UP Bye-Election: लोकसभा चुनाव के बाद एक फिर सियासी दल चुनावी मोड में हैं. सात राज्यों की 13 सीटों पर उपचुनाव के बाद अब लोकसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की बारी है. यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव में सीटों के लिहाज से समाजवादी पार्टी (सपा) के बाद दूसरे नंबर पर रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) क्लीन स्वीप करने का टार्गेट लेकर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है. लेकिन सहयोगी दलों की डिमांड सत्ताधारी पार्टी की टेंशन बढ़ा सकती है.
बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के दो घटक दल दो-दो सीटों की डिमांड कर रहे हैं. डॉक्टर संजय निषाद की अगुवाई वाली निषाद पार्टी और जयंत चौधरी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) दो-दो सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं. बीजेपी सहयोगी दलों के लिए कोई सीट छोड़ेगी, इसके आसार कम ही हैं. निषाद पार्टी और आरएलडी की ओर से दो-दो सीटों पर की जा रही दावेदारी का आधार क्या है और एनडीए में इसे लेकर क्यों पेच फंस रहा है?
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निषाद पार्टी का इन दो सीटों पर दावा
बीजेपी की ओर से हर सीट पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी के बीच निषाद पार्टी के प्रमुख दिल्ली का भी चक्कर लगा आए हैं. निषाद पार्टी के प्रमुख मिर्जापुर जिले की मझवां के साथ ही कटेहरी विधानसभा सीट के लिए दावेदारी कर रहे हैं. उन्होंने कहा भी है- 10 सीटों के उपचुनाव में दो सीटें हमारी हैं और हम दोनों सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे. डॉक्टर संजय निषाद इन दो सीटों को अपना बता रहे हैं तो ये आधारहीन भी नहीं. 2022 के यूपी चुनाव में मझवां और कटेहरी, ये दोनों सीटें निषाद पार्टी के हिस्से आई थीं.
दो सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में आरएलडी
मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर सीट से 2022 में आरएलडी के चंदन चौहान जीते थे. चंदन चौहान अब बिजनौर सीट से सांसद हैं और उनके इस्तीफे से रिक्त हुई इस सीट पर उपचुनाव होने हैं. आरएलडी अपनी इस सीटिंग सीट के साथ ही अलीगढ़ जिले की खैर (सुरक्षित) सीट के लिए भी दावेदारी कर रही है. खैर सीट पर 2017 से ही बीजेपी काबिज है. बीजेपी के अनूप प्रधान वाल्मीकि 2017 और 2022 में खैर सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. अनूप अब हाथरस से सांसद हैं. आरएलडी इस सीट की डिमांड कर रही है तो इसके पीछे उसके अपने तर्क हैं, अपना आधार है.
एनडीए में क्यों फंस रहा है पेच?
बीजेपी लोकसभा चुनाव में कम हुई सीटों की कसर पूरी करने के लिए उपचुनाव को अच्छे मौके की तरह देख रही है. बीजेपी की कोशिश है कि अधिक से अधिक सीटें जीतकर लोकसभा चुनाव के बाद से आक्रामक विपक्ष के तेवरों की धार कुंद की जाए. ये उपचुनाव एक तरह से सीएम योगी की लोकप्रियता का भी लिट्मस टेस्ट माने जा रहे हैं. उपचुनाव को एक तरह से योगी बनाम अखिलेश भी कहा जा रहा है, ऐसे में संगठन के साथ ही सरकार और खुद सीएम भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.