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10 साल से BJP का गढ़, BSP का अब तक नहीं खुला खाता…जानें आगरा लोकसभा सीट का सियासी समीकरण

ताज महल

ताज महल

Agra Lok Sabha Seat: ताज महल और पेठे की स्वाद के लिए मशहूर आगरा उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में से एक है. बिना स्वाद के एक फल में विभिन्न फ्लेवर्स का जायका मिलाकर नया रूप दे दिया जाता है. पेठे की विशेषता भी यही है. ऐसे ही यहां की राजनीति भी है. पेठे और ताज महल की तरह यहां जनता को जो भाया उसे संसद तक पहुंचाया. मुगल शहंशाह की निशानी वाली इस सीट को लेकर सियासत भी खूब होती रही है. लेकिन जनता को जिससे भी ‘मोहब्बत’ हुई बार-बार उसके सिर पर ‘ताज’रख दिया. एक ही नेता को दो बार, तीन बार और पांच बार तक यहां के लोगों ने लोकसभा भेजा है.

इस सीट के लिए पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था. यह सीट वर्तमान में भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल के पास है, जिन्होंने 2009 के चुनावों के बाद से इस निर्वाचन क्षेत्र को बरकरार रखा है. उनसे पहले अभिनेता से नेता बने राज बब्बर दो बार इस सीट से सांसद बने.

आगरा लोकसभा सीट का इतिहास

आगरा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों के लिए आरक्षित है. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के अनुसार, यह सीट दलित इतिहास के लिए विशेष महत्व रखती है क्योंकि भारत के संविधान के निर्माता बीआर अंबेडकर ने अपना आखिरी भाषण मार्च 1956 में आगरा में दिया था.

2009 से यह सीट भाजपा का गढ़ रही है, राम शंकर कठेरिया ने 2009 और 2014 में निर्वाचन क्षेत्र जीता था और सत्यपाल सिंह बघेल ने 2019 में इसे जीता था. कठेरिया से पहले राज बब्बर ने दो कार्यकाल (1999, 2004) के लिए सीट पर कब्जा किया था. इससे पहले यह सीट सबसे लंबे समय तक कांग्रेस के सेठ अचल सिंह के पास थी, जिन्होंने 1952 से 1971 तक लगातार पांच बार जीत हासिल की थी. मोतीलाल नेहरू इनके परिवार के वकील थे.

आश्चर्य की बात है कि एससी सीट होने और इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में दलित आबादी होने के बावजूद मायावती की बहुजन समाज पार्टी 1984 में पार्टी की स्थापना के बाद से आगरा में कभी भी बढ़त नहीं बना पाई है. दूसरी ओर भाजपा को जाति की राजनीति से हटकर युवा, महिला, किसान और गरीब पर ध्यान केंद्रित करने का राजनीतिक फल मिला. बीजेपी ने इस सीट को अपना गढ़ बना लिया है.

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आगरा का राजनीतिक समीकरण

बता दें कि आगरा लोकसभा सीट पर अगर कास्ट फैक्टर की बात करें तो आगरा लोकसभा पर कास्ट फैक्टर बड़ा असर डालता है. आगरा शहरी क्षेत्र की बात करें तो यहां वैश्य बाहुल्य माना जाता है. इसके साथ ही दलित वोट की संख्या भी बहुत अच्छी है. मुस्लिम वोट भी लोकसभा सीट पर आशा डालता है. आगरा लोकसभा सीट पर करीब 21% दलित वोट है तो वही 10% के करीब मुस्लिम वोट है. आकंड़ों के मुताबिक, इस संसदीय सीट पर करीब 19 लाख वोटर्स हैं.

 

 

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