Dussehra 2025: भारत में जब दशहरा आता है, तो हर जगह रामलीला का मंचन शुरू हो जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत से लगभग 9,000 किलोमीटर दूर एक देश है, जहां यह कहानी सिर्फ़ एक त्योहार नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की संस्कृति का हिस्सा है? हम बात कर रहे हैं इंडोनेशिया की, जहां की 87% से ज़्यादा आबादी मुस्लिम है, फिर भी राम-सीता की गाथा को यहां के लोग अपनी सांसों में बसाए हुए हैं. यह सिर्फ एक नाटक नहीं, बल्कि संस्कृति और विरासत को सहेजने का एक अनूठा उदाहरण है.
यह कहानी सदियों पहले व्यापारियों, यात्रियों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिए दुनिया के कोने-कोने में पहुंची. पुरातत्वविद सर विलियम जोंस ने 1786 में माया सभ्यता के अवशेषों में रामायण की झलक देखी थी. यह कहानी उत्तरी मार्ग से पंजाब और कश्मीर होते हुए चीन, तिब्बत और पूर्वी तुर्किस्तान तक फैली. समुद्री रास्तों से यह गुजरात और दक्षिण भारत से जावा, सुमात्रा, मलय द्वीप, वियतनाम और कंबोडिया पहुंची. पूर्वी मार्ग से बंगाल के रास्ते बर्मा, थाईलैंड और लाओस तक इसकी गूंज सुनाई दी. आज रामायण के 300 से ज्यादा संस्करण मौजूद हैं, जो कठपुतली शो, नृत्य, नाटक और मौखिक कथाओं के जरिए जीवंत हैं.
इंडोनेशिया में रामायण
इंडोनेशिया में रामायण सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि संस्कृति का हिस्सा है. मध्य जावा के प्राम्बानन मंदिर में हर दिन रामायण का भव्य नृत्य-नाटक मंचन होता है. इस शो को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने दुनिया में सबसे ज्यादा बार मंचित होने वाला प्रदर्शन माना है. 200 से ज्यादा नर्तक और गमेलन संगीतकार मिलकर राम-सीता की कहानी को जीवंत करते हैं. खास बात यह है कि इस नाटक में राम, सीता, रावण और हनुमान जैसे सभी किरदार मुस्लिम कलाकार निभाते हैं. उनके लिए यह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों की विरासत को सहेजने का तरीका है. यहां की रामायण को ‘वायंग’ (छाया कठपुतली) और नृत्य-नाटक के जरिए पेश किया जाता है.
माना जाता है कि राम की सेना के सेनापति सुग्रीव ने सीता की खोज में जावा में सैनिक भेजे थे, और यहीं से इस कहानी ने जड़ें जमाईं. 9वीं या 10वीं सदी में जावा के एक अज्ञात कवि ने ‘रामायण काकाविन’ की रचना की, जो संस्कृत के भट्टिकाव्य से प्रेरित थी, लेकिन इसमें स्थानीय रंग और बदलाव भी जोड़े गए.
अयोध्या से जावा तक का रिश्ता
2017 में इंडोनेशिया के मुस्लिम कलाकारों ने अयोध्या और लखनऊ में रामलीला का मंचन कर इतिहास रचा. यह प्रदर्शन अवध विश्वविद्यालय में हुआ, जहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कलाकारों को सम्मानित किया. जावानीस रामायण में राम को एक शक्तिशाली राजा के रूप में दिखाया जाता है, जो आठ देवताओं के गुणों का प्रतीक है, जैसे इंद्र की उदारता, यम की तरह दुष्टों को दंड देना और चंद्रमा की तरह सज्जनों को खुश करना. यह संस्करण जावा की संस्कृति में गहराई से समाया हुआ है.
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थाईलैंड से कोरिया तक रामायण की गूंज
रामायण का प्रभाव सिर्फ इंडोनेशिया तक सीमित नहीं है. थाईलैंड का अयुत्या साम्राज्य (1351-1767) अयोध्या से प्रेरित था. वहां का राष्ट्रीय महाकाव्य ‘रामकियेन’ रामायण का ही रूप है. कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर में 12वीं सदी के रामायण के भित्ति चित्र आज भी मौजूद हैं. दक्षिण कोरिया में यह मान्यता है कि अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना ने 48 ईस्वी में कोरिया के राजा किम सूरो से विवाह किया था. 2000 में अयोध्या और कोरिया के गिम्हे शहर को ‘जुड़वां शहर’ घोषित किया गया.
क्यों खास है इंडोनेशिया की रामलीला?
इंडोनेशिया की रामलीला में कोई धार्मिक टकराव नहीं है. यहां के कलाकार इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हैं. हर प्रदर्शन में 150 से ज्यादा कलाकार हिस्सा लेते हैं, और यह न सिर्फ जावा, बल्कि बाली और अन्य द्वीपों पर भी रोजाना देखा जा सकता है. यह नजारा भारतीयों के लिए गर्व का विषय है कि हमारी संस्कृति की यह कहानी इतनी दूर, इतने अलग धर्म और समाज में भी उतनी ही जीवंत है.तो अगली बार जब आप दशहरे पर रामलीला देखने जाएं, तो याद करें कि भारत से हजारों किलोमीटर दूर एक देश है, जहां रामायण हर दिन सजीव हो उठती है.
