MP News: गर्मी से राहत पाने के लिए अगर आप सड़क किनारे खड़े होकर नींबू पानी, शिकंजी, गन्ने का जूस या फिर 10 से 15 रुपए में मिलने वाले मैंगो शेक को पी रहे हैं तो थोड़ा सावधान हो जाएं. बता दें कि इन दिनों अधिकांश दुकानों में कोल्ड ड्रिंक के नाम पर दूषित पानी पिलाया जा रहा है, जो आप की सेहत को बिगाड़ सकता है. खाद्य विभाग के द्वारा ऐसे ठेलों पर कोई निरीक्षण नहीं किया गया है, यही वजह है कि मीठा जहर बेचने वाले के हौसले बुलंद हो गए हैं.
विस्तार न्यूज़ की पड़ताल में बड़ा खुलासा
इन दिनों आने वाले आमों की कीमत 120 से 100 रुपए किलो तक है. ऐसे में 10 से 15 रुपए में एक ग्लास मैंगो शेक कई सवालों को जन्म देता है. विस्तार न्यूज़ की टीम ने मैंगो शेक के नाम पर मीठा जहर पिलाने वाले ठेलो पर बड़ी पड़ताल की तो पता चला आम जैसा कलर लाने के लिए दूध के अलावा अन्य कैमिकल्स मिलाए जाते हैं और जिस दूध का उपयोग किया जाता है, वह दूध केवल सफेद रंग का होता है. इसलिए इनको मैंगो शेक नहीं, बल्कि केमिकल और बर्फ वाला रस कहा जाए तो ठीक रहेगा. वहीं, लोगों की सेहत को लेकर जब मुख्य खाद्य सुरक्षा अधिकारी देवेंद्र दुबे से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ऐसी शिकायतों पर कार्यवाही हो रही है.
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मैंगो शेक की मांग गर्मी के साथ बढ़ती जा रही है. न्यू मार्केट, जहांगीराबाद, जिंसी, इतवारा बाजार में सड़क किनारे चल रहे जूस कार्नरों में बेचा जा रहा शेक आम का नहीं, बल्कि केमिकल और बर्फ मिक्स रस है. इसमें आम की मात्रा नाम मात्र होती है. आम जैसा स्वाद लाने के लिए इसमें एसेस व कलर के लिए दूध के अलावा अन्य केमिकल्स मिलाए जाते हैं. इसमें बर्फ की मात्रा सबसे ज्यादा होती है. इस कारण एक गिलास शेक की लागत अधिकतम तीन रुपए होती है. इसे लोगों को 10 रुपए में बेचा जा रहा है. बता दें कि दूषित पेय पीने से डायरिया, फूड पॉइजनिंग, आंत में इंफेक्शन, अल्सर, गुर्दे और लीवर पर प्रभाव आदि बीमारियां हो सकती हैं. गर्मी में डायरिया के वायरस एवं बैक्टीरिया ज्यादा सक्रिय होने के साथ-साथ आसानी से एक जगह से दूसरे जगह अपनी पहुंच बना लेते हैं. मैंगो जूस को थोड़ा गाढ़ा और स्वादिष्ट बनाने के लिए सेकरीन का उपयोग शक्कर की जगह मीठा करने के लिए किया जाता है.
नियमों को नहीं मानने वालों के खिलाफ होनी चाहिए कार्रवाई
नए खाद्य सुरक्षा कानून के तहत खाद्य सुरक्षा अधिकारियों की जिम्मेदारी केवल जांच और कार्रवाई तक सीमित नहीं है. बल्कि छोटे दुकानदारों को हाइजीन और नियमों की जानकारी देना भी उनकी जिम्मेदारी है. लेकिन अभी तक केवल औपचारिकता के लिए कुछ हॉकर्स कॉर्नर पर ही प्रशिक्षण आयोजित किया गया है. अधिकारियों को इन छोटे दुकान वालों को भी पहले प्रशिक्षण देना चाहिए, उसके बाद नियमों को नहीं मानने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होना चाहिए. कानून के अनुसार, खाद्य पदार्थों में मिलावट की पुष्टि होने पर संबंधित कोर्ट दो लाख रुपाए जुर्माना सहित छह महीने की सजा सुना सकती है.