Vistaar NEWS

MP News: ग्वालियर के जय विलास पैलेस के दरबार हॉल में लगा है 560 किलो सोना; 3500 किलो का झूमर, डायनिंग टेबल पर चलती है चांदी की ट्रेन

Jai Vilas Palace, Gwalior

जय विलास पैलेस का निर्माण साल 1874 में जयाजी राव सिंधिया ने करवाया था

MP News: ग्वालियर जिसे जिब्राल्टर ऑफ इंडिया के नाम से भी जानते है. शहर के बिल्कुल बीचों-बीच पहाड़ पर खड़े विशाल किले कारण इसे ये नाम मिला. इस किले पर हजारों साल से कई सारे शासकों ने राज किया. इसका संबंध सिंधिया राजवंश से भी रहा. ग्वालियर शहर को सिंधिया राजवंश और ग्वालियर के किले के बिना देख पाना मुश्किल है. सिंधिया राजवंश ने यहां कई इमारतें बनवाई जिनमें से एक है जय विलास पैलेस.

150 साल पहले बने महल की कीमत आज 4 हजार करोड़ रुपये

जय विलास पैलेस भारत के सबसे बड़े महलों में से एक है. ये 12 लाख, 40 हजार, 771 वर्ग फीट में फैला है. तीन मंजिला इस महल का रंग सफेद है. इसे बनवाने में साल 1874 में 1 करोड़ रुपये खर्च आया था. आज के समय इसका अनुमान लगाया जाए तो ये 4 हजार करोड़ रुपये आता है. ये भारत की सबसे मूल्यवान इमारतों में से एक बन जाती है.

Jai Vilas Palace Durbar Hall
जय विलास पैलेस में स्थित दरबार हॉल

दरबार हॉल जिसे सजाने के लिए 560 किलो सोना इस्तेमाल हुआ

जय विलास महल में कई सारे आकर्षण हैं. इस महल का दरबार हॉल उनमें से एक है. जब ये महल बना था तो इसका उपयोग समारोह के आयोजनों के लिए किया जाता था. आजादी से पहले और बाद में इस दरबार हॉल का उपयोग किया गया. इन आयोजनों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर विदेशी मेहमान तक शामिल हुए. ये हॉल भारत के सबसे शानदार और महंगे हॉल में से एक है.

दरबार हॉल की सजावट देखती ही बनती है. इस हॉल का निर्माण कोरेंथियन स्टाइल में किया गया है. हॉल में बने डोम की बात करें तो ये रोम में स्थित सेंट पीटर कैथेड्रल की तर्ज पर बनाया गया है. आप इस बात को जानकर हैरान रह जाएंगे कि हॉल को सजाने में 560 किलो सोने का उपयोग किया गया है. लाल, सफेद और गोल्डन रंग का कॉम्बिनेशन बेहद शानदार लगता है. दीवारों और छत में सोने को पिघलाकर इसका उपयोग किया गया है. इस हॉल में एक कार्पेट बिछा हुआ है जिसकी लंबाई 90 फीट और चौड़ाई 40 फीट है. इसे हाथों से बुनकर बनाया गया था.

ये भी पढ़े: MP News: स्टैच्यू ऑफ वननेस; भारत का सबसे ऊंचा शंकराचार्य का स्टैच्यू, 500 साल तक नर्मदा के बीचों-बीच खड़ा रहेगा

दुनिया के सबसे बड़े झूमर जिनका वजन 3500 किलो

जय विलास पैलेस में टूरिस्ट जिन चीजों को बेसब्री से देखने आते हैं उनमें से एक है यहां के विशाल झूमर. महल के दरबार हॉल में दो विशालकाय झूमर लगे हैं. बेल्जियम ग्लास से बने इन झूमरों का वजन 3500 किलो बताया जाता है. इन झूमरों के बारे में कई बातें सामने आती हैं. ऐसा कहा जाता है कि झूमर लगाने से पहले हॉल की छत की मजबूती को जांचा गया. इसे जांचने के लिए 8 हाथियों को 7 दिन छत पर रखा गया. रैंप बनाकर हाथियों को छत तक पहुंचाया गया था.

