Starlink internet: भारत की प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों में से एक भारती एयरटेल (Airtel) ने सैटेलाइट के जरिए कम्युनिकेशन सर्विस देने के लिए एलन मस्क (Elon Musk) की कंपनी SpaceX के साथ समझौता किया है. दोनों कंपनियों ने इस बारे में एक डील का ऐलान किया है. ये साझेदारी SpaceX के सैटेलाइट इंटरनेट डिवीजन Starlink के जरिये देश के ग्राहकों को हाई-स्पीड इंटरनेट सर्विस प्रदान करने के लिए की गई है. इस डील के बाद स्पेसएक्स की भारत में एंट्री का रास्ता साफ हो गया है. इस डील के बारे में भारती एयरटेल ने एक्सचेंज फाइलिंग में जानकारी दी है. फिलहाल यह डील अप्रूवल के लिए लंबित है.
दुनिया में 100 ऐसे देश हो गए हैं जहां सैटेलाइट नेटवर्क की शुरुआत हो चुकी है लेकिन भारत में अब तक सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट सर्विस शुरू नहीं हुई है।.भारत में सरकार ने अब तक भारती ग्रुप के निवेश वाले वनवेब और जियो-एसईएस के जॉइंट वेंचर जियो सैटेलाइट कम्युनिकेशंस को ही सैटकॉम का लाइसेंस जारी किया है. वहीं स्टारलिंक के अलावा ऐमजॉन ने भी लाइसेंस के लिए आवेदन किया है.
इंटरनेट यूजर्स का बड़ा मार्केट है भारत
भारत इस वक्त इंटरनेट यूजर्स का बड़ा मार्केट है, जहां 700 मिलियन इंटरनेट सब्सक्राइबर्स हैं. यह संख्या दिनों-दिन तेजी से बढ़ रही है. एक अनुमान के मुताबिक, 2025 तक इनकी संख्या 974 मिलियन के पार हो सकती है. देश में मौजूदा इंटरनेट स्पीड की बात करें तो 5G के आने से इंटरनेट स्पीड बढ़ी तो है लेकिन अभी भी गांव और दूर-दराज के इलाकों में फास्ट इंटरनेट सर्विस लोग यूज नहीं कर पाते हैं. हालांकि, SpaceX के स्टारलिंक प्रोजेक्ट से यह काम किया जा सकता है.
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रिपोर्ट्स की मानें तो इससे 150 Mbps तक की स्पीड से इंटरनेट प्रोवाइड किया जा सकता है. चूंकि, दूरदराज के इलाकों में फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाना काफी महंगा पड़ता है. ऐसे में सैटेलाइट बेस्ड इंटरनेट सर्विस की मदद से कम समय में पहुंचाया जा सकता है. अब सवाल यह है कि स्पेसएक्स की भारत में एंट्री से यहां की टेलीकॉम कंपनियों के लिए क्या चुनौतियां आ सकती हैं.
जियो को तत्काल खतरा नहीं!
इस पर एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर स्टारलिंक भारत में कारोबार के लिए आती है तो रिलायंस जियो और वोडाफोन आइडिया जैसी कंपनियों के लिए यह तत्काल खतरा नहीं बन पायेगी. इसके पीछे उनका तर्क है कि स्टारलिंक का इस्तेमाल दोनों भारतीय कंपनियों की तुलना में यूजर्स को काफी महंगा पड़ सकता है.
स्टारलिंक का ग्लोबल एवरेज मंथली टैरिफ जियो के फिक्स्ड ब्रॉडबैंड के मुकाबले चार से पांच गुना ज्यादा महंगा है. ऐसे में कस्टमर्स की पहली पसंद ये बनेगा, इसमें संदेह है. हालांकि, यदि यहां पर स्टारलिंक टैरिफ से समझौता करता है तो निश्चित तौर पर भारतीय कंपनियों खासकर जियो की टेंशन बढ़ सकती है.
एक और तथ्य यह है कि मुकेश अंबानी की कंपनी जियो, एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसी कंपनियों ने टेलीकॉम स्पेक्ट्रम और इंफ्रास्ट्रक्चर पर पिछले कई सालों में बहुत पैसा खर्च किया है. ऐसे में अगर स्टारलिंक भारत में दाखिल होती है तो उसे स्पेक्ट्रम के लिए पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे. पिछले दिनों इस मामले पर एयरटेल के प्रमुख सुनील भारती मित्तल ने कहा था कि जो सैटेलाइट कंपनियां भारत के अर्बन एरिया में काम करना चाहती हैं और रिटेल कस्टमर्स को सर्विस प्रोवाइड करना चाहती हैं, उन्हें भी दूसरों की तरह ही टेलीकॉम लाइसेंस के लिए भुगतान करना चाहिए. मित्तल का कहना था कि उन कंपनियों के लिए भी वही शर्तें होनी चाहिए जो दूसरी कंपनियों के लिए हैं.