Pakistan Alcohol Export: दुनियाभर से कर्ज मांग रहे पाकिस्तान ने अब एक ऐसा रास्ता चुना है, जिस पर वह दशकों से चलने से कतरा रहा था. ‘इस्लाम में शराब हराम है’ का नारा बुलंद करने वाले मुल्क ने अब विदेशी डॉलर की खातिर शराब के निर्यात (Export) पर लगा 50 साल पुराना बैन हटा दिया है. यह फैसला किसी सामाजिक क्रांति के लिए नहीