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“हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं…” – Ravi Ashwin के बयान पर बखेड़ा, अब K Annamalai का भी आया बयान, जानिए बीजेपी नेता ने क्या कहा

Ravichandran Ashwin

रविचंद्रन अश्विन

Ravichandran Ashwin: एक भाषण में रविचंद्रन अश्विन ने हिन्दी भाषा पर एक टिपण्णी की जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. हाल ही में चेन्नई स्थित एक इंजीनियरिंग कॉलेज के कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए रविचंद्रन अश्विन ने कहा कि “हिंदी भारत की राष्ट्रीय भाषा नहीं है.” उन्होंने इस बयान के साथ भाषा विवाद को हवा दी. अश्विन ने छात्रों से हिंदी में सवाल पूछने को कहा, लेकिन किसी ने हिंदी में सवाल पूछने में रुचि नहीं दिखाई. इसके बाद अश्विन ने कहा, “हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है, यह केवल एक राजभाषा है.”

अश्विन के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई. कुछ लोगों ने उनके बयान का समर्थन किया, तो कुछ ने इसे अनावश्यक बताया. एक यूजर ने लिखा, “अश्विन को इस तरह के विवादास्पद विषयों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. भाषा का मुद्दा व्यक्तिगत पसंद पर छोड़ देना चाहिए.” वहीं, कुछ लोगों ने इसे सकारात्मक रूप से लिया और क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया.

बीजेपी नेता अन्नामलाई ने किया समर्थन

अश्विन के बयान ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी. बीजेपी नेता अन्नामलाई ने इस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “सही है. हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है ऐसा ही मैं भी आपको बता रहा हूं. ऐसा सिर्फ़ अश्विन को ही नहीं कहना है…यह राष्ट्रीय भाषा नहीं है. यह एक संपर्क भाषा थी, यह सुविधा की भाषा है…”

डीएमके ने अश्विन के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि “जब देश में कई राज्य अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, तो हिंदी को राजभाषा कहना उचित नहीं है.” वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने इस बयान को लेकर प्रतिक्रिया देते हुए अपील की कि “भाषा विवाद पर बहस को फिर से न बढ़ाया जाए.”

क्या हिंदी है राष्ट्रभाषा या राजभाषा?

भारतीय संविधान के अनुसार, भारत की कोई राष्ट्रीय भाषा नहीं है. 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था. संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343(1) में यह स्पष्ट किया गया है कि हिंदी देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा होगी. इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है.

सरकारी कार्यों में हिंदी को प्राथमिकता देने का उद्देश्य एक साझा भाषाई आधार बनाना है, लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर असंतोष और बहस हमेशा बनी रहती है. अश्विन का बयान इसी पुरानी बहस को फिर से जीवित कर गया है.

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