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हारमोनियम बजाने से लेकर ओलंपिक में मेडल लाने तक… बेहद दिलचस्प है हरमनप्रीत सिंह की कहानी, इस बार भी हॉकी स्टिक से लगाई आग

Harmanpreet Singh

Harmanpreet Singh

Harmanpreet Singh: स्पेन को 2-1 से हराकर भारत ने पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीत लिया. पिछले टोक्यो ओलंपिक में भी देश ने हॉकी का कांस्य पदक जीता था. हॉकी टीम के जज्बे को देख कर अब कहा जा सकता है कि इंडियन हॉकी के सुनहरे दिन अब फिर से लौट आएंगे. भारतीय हॉकी टीम ने इस बार पूरे पेरिस ओलंपिक में जो खेल दिखाया, वो गजब का रहा है. लेकिन एक खिलाड़ी जिसने सबका दिल जीता है वो है हरमनप्रीत सिंह.

स्पेन के खिलाफ दागे 2 गोल

हरमनप्रीत ने पेरिस ओलंपिक में भारतीय टीम के लिए सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे हैं. हरमन ने स्पेन के खिलाफ आज के मैच में भी 2 गोल दागे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज मैदान में गोली की रफ्तार से गोल दागने वाले हरमनप्रीत को हॉकी में कोई इंटरेस्ट ही नहीं था? आज जिस हरमनप्रीत के हाथ में हॉकी स्टिक है कभी उस हाथ में हारमोनियम होता था. आइये आज यही दिलचस्प किस्सा बताते हैं.

मेले से हॉकी स्टिक नहीं, हारमोनियम लाया

दरअसल, हरमनप्रीत के पिता सरबजीत सिंह कहते हैं, “एक बार सिख धर्म के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह के बेटे बाबा गुरदित्ता जी की याद में गांव में मेला लगा था. उस वक्त हरमनप्रीत हॉकी स्टिक नहीं बल्कि मेले से हारमोनियम ले आया था. हरमनप्रीत को बचपन से ही गाना बजाना पसंद था.”

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स्कूल के टीचर ने हॉकी में दाखिला: हरमनप्रीत के पिता

सरबजीत सिंह कहते हैं, “निक्के हुंदे बस गांव दा शैक सी हरमनप्रीत नू (जब वह एक बच्चा था, तो उसे केवल गायन का शौक था).  हम जिस भी गांव के मेले में जाते, वह मुझसे एक हारमोनियम लाने का आग्रह करता और एक बार जब मैं उसे दे देता, तो वह अपना समय संगीत वाद्ययंत्र के साथ बिताता. फिर स्कूल में एक कोच ने उसे हॉकी में दाखिला दिलाया. धीरे-धीरे हरमनप्रीत की इस खेल में रुचि बढ़ती गई. अपने ड्रैग-फ्लिक्स से उन्होंने गोलकीपरों को अपने इशारों पर नाचने पर मजबूर कर दिया है और उन्हें भारत के लिए लगातार दो ओलंपिक पदक जीतने में अपनी भूमिका निभाते देखना हम सभी के लिए एक खास एहसास है.”

धीरे-धीरे हॉकी में बढ़ती गई रुचि: हरमनप्रीत

हरमनप्रीत आगे कहते हैं, “हमारे गांव में, ज्यादातर युवा गांव के मैदान में हॉकी खेलते थे और ऐसे भी दिन होते थे जब मैं अपने पिता की खेत में मदद करने के बाद आराम करने के लिए अपने दोस्तों के साथ हॉकी खेलता था.” हरमनप्रीत ने एक बार कहा था कि धीरे-धीरे हॉकी में मेरी रुचि बढ़ती गई और मैं जालंधर में विभिन्न अकादमियों के लिए ट्रायल में शामिल होने लगा, इस उम्मीद में कि वहां सीट मिल जाएगी.” जंडियाला गुरु के सेंट सोल्जर स्कूल में सिंह ने पहली बार दस साल की उम्र में हॉकी की ट्रेनिंग शुरू की थी. आज वह भारत के कप्तान हैं.

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