थी कि मायावती की पार्टी भी साथ आ जाए लेकिन उन्होंने अकेले ही चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था.
ये भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर PM मोदी ने की हाई लेवल मीटिंग, गृह मंत्री शाह और NSA डोभाल से की बात
“बीजेपी को हराना है तो इंडिया गठबंधन में आए मायावती”
कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने आगे कहा कि हम हाथ पर गिन कर बता सकते हैं कि बसपा अगर हमारे साथ होती तो 16 सीटों पर नतीजे हमारे पक्ष में होंते. जिन सीटों पर हम हारे हैं, उन सीटों पर बसपा के उम्मीदवार इतना वोट पा गए जितने मिल जाने पर हमारी जीत पक्की थी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने आगे कहा कि मायावती को हमारी यही सलाह है कि अगर बीजेपी (BJP) को हराना चाहती हैं तो महागठबंधन के साथ आ जाएं. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस के नेता लगातार यह कहते रहे कि हमारे दरवाजे बसपा के लिए अंतिम समय तक खुले रहेंगे लेकिन मायावती ने एकला चलो का नारा दे दिया था.
चुनावी नतीजे के बाद कांग्रेस को गठबंधन की आस
लोकसभा चुनाव से पहले ही मायावती ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह अकेले चुनाव लड़ेंगी. बसपा किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी. बसपा ने चुनाव में अकेला उतरा भी, लेकिन किसी भी एक सीट पर पार्टी की उम्मीदवार को जीत नसीब नहीं हुई. अब चुनाव के बाद कांग्रेस को बसपा के गठबंधन में आने की आस है तो यह भी आधारहीन नहीं है. तब से अब तक परिस्थितियां बहुत बदल चुकी हैं. लोकसभा चुनाव में 10 सांसदों के साथ बीजेपी के बाद यूपी में दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में उतरी बसपा इस बार खाली हाथ रह गई है. उसका वोट शेयर भी इस बार कांग्रेस से भी कम रहा है. यूपी विधानसभा में पहले से ही एक सीट है. अब लोकसभा में सूपड़ा साफ होने के बाद बसपा के अस्तित्व पर सवाल उठने लगे हैं.
कांग्रेस ने दिया न्योता, लेकिन अखिलेश की रुख पर नजर
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव 2014 में भी बसपा शून्य पर सिमट गई थी. तब भी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. 2019 के चुनाव में बसपा और सपा साथ आए. बसपा गठबंधन में 10 सीटें जीत गई और सपा पांच की पांच पर ही रह गई. चुनाव नतीजों के ऐलान के बाद मायावती ने यह कहते हुए गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया था कि सपा के वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हुए. बसपा 10 साल बाद फिर से उसी तरह की स्थिति में नजर आ रही है. कांग्रेस ने न्योता दे तो दिया है लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव का इस पर क्या स्टैंड होगा. लोगों की नजरें इस सवाल पर बनी हुई है.
कांग्रेस को क्यों पड़ रही बसपा की जरुरत
यूपी में विपक्षी गठबंधन 43 सीटें जीतकर सबसे बड़ा गठबंधन बनकर उभरा है. इसके बावजूद भी कांग्रेस बसपा को साथ क्यों लाना चाहती है, ये सवाल भी उठने लगा है. दरअसल, इसका जवाब हाल ही में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों में छिपा है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने एक सीट पर एक उम्मीदवार का फॉर्मूला दिया था. यूपी में बसपा के गठबंधन से दूर रहने की वजह से यह फॉर्मूला लागू नहीं हो पाया फिर भी इंडिया ब्लॉक 43 सीटें जीतने में सफल रहा. एनडीए उतनी सीटें भी नहीं जीत सका जितनी अकेले सपा ने जीती हैं. अब कांग्रेस नेताओं को शायद ये लग रहा है कि सपा के साथ अगर बसपा भी इंडिया ब्लॉक में आ जाए तो सूबे में बीजेपी को और कम सीटों पर रोका जा सकता है.