Nepal Gen Z Protest: काठमांडू की सड़कों पर इन दिनों एक नया तूफान उठा है और इस तूफान का नाम है Gen-Z आंदोलन. भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नेपाल के युवा सड़कों पर तांडव करते नजर आ रहे हैं. 38 साल के सुदान गुरुंग (Sudan Gurung) ने अपनी आवाज़ से न सिर्फ लाखों युवाओं को इस आंदोलन से जोड़ा, बल्कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार को भी हिलाकर रख दिया. लेकिन, सवाल यह है कि आखिर वह कौन-सी वजह थी, जिसने इस जुझारू नेता को कैमरे के सामने रोने पर मजबूर कर दिया?
भ्रष्टाचार के खिलाफ बगावत की चिंगारी
नेपाल में भ्रष्टाचार और कुप्रशासन की जड़ें गहरी हैं. नेताओं की मनमानी और जवाबदेही की कमी ने आम लोगों, खासकर 1997-2012 के बीच जन्मे युवाओं का गुस्सा भड़का दिया. 4 सितंबर 2025 को सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और X जैसे 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया. वजह? सरकार का कहना था कि ये प्लेटफॉर्म्स ने उनके रजिस्ट्रेशन नियमों का पालन नहीं किया. लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला माना. बस, यहीं से चिंगारी भड़की.
8 सितंबर को काठमांडू की सड़कें रणक्षेत्र बन गईं. स्कूल यूनिफॉर्म और किताबें हाथ में लिए हजारों छात्र संसद भवन की ओर बढ़े. ‘हामी नेपाल’ नाम के एनजीओ के अध्यक्ष सुदान गुरुंग ने इस प्रदर्शन को लीड किया. उनकी एक अपील ने लाखों युवाओं को सड़कों पर ला दिया. लेकिन शांतिपूर्ण प्रदर्शन जल्द ही हिंसक हो गया. पुलिस की गोलीबारी और झड़प में अब तक 34 लोगों की जान चली गई. इस खून-खराबे ने सुदान को झकझोर कर रख दिया.
एक भूकंप से जन्मा नायक!
सुदान गुरुंग कोई जन्मजात नेता नहीं हैं. कभी काठमांडू के थमेल इलाके में डीजे और इवेंट मैनेजर के रूप में मस्ती भरी ज़िंदगी जीने वाले सुदान की जिंदगी 2015 में आए भूकंप ने बदल दी. इस त्रासदी में उन्होंने अपने बच्चे को खो दिया. ‘हामी नेपाल’ की शुरुआत एक छोटे से वॉलंटियर ग्रुप के रूप में हुई, जो भूकंप पीड़ितों को चावल और टेंट बांटता था. लेकिन 2020 में इसे एक रजिस्टर्ड एनजीओ बनाकर सुदान ने इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ताकतवर मंच बना दिया.
सुदान ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर युवाओं को एकजुट किया. इंस्टाग्राम और डिस्कॉर्ड जैसे प्लेटफॉर्म्स पर उन्होंने प्रदर्शन की रणनीति बनाई और सुरक्षा दिशा-निर्देश साझा किए. उनकी आवाज़ में एक जादू था, जो नेपाल के कोने-कोने में गूंजा. उन्होंने कहा, “8 सितंबर सिर्फ़ एक तारीख़ नहीं, ये वो दिन है जब हम कहेंगे कि बस, अब बहुत हुआ.” और सचमुच, युवाओं ने उनकी बात को दिल से लगा लिया.
अब क्यों रो रहे हैं सुदान?
लेकिन सड़कों पर फैले खून-खराबे ने सुदान को तोड़ दिया. जब वह मीडिया से बात कर रहे थे, उनकी आंखें छलक उठीं. दरअसल, सुदान ने कभी हिंसा की वकालत नहीं की थी. उनकी अपील शांतिपूर्ण प्रदर्शन की थी, लेकिन हालात बेकाबू हो गए. 34 लोगों की मौत और सैकड़ों घायलों की खबर ने उन्हें अंदर तक हिला दिया. सुदान ने कहा, “हम सिर्फ़ भ्रष्टाचार और बैन के खिलाफ लड़ रहे थे. हमने कभी खून-खराबा नहीं चाहा.”
लेकिन सवाल यह भी उठा कि क्या जेन-जेड आंदोलन अब दिशाहीन हो रहा है? कुछ नेताओं, ने माना कि जेनजी को अभी परिपक्व नेतृत्व की ज़रूरत है. पीएम पद के लिए सुशीला कार्की और घीसिंग जैसे नामों पर सहमति न बन पाना भी इस आंदोलन की कमजोरी को दिखाता है.
युवाओं के गुस्से के सामने सरकार को झुकना पड़ा. गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा दे दिया, सोशल मीडिया बैन हट गया और पीएम ओली ने भी कुर्सी छोड़ दी. लेकिन जेनजी का गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ. उनकी मांग अब सिर्फ़ बैन हटाने तक सीमित नहीं. वे भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का खात्मा चाहते हैं. सेना सड़कों पर है, कर्फ्यू लागू है, लेकिन युवा डटकर मुकाबला कर रहे हैं.
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