UP Bypoll: लोकसभा चुनाव में मनचाहे परिणाम न आने के बाद से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उपचुनाव के लिए अपने हिसाब से जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं. सभी जिलों के जनप्रतिनिधियों से भेंट करने के बाद उन्होंने अब जिलों का दौरा भी शुरू कर दिया है. सियासी जानकार बताते हैं कि सीएम ने विकास, संवाद और साथ के जरिए उपचुनाव को साधने की कोशिश शुरू की है. उन्होंने जिलों में रोजगार मेले के माध्यम से युवाओं को साधने का जरिया बनाया है. आदित्यनाथ के करीबी लोगों का कहना है कि वह उपचुनावों में उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने और अभियान की रणनीति तैयार करने से लेकर पार्टी नेताओं को काम सौंपने तक की पूरी छूट चाहते हैं. इतना ही नहीं, कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले का भी काट ढूंढ़ लिया है.
राजनीति को समझने वाले लोगों की मानें तो कार्यकर्ताओं को काम सौंपने, अभियान की रणनीति और उम्मीदवारों के चयन के बारे में सीएम योगी के सुझावों और इनपुट को लोकसभा चुनावों के दौरान नजरअंदाज कर दिया गया था, जिससे भाजपा की सीटें घटकर 33 रह गईं. लेकिन उपचुनाव में सीएम योगी अब कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.
लोकसभा चुनाव में सीएम योगी की हुई अनदेखी!
कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान सीएम ने यूपी में सात चरणों में होने वाले लंबे चुनाव के खिलाफ भी सलाह दी थी. आदित्यनाथ ने 15 जुलाई को लखनऊ में भाजपा की राज्य कार्यसमिति की बैठक में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए इन मुद्दों को उठाया था, जहां उन्होंने पार्टी को “अति आत्मविश्वास” की कीमत चुकाने की बात भी कही थी. दूसरी तरफ से तर्क यह है कि आदित्यनाथ के शासन में संगठन को सरकार से बड़ा मानने वाले मूल सिद्धांत की अनदेखी की गई है. 15 जुलाई की बैठक में डिप्टी सीएम और आदित्यनाथ के प्रतिद्वंद्वी केशव शौर्य ने दावा किया कि पार्टी चलाने के मामले में वह किसी भी आम कार्यकर्ता की तरह असहाय हैं.
दो दिन बाद 17 जुलाई को आदित्यनाथ ने अपने आवास पर अपने करीबी माने जाने वाले मंत्रियों के साथ बैठक की, जिसमें मौर्य, दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी अनुपस्थित रहे. बैठक में सीएम ने मौजूद मंत्रियों को खाली हो रही 10 सीटों पर उपचुनाव की देखरेख की जिम्मेदारी दी. इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व ने दिल्ली में आदित्यनाथ, दोनों डिप्टी सीएम और चौधरी के साथ अलग-अलग बैठकें कीं. आदित्यनाथ ने 5 अगस्त को अपने आवास पर एक और बैठक की, जिसमें दोनों उपमुख्यमंत्री, चौधरी और राज्य भाजपा कार्यकारिणी के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद थे, साथ ही ऐसे मंत्री भी मौजूद थे जिन्हें सीएम के करीबी माना जाता है.
सीएम योगी ने खुद ही ली है बड़ी जिम्मेदारी
सीएम के दृढ़ संकल्प का एक और संकेत वे सीटें हैं जिनकी जिम्मेदारी उन्होंने खुद ली है – अयोध्या में मिल्कीपुर और अंबेडकरनगर में कटेहरी, जिन्हें 10 सीटों में से सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. मिल्कीपुर सीट से समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद विधायक थे. अब वो फैजाबाद से सांसद बन गए हैं. अब इस सीट पर विधानसभा चुनाव होने हैं. सीएम योगी ने इस सीट की जिम्मेदारी खुद ली है. वहीं कटेहरी की जिम्मेदारी भी उन्होंने खुद ही ले रखी है.
इस महीने की शुरुआत से आदित्यनाथ ने दो विधानसभा सीटों या आस-पास के इलाकों में चार बार कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं. अन्य विधानसभा सीटों के मामले में भी, सीएम ने उम्मीदवारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपने भरोसेमंद लोगों से जमीनी रिपोर्ट तैयार करवाई है.
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युवा मतदाताओं को साधने की कोशिश
बेरोजगारी मतदाताओं के बीच एक बड़ी चिंता है. आदित्यनाथ रोजगार मेलों पर भी जोर दे रहे हैं. दिल्ली दौरे से पहले सीएम ने मुजफ्फरनगर के मीरापुर विधानसभा क्षेत्र में ऋण और नियुक्ति पत्र वितरित किए, जहां उपचुनाव होने वाले हैं. इससे पहले मिल्कीपुर और कटेहरी विधानसभा क्षेत्रों में भी इसी तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए थे.
न केवल एक और चुनावी झटका आदित्यनाथ की स्थिति पर सवाल खड़े करेगा, बल्कि सपा और कांग्रेस को भी लोकसभा चुनावों के बाद खून की गंध आ गई है, और उन्होंने उप चुनावों की देखरेख के लिए मौजूदा सांसदों सहित वरिष्ठ नेताओं को नियुक्त किया है. जाति का मुद्दा अभी भी कहानी का एक हिस्सा है, दोनों दलों को एक विजयी गठबंधन के लिए फिर से मुसलमानों, ओबीसी और दलितों को एक साथ लाने का भरोसा है.
जिन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से भाजपा ने 2022 में तीन – गाजियाबाद, खैर और फूलपुर – जीती थीं, जबकि सहयोगी निषाद पार्टी और आरएलडी (अब भाजपा की सहयोगी) ने क्रमशः दो, मझवां और मीरापुर जीती थीं. सपा ने पांच – सीसामऊ, मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी और कुंदरकी – जीती थीं.
मौजूदा विधानसभा में भाजपा के 255 विधायक हैं, उसके सहयोगी दलों के 20, सपा के 111 और कांग्रेस के दो विधायक हैं. चुकी भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 33 सीटें जीती थीं, जबकि सपा 37 सीटों पर आगे थी, इसलिए आदित्यनाथ अपने ही लोगों के साथ-साथ सहयोगियों के निशाने पर हैं. मुख्य आरोप यह है कि मुख्यमंत्री शक्तिशाली नौकरशाहों के साथ मिलकर सरकार चलाते हैं और उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया जाता.