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Orchha: आखिर क्यों भगवान श्रीराम को अयोध्या छोड़कर ओरछा में निवास करना पड़ा?

orcha ram mandir

ओरछा

Orchha: अयोध्या से ओरछा का संबंध करीब 600 साल पुराना है.अयोध्या के कण-कण में राम हैं. तो ओरछा की धड़कन में भी राम बसते हैं. आज हर भारतवासी अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा देखकर भावभिभोर हो रहा है. राम भक्त अपने आराध्य देव श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माणकार्य के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं. अयोध्या में भगवान राम को बाल स्वरूप में पूजा जाता है. देश में प्रभु श्रीराम के अनकों मंदिर हैं जहां लोग भगवान राम की पूजा करते हैं. लेकिन मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित ओरछा नगरी में भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है. यहां प्रभु राम किसी मंदिर में नहीं बल्कि महल में विराजमान हैं. उनका आदर-सत्कार राजा की तरह ही किया जाता है. 

अयोध्या…से ओरछा कैसे आए भगवान राम

आखिर क्यों प्रभु श्रीराम को अयोध्या छोड़कर ओरछा में निवास करना पड़ा. 

बुंदेली कहावत-  राजा अवध नरेश के दो निवास हैं खास, 

                       दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास 

क्या है कहानी

बेतवा नदी के तट पर बसा ऐतिहासिक नगर ओरछा, मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित है. 16वीं शताब्दी में ओरछा नगर की स्थापना  बुंदेला राजपूत रूद्र प्रताप ने की थी. यहां से बेतवा नदी सात भागों में विभाजित होती है. वैसे तो यहां कई ऐतिहासिक धरोहर हैं, लेकिन शहर में प्रमुख है श्रीराम राजा का दरबार.

जानकार बताते हैं कि 18वीं शताब्दीं में बुंदेलखंड के राजा मधुकर शाह हुआ करते थे.जो भगवान कृष्ण के भक्त थे. इनकी महारानी कुंवर गणेश  प्रभु श्रीराम की भक्त थीं. जहां राजा मधुकर शाह अपनी कृष्ण भक्ति के लिए मथुरा जाया करते थे, तो रानी कुंवर गणेश  भगवान राम की भक्ति के लिए अयोध्या जाया करती थीं. कहते हैं कि एक बार राजा मधुकर शाह जब मथुरा गए, तो कृष्ण का दरवार बंद था. अपने अराध्य देव के दर्शन ना पाने की वजह से राजा मधुकर शाह ने भक्ति भाव में लीन होकर ऐसे राग गाए कि भगवान कृष्ण को दर्शन देने आना ही पड़ा. लेकिन मधुकर शाह तो लीन थे तब वहां बिखरे पड़े फूलों को देखकर वो समझ गए कि भगवान ने इन्हें दर्शन दिए.

इसी बात से वो बेहद खुश हुए और ओरछा आने पर उन्होंने रानी से कहा कि भगवान कृष्ण मुझसे प्रसन्न हो हुए और दर्शन दिए. एक तुम्हारे राम है कि तुम जमीन पर बैठी हो उनका ध्यान कर रही है और भगवान खड़े हुए हैं वो तुम्हारी सुनते ही नहीं तुम कृष्ण के दर्शन के लिए मथुरा चलो. लेकिन रानी कुंवर गणेश तो राम भक्त थीं और राजा मधुकरशाह की बात से नाराज हो गईं और कहा कि मैं तो प्रभु श्रीराम को ही पूजती हूं. वो अयोध्या जाने के लिए निकल पड़ीं. तब राजा ने उन्हें रोककर कहा कि आपको अयोध्या राम भक्ति के लिए जाना है तो जाएं. लेकिन जब आप अपनी नगरी वापस ओरछा लौटें तो अपने राम को साथ लेकर आएं, तब मैं मानू. 

