Madhya Pradesh Diwali Traditions: मध्य प्रदेश में दिवाली पर्व पर अनोखी परंपराएं देखने को मिलती हैं. इन सभी अनोखी परंपराओं में कहीं लोग श्मशान की पूजा करते हैं तो कहीं पर एक दिन पहले ही दिवाली का पर्व मना लिया जाता है. एक जगह तो ऐसी है जहां गांव में रावण की मृत्यु का शोक मनाया जाता है.
श्मशान में दीप जलाकर मनाई जाती है दिवाली
रतलाम में लोग घरों में नहीं बल्कि घरों से बाहर निकलकर दिवाली के ठीक एक दिन पहले रूप चौदस पर त्रिवेणी श्मशान घाट पर जाकर दीपक लगाकर दिवाली मनाते हैं. इसके पीछे कहा जाता है कि दिवाली के एक दिन पहले श्मशान में ही दिवाली मना कर वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनके लिए दीये जलाकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं.
हिंगोट युद्ध में दिखता है शौर्य
मध्य प्रदेश के गौतमपुरा में दिवाली के दूसरे दिन यानी ढोक पड़वा के दिन पारंपरिक तरीके से हिंगोट युद्ध किया जाता है. इस युद्ध में तुर्रा और कलंगी नाम के दो गुट बनाए जाते हैं जो हिंगोट (बारूद से भरे एक खोखले फल) एक-दूसरे पर फेंकते हैं. इस युद्ध के बारे में कहा जाता है कि इसे शौर्य के प्रदर्शन के लिए आयोजित किया जाता है. इस युद्ध में किसी भी दल की हार या जीत नहीं होती. यह युद्ध तब तक जारी रहता है जब तक हिंगोट खत्म नहीं हो जाते. हिंगोट खत्म होने के बाद युद्ध समाप्त हो जाता है.
गोहरी पर्व में गायों के नीचे लेटते हैं लोग
मध्य प्रदेश के झाबुआ और मालवा क्षेत्र में दिवाली पर एक अनोखी रीति देखने को मिलती है. इस रीति को गोहरी पर्व या गाय-गौरी पूजा के नाम से जाना जाता है. इस परंपरा में लोग मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद दिवाली के दूसरे दिन गायों को सजाया जाता है और उन गायों के नीचे लोग जमीन पर लेट जाते हैं. इसके बाद लोगों के ऊपर से गायें गुजरती हैं. माना जाता है कि इस परंपरा का पालन करने वालों को सुख-समृद्धि मिलती है.
धनगांव में एक दिन पहले मनाई जाती है दिवाली
मध्य प्रदेश के मंडला जिले में स्थित धनगांव में वहां के ग्रामीण दिवाली का पर्व तय तिथि से एक दिन पहले ही मना लेते हैं. इसके पीछे ग्रामीणों का कहना है कि वे हर साल दिवाली, होली और हरियाली अमावस्या जैसे त्योहार तय तिथि से एक दिन पहले ही मना लेते हैं क्योंकि उनका मानना है कि यदि वे तय समय पर त्योहार मनाएंगे तो गांव में कोई अनहोनी हो सकती है.
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दो महीने तक चलती है आदिवासी दिवाली
मध्य प्रदेश के धार जिले के लगभग 62 आदिवासी गांवों में दिवाली का पर्व करीब दो महीनों तक मनाया जाता है. इसके पीछे कोई मान्यता नहीं है बल्कि इस प्रथा को ग्रामीणों ने अपने हिसाब से बनाया है. यह परंपरा सालों पुरानी है जिसमें दिवाली की कोई तय तिथि नहीं होती. जब गांव का मुखिया या पटेल जो तारीख निर्धारित कर देता है, उसी दिन दिवाली मनाई जाती है.
रावणवाड़ा में रावण की मृत्यु का शोक
मध्य प्रदेश के रावणवाड़ा में गोधा श्रीमाली ब्राह्मण अपने आप को रावण का वंशज मानते हैं. उनका कहना है कि रावण के विवाह के समय बारात में आए गोधा परिवार के लोग मंडोर में ही बस गए थे. जिसकी वजह से वे खुद को रावण का वंशज मानते हैं. गांव के लोग रावण को विद्वान, संगीतज्ञ और शिवभक्त मानते हैं, जिसके चलते वे रावण दहन जैसी परंपरा नहीं निभाते और दिवाली के दिन रावण दहन का सवा महीने का शोक मानते हैं.