इन शानदार झूमरों की बात करें तो इनकी ऊंचाई 12.5 मीटर है. इनमें 248 बल्ब लगे हुए हैं. ऐसा कहा जाता है कि इन झूमरों को साफ करने में मजदूरों को एक महीने से अधिक का समय लग जाता है.

डायनिंग टेबल पर दौड़ती है चांदी की ट्रेन

महल में एक विशाल और शानदार बैंक्वेट हॉल है. इस हॉल को डायनिंग हॉल की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इस हॉल में तीन डायनिंग टेबल हैं. इनमें से एक नॉन वेज डिशेज के लिए, दूसरी वेज डिशेज के लिए और तीसरे या सेंट्रल डायनिंग टेबल रिफ्रेशमेंट और ड्रिंक के लिए उपयोग किया जाता था. आज भी कई विशेष आयोजनों पर इस बैंक्वेट हॉल का इस्तेमाल किया जाता है.

इस हॉल का मुख्य आकर्षण इसकी सेंट्रल टेबल पर चलने वाली चांदी की ट्रेन है. ये ट्रेन एक ट्रैक पर पूरी टेबल पर घूमती है. इस ट्रेन में कई सारी बोगी हैं जिनमें ड्राय फ्रूट और ड्रिंक चग्स रखे होते हैं. पहले जहां इस ट्रेन को चलाने के लिए बैटरी का इस्तेमाल होता था आज इसे बिजली से चलाया जाता है. जैसे ही ट्रेन की बोगी के ढ़क्कन को खोला जाता है तो ट्रेन रुक जाती है.

इसी महल में है दुनिया के सबसे बड़े कालीन में से एक

दुनिया के सबसे बड़े कालीन में से एक कालीन को यहां देखा जा सकता है. ईरान से आए इस कालीन की कई सारी खासियत है. इसे पिक्टोरियल कालीन कहा जाता है यानी इसमें दुनिया की महान शख्सियतों को उकेरा गया है. कुल मिलाकर 185 शख्सियत हैं जिनमें ईसा मसीह, नेपोलियन बोनापार्ट, नादिर शाह, लुई 14 शामिल हैं. इसे ईरान के केरमान शहर में रहने वाले मोहम्मद इब्न जाफर ने साल 1870 से 1910 के बीच बनाया था.

तीन आर्ट का बेमिसाल नमूना है जय विलास पैलेस

इस महल का निर्माण जयाजीराव सिंधिया ने साल 1874 में करवाया था. महल का डिजाइन सर माइकल फिलोज ने तैयार किया था. इसमें तीन अलग-अलग आर्ट वर्क देखने को मिलते हैं. जय विलास महल में कुल तीन मंजिल हैं. पहली मंजिल को टस्कन स्टाइल में बनाया गया है जिसे यूरोपियन स्टाइल भी कहा जाता है. दूसरी मंजिल को इटैलियन और तीसरी को कोरिंथियन स्टाइल में बनाया गया है.

महल में 400 कमरे हैं जिनमें से 35 कमरों को म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया है. इस महल में इनडोर स्वीमिंग पूल भी है जो भारत के सबसे पुराने स्वीमिंग पूल में से एक है.

अबकर की जुल्फिकार तलवार से लेकर चांदी की पालकी

ये बहुत कम लोग जानते हैं कि मुगल सम्राटों को बनाने में सिंधिया राजाओं का बहुत बड़ा हाथ रहा है. इसे इस तरह कहा जा सकता है कि सिंधिया राजाओं ने कई सालों तक अपनी पसंद के मुगल राजाओं को गद्दी पर बैठाया. मुगलों के समय की कई सारी चीजें जय विलास महल के म्यूजियम में हैं. इनमें से एक जुल्फिकार तलवार है. इस तलवार की खासियत दो मुख वाला होना है. ये सामने से दो भागों में बंट जाती है.

म्यूजियम में कई सारी गैलरी हैं जिनमें पालकी गैलरी है जहां चांदी की पालकी को देखा जा सकता है. अस्त्र-शस्त्र गैलरी, कपड़ों की गैलरी, विदेशों से मिले लकड़ी, आइबरी और दूसरे बेशकीमती सामग्री से बने सामान को देखा जा सकता है.

Exit mobile version