महारानी ने महीनों किया तप

कहते हैं कि अयोध्या पहुंचकर महारानी कुंवर गणेश ने करीब एक महीने तक सरयू नदी में कठोर तप किया. लेकिन भगवान राम ने उन्हें दर्शन नहीं दिए, जिसस दुखी होकर महारानी नदी में प्राण त्यागने के लिए गई, तो पानी में डूबते ही उनकी गोद में प्रभु श्रीराम की मूर्ति आ गई, जिसको लेकर रानी नदी से बाहर निकलीं.

कहानी त्रेता युग की 

कहा जाता है कि त्रेता युग में यही मूर्ति थी जो माता कौशल्या ने तब बनाई थी. जब राम का 14 वर्ष का वनवास हुआ था. माता कौशल्या राम के स्थान पर इसी मूर्ति को 14 वर्ष के लिए सिंहासन पर रखना चाहती थीं, वो इसकी पूजा पाठ कर रही थीं. तभी उनकी दासियों ने उन्हें झूठ बोल दिया कि राम वनवास से लौट आए हैं. अपने बेटे से मिलने के लिए वो राजमहल में दौड़ीं. इस जल्दबाजी में मूर्ति पानी में गिर गईं, लेकिन महल में राम को ना पाकर वो दुखी हो गईं. कहा जाता है कि 18वीं शताब्दी में यही मूर्ति मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुंवर गणेश को नदी में कूदते वक्त मिली थी. 

मेरे साथ ओरछा चलो राम लला

राम के दर्शन होते ही महारानी ने श्रीराम से हठ किया कि अगर आप मेरे तप से खुश हैं, तो आपको अयोध्या छोड़कर मेरे साथ मेरी नगरी ओरछा चलना होगा. महारानी की बात सुनकर भगवान श्रीराम ने कहा कि मैं तुम्हारी तपस्या से खुश हूं, मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूं, लेकिन मुझे तीन वचन देने होंगे, महारानी कुंवर ने कहा कि मैं आपके तीन वचन मानने को तैयार हूं, बताएं प्रभु-

प्रभु राम ने लिए थे तीन वचन

1-पहला वचन-  मैं अयोध्या से ओरछा तक की यात्रा पैदल करूंगा

2-दूसरा वचन -जहां पर हमें पहले विराजमान कर दिया जाएगा, फिर वहां से हम नहीं हटेंगे 

3-तीसरा वचन -जिस नगरी में हम जा रहे हैं, वहां कोई दूसरा राजा कभी नहीं होगा.

भगवान के इस तीसरे वचन का पालन ओरछा नगरी में आज तक होता आ रहा है. देश को आजादी मिली, लोकतंत्र बना, कई गर्वनर और मुख्यमंत्री रहे . लेकिन आज भी ओरछा नगरी में किसी भी गवर्नर या फिर मुख्यमंत्री विधायक या प्रशासनिक अधिकारी को गॉड ऑफ ऑनर नहीं दिया जाता. यहां तक की कोई भी अधिकारी यहां अपनी गाड़ी की लालबत्ती नहीं जलाता. 

जानें क्यों मंदिर छोड़ महल में विराजे प्रभु राम-

प्रभु राम के 3 वचन की हामी भरकर महारानी कुंवर गणेश अयोध्या से पैदल ओरछा के लिए रवाना हुईं. इस बीच उन्होंने राजा मधुकर शाह को पत्र लिखकर सूचना दी कि वो अयोध्या से राम को ओरछा ला रही हैं. अब प्रभु राम का स्वागत सत्कार राजा की तरह ही होना चाहिए.

