छत्तीसगढ़ में हैं पितृपक्ष की 7 पत्तों की अनोखी परंपरा, पितरों से मिलता पुण्य
श्वेक्षा पाठक
छत्तीसगढ़ में पितृपक्ष की परंपरा 7 सितंबर से शुरू हो चुकी है और इसका समापन 21 सितंबर तक होगा. छत्तीसगढ़ में पितृपक्ष केवल श्राद्धकर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक पर्व की तरह मनाया जाता है.इस दौरान बड़ा सुहारी बनाया जाता है, जो खास व्यंजन है और पितरों को नैवेद्य के रूप में अर्पित किया जाता है.नैवेद्य चढ़ाने के लिए तरोई (तुरई) के सात पत्तों का उपयोग किया जाता है. इन पत्तों पर सात अलग-अलग प्रकार के भोजन परोसे जाते हैं. पूजा-पाठ और तर्पण की सारी प्रक्रिया घर के मुखिया द्वारा की जाती है. बाद में पितरों को अर्पित भोग में से बचा हुआ प्रसाद घर के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं. छत्तीसगढ़ की यह अनूठी परंपरा न सिर्फ धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि इसमें सामाजिक और पारिवारिक जुड़ाव का भी संदेश छिपा है. यही कारण है कि पितृपक्ष में पूरा परिवार एक साथ मिलकर इन रस्मों को निभाता है