MP Politics: मध्य प्रदेश में भाजपा को पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल, मालवा और विंध्य से अच्छा समर्थन मिला था. आधी आबादी यानि महिलाओं का भी वोटिंग प्रतिशत अच्छा खासा रहा था. लेकिन हाल ही में प्रदेश की सभी 29 सीटों में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में जहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत औंधे मुंह गिरा. वहीं, दूसरी ओर विधानसभा में अच्छी खासी बढ़त देने वाले इन क्षेत्रों में भाजपा के लोकसभा प्रत्याशियों को लेकर नाराजगी भी सामने आई. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इसका असर चार जून को आने वाले लोकसभा परिणामों मे दिखाई दे सकता है.
मध्य प्रदेश में चारों चरणों के मतदान के बाद हो रही समीक्षा में पाया गया कि केवल पीएम मोदी के नाम पर वोट मांगे गए. चुनाव लोकसभा के हों या विधानसभा के हर क्षेत्र की अपनी अलग कहानी रहती है. लोकसभा चुनाव में तो मुद्दे भी प्रदेश में एक ही रहते हैं पर मतदाताओं की अलग-अलग पसंद सामने आती रही है.
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6 महीने में बदल गई परिस्थितियां
भाजपा ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हराकर कमल खिला दिया था. वह ग्वालियर क्षेत्र की 34 सीटों में से आधे से अधिक सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही, लेकिन ठीक 6 महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में परिस्थितियां बदल गई. ग्वालियर सीट पर भाजपा प्रत्याशी भरत सिंह कुशवाहा के खिलाफ पार्टी में ही नाराजगी थी. कार्यकर्ताओं से लेकर संगठन ने भी कुशवाह को जिताने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. वहीं, मुरैना में भी भाजपा प्रत्याशी शिवमंगल सिंह तोमर को भी संगठन की नाराजगी झेलनी पड़ी. वहां भी कांग्रेस प्रत्याशी सत्यपाल सिंह सिकरवार ने भाजपा का पसीना छुड़ा दिया. जबकि भिंड में भाजपा की डॉक्टर संध्या राय को एंटी-इनकम्बेंसी झेलनी पड़ी.
महिलाओं की वोट के प्रति उदासीनता ने बढ़ाई चिंता
पहले चरण में 19 अप्रैल को बालाघाट, छिंदवाड़ा, मंडला सीट में भाजपा के सामने कांग्रेस ने कड़ी चुनौती पेश की. मालवा निमाड़ में भी भाजपा को आदिवासी क्षेत्रों में नाराजगी झेलनी पड़ी. तीन आदिवासी सीटों वाले इस क्षेत्र को लोकसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के बीच कड़ा संघर्ष देखने को मिलेगा. भले ही भाजपा राज्य की सभी 29 सीटें जीतने का दावा कर रही है, लेकिन गिरते मतदान प्रतिशत और महिलाओं की वोट के प्रति उदासीनता ने चिंता बढ़ा रखी है. हालांकि, नतीजे आने पर ही स्पष्ट होगा कि मतदान में गिरावट से किसको फायदा और किसको नुकसान हुआ.