8 महीने 28 दिनों तक चली पैदाल

जानकार बताते हैं कि महारानी कुंवर गणेश अयोध्या से 8 महीने 28 दिन पैदल चलकर ओरछा पहुंचीं. इस बीच राजा मधुकर शाह ने ओरछा नगरी में एक भव्य मंदिर का निर्माण कार्य करवाना शुरू दिया था जिसे आज चतुर्भुज मंदिर कहा जाता है. लेकिन जब महारानी महल पहुंचीं तो गर्भगृह का काम पूरा नहीं हुआ था. उधर महारानी जब ओरछा पहुंचीं, तो खुशी के मारे भगवान को दिए दूसरे वचन को भूल गईं. उन्होंने भव्य महल की रसोई में ही मूर्ति की रख दी कि और ये सोचा कि जब मंदिर का निर्माण पूरा होगा, तो उसे वहां स्थापित कर दिया जाएगा. लेकिन ऐसा हो ना सका, जिसके चलते राम महल की रसोई में ही विराजमान हो गए. इस तरह भगवान राम ओरछा में मंदिर की जगह महल में विराजमान हुए.

राजा श्रीराम को दिया जाता है गॉड ऑफ ऑनर

राजा मधुकर शाह ने कहा कि अब राम नगर के महल में विराजमान हैं, तो उनका सत्कार भी राजा की भांति ही होना चाहिए. इसलिए श्रीराम राजा का दरबार ओरछा नगरी में सदियों से चलता आ रहा है. रोजना सुबह -शाम 9 बजे वर्दीधारी पुलिसकर्मी राजा राम को गॉड ऑफ ऑनर देते हैं. इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से दो पुलिसकर्मी राजा राम के दरबार में तैनात रहते हैं. राजा राम दिन भर अपना राज-पाठ ओरछा से संचालित करते हैं, और रात्रि विश्राम के लिए अयोध्या चले जाते हैं.

श्रीराम राजा की मूर्ति की विशेषता

श्रीराम राजा मंदिर में राजा राम की मूर्ति बड़ी विशेष है. अब तक आपने प्रभु श्रीराम के जितने भी मंदिर देखे होंगे, उसमें तस्वीर या फिर मूर्ति हमेशा सीधे खड़ी रहती है. लेकिन ओरछा में श्रीराम राजा की तरह बैठे हुए रूप में विराजमान हैं. क्योंकि राजा दरबार में जिस तरह बैठते हैं, उसी पॉश्चर में राजा राम की मूर्ति बैठे हुए नजर आएगी. 

ब्रह्म मुहूर्त में नहीं खुलता मंदिर 

भारत के अधिकतर मंदिर ब्रह्म मुहूर्त में या फिर सुबह जल्दी खुल जाते हैं. लेकिन ओरछा का श्रीराम राजा मंदिर प्रात: काल नहीं बल्कि सुबह नौ बजे खुलता है, क्योंकि राजा राम रात्रि विश्राम करने के लिए अयोध्या जाते हैं. ऐसे में सुबह उन्हें जल्दी नहीं जगाया जाता है. राजा राम का दरबार सुबह 9 बजे से एक बजे तक खुलता है, फिर राज भोग का वक्त होता है, जिसके बाद मंदिर बंद हो जाता है. फिर मंदिर शाम को 7 बजे खुलता है और रात्रि 9 बजे विश्राम आरती होती है और पास में ही बने हनुमान मंदिर से हनुमान जी को जगाया जाता है, ताकि वो राजा राम को अयोध्या तक की यात्रा करवाएं. दिनभर ओरछा से अपना राज-पाठ देखने के बाद राजा राम अयोध्या में विश्राम करने के लिए जाते हैं. सदियों से लोग इसे ही मानते आ रहे हैं. आस्था और भक्ति से सरावोर लोग अयोध्या से राम राजा के अपनी हाजरी लगाने महल में आते हैं. 

लक्ष्मी मंदिर की खासियत

श्रीराम राजा मंदिर के पास ही स्थित है लक्ष्मी मंदिर, इसकी विशेषता ये है कि मंदिर की आकृति उल्लू के आकार की है. जब आप मंदिर को दूर से देखेंगे. आपको लगेगा कि एक उल्लू उड़ान भरने के लिए तैयार है. उल्लू लक्ष्मी जी का वाहन है. राजा वीर सिंह बुंदेला ने इसे बनवाया था और यहीं पर 18वीं में बुंदेली आर्ट की पेंटिंग भी बनी हैं.

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