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क्या इस बार दक्षिण में BJP कर पाएगी कमाल? जानें वोटिंग के दिन पार्टी के ‘सिंघम’ ने क्यों की राजनीति छोड़ने की बात

के अन्नामलाई

के अन्नामलाई

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के पहले चरण का आज मतदान हो रहा है. तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर वोटिंग हो रही है. नरेंद्र मोदी के पीएम पद संभालने के बाद से ही तमिलनाडु भाजपा की रणनीति के केंद्र में है. लेकिन इस बार का लोकसभा चुनाव तमिलनाडु में भाजपा की महत्वाकांक्षाओं की परीक्षा है. पीएम मोदी ने राज्य की कमान के अन्नामलाई (पार्टी के सिंघम) को सौंपी है, लेकिन चुनाव के दिन ही के अन्नामलाई ने राजनीति छोड़ने की बात कर दी है.

अन्नामलाई ने कहा कि कोयंबटूर में डीएमके और एआईएडीएमके जो भी कर रही है सभी लोग उसे देख रहे हैं. यहां 1000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं. अगर वे मीडिया के समाने एक भी ऐसा वोटर ला दें जो कहे कि भाजपा के लोगों ने उसे प्रभावित करने की कोशिश की है तो वह राजनीति छोड़ देंगे. उन्होंने कहा कि उनके लिए यह राजनीति सिद्धांत की बात है. उन्होंने और भी कई संगीन आरोप लगाए हैं.

बता दें कि बीजेपी को अपने नेता के अन्नामलाई पर बहुत भरोसा है. पीएम मोदी कई बार मंच से उनकी तारीफ कर चुके हैं. बीजेपी इस बार अन्नामलाई के सहारे दक्षिण फतह करने की कोशिश में है. पीएम मोदी ने एक बार कहा था कि विकसित भारत का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ दिल्ली तरक्की कर जाए. इसका अर्थ देश के हर कोने को विकसित होना जरूरी है. विकसित भारत के लिए विकसित राज्यों का होना जरूरी है. तमिलनाडु विकसित भारत का ड्राइविंग फोर्स बन सकता है. तमिल संगमम और सैंगोल से वोट नहीं मिलता है मगर देश की एकता मजबूत होती है. पीएम मोदी तो ऐसा कह रहे हैं, लेकिन चुनाव का नतीजा बीजेपी के मनमुताबिक नहीं मिल रहा है. और इसलिए बीजेपी ने इस बार अपने तेज तर्रार नेता के अन्नामलाई के कंधों पर जिम्मेदारी सौंपी.

अब जरा राजनीति समीकरण की बात

पूरे दक्षिण भारत को देखा जाए, बीजेपी बनाम कांग्रेस तो सात राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश है. ये सब मिलाकर कुल 131 सांसद भेजते हैं लोकसभा में. साल 2019 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने इनमें से पांच राज्यों – केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी और तेलंगाना में 28 सीटें जीती थीं. दूसरी ओर बीजेपी को केवल कर्नाटक और तेलंगाना में जीत मिली थी. बावजूद इसके कुल सीटों के मामले में दक्षिण भारत में वह कांग्रेस से एक सीट ज़्यादा थी. इस बार बीजेपी का दक्षिण भारत में कमल के सहारे कमाल दिखाने का इरादा है. पार्टी ने इस चुनाव में पांच दक्षिणी राज्यों की कम से कम 40-50 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. कर्नाटक में भाजपा 25 सीटें बरकरार रखने का दावा कर रही है.

इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष की उम्मीदवारी से पता चलता है कि पार्टी दक्षिण भारत में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है. के अन्नामलाई का तमिलनाडु की डीएमके और एआईएडीएमके जैसी पार्टियों से कड़ा मुकाबला है. दोनों दलों के समर्पित कार्यकर्ता हैं और यह तमिलनाडु की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण है. अन्नामलाई कई बार दावा कर चुके हैं कि इस बार के लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतेंगे. पीएम मोदी भी कई बार अन्नामलाई की तारीफ कर चुके हैं.

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AIDMK के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई

अन्नाद्रमुक इस साल की शुरुआत में भाजपा के नेतृत्व वाले राजग से कटुतापूर्वक बाहर हो गई थी.इसका एक कारण अन्नामलाई की द्रविड़ आइकनों की आलोचना और पार्टी की दिवंगत नेता जयललिता के बारे में टिप्पणियां थीं. अन्नामलाई का मुकाबला एआईएडीएमके के सिंगाई जी रामचंद्रन से है. रामचंद्रन का कहना है कि दिल्ली तमिलनाडु की राजनीति से अलग हो गई है और अन्नामलाई अपने ‘अहंकार’ के कारण हार जाएंगे. “उनका (अन्नामलाई का) आईपीएस या मेरा आईआईएम अहमदाबाद, ऐसे टैग महत्वहीन हैं. महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने जीवन में क्या करते हैं और आप लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं. उनकी अनावश्यक आक्रामकता से पता चलता है कि वह डरे हुए हैं.”

डीएमके की स्थानीय बढ़त

DMK के “गणपति” पी राजकुमार अन्नाद्रमुक के साथ रहे हैं और 2014 से 2016 तक कोयंबटूर के मेयर के रूप में कार्य किया. 2020 में राजकुमार DMK में चले गए. उनकी खूबियों में से एक है कोयंबटूर से उनका परिचय. राजकुमार का कहना है कि कोयंबटूर में असली मुकाबला उनके और रामचंद्रन के बीच है. राजकुमार का कहना है कि सीपीएम, दलित पार्टी वीसीके जैसे सहयोगी दल और शहर की मुस्लिम आबादी उनके साथ है.

तो फिर अन्नामलाई कैसे बैटिंग कर रहे हैं?

अन्नामलाई का कहना है कि वह उन समुदायों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जिन्हें द्रविड़ पार्टियों ने ‘अनदेखा’ किया है, खासकर शहरी क्षेत्रों में. 1998 और 1999 के आम चुनावों में भाजपा का वोट शेयर 55% और 49% था जब पार्टी ने कोयंबटूर बम विस्फोट के बाद सीट जीती थी. तब से 2009 को छोड़कर, भाजपा का औसत वोट शेयर लगभग 30% रहा है और पार्टी पिछले दो बार उपविजेता रही. अब देखना ये होगा कि क्या अन्नामलाई बीजेपी की राह आसान कर पाते हैं.

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