Holi 2025: (संजीव क्रिडिया) देश के साथ-साथ मध्य प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में होली का त्योहार तरह-तरह से मनाया जाता है. सिवनी में भी होली का नया रूप देखने को मिलता है.बुराई के प्रतीक रावण के बाहुबली पुत्र मेघनाद को आदिवासी ना केवल अपना आराध्य मानते हैं, बल्कि उन्हें पूजते भी हैं. यही नहीं होलिका दहन के दूसरे दिन यानी धुरेड़ी को मेघनाद के नाम पर बाकायदा एक बड़े मेले का आयोजन भी करते हैं.
एशिया का सबसे बड़ा मेघनाद मेला
मेघनाद को पूजने के लिए एक ऐसा ही मेला जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर केवलारी विकासखण्ड के ग्राम पांजरा में धुरेड़ी को लगता है. इलाके के लोगों का दावा है कि यह एशिया का सबसे बड़ा मेघनाद मेला है. इस ऐतिहासिक मेले की खासियत यह है कि इसमें तकरीबन 20 से 25 गांव के आदिवासी जुटते हैं.
खंभा होता है पूजा का प्रतीक
यूं तो मेघनाद की कोई प्रतिमा नहीं है लेकिन पूजा के प्रतीक के रूप में 60 फीट ऊंचाई वाले खंभों को गांव के बाहर गाड़ा जाता है. वहीं इस खंभे पर चढ़ने के लिए लगभग 30 फीट की खूंटी लगाई जाती हैं. एक तरह से यह मचान तैयार हो जाती है. जिस पर तीन लोगों के बैठने की व्यवस्था की जाती है. आदिवासी इसी खंभे के नीचे पूजा अर्चना करते हैं.
मनोकामना पूरी होने पर उपक्रम
ऐसा माना जाता है कि इस मेले में मनोकामना पूरी होती है. महिला-पुरुषों को मचान पर ले जाकर पेट के सहारे लिटाकर खम्भे के ऊपरी सिरे में लगी चारों तरफ घूमने वाली लकड़ी से बांधकर घुमाया जाता है. अपनी मन्नतों के आधार पर उसे 60 फीट ऊँचे मंच में घूमना होता है जो मेले का बड़ा आकर्षण होता है. झूलते समय मन्नत वाले व्यक्ति के ऊपर से नारियल फेंका जाता है. इस दौरान आदिवासी हक्कड़े बिर्रे का जयघोष करते हुए वातावरण को गुंजायमान करते हैं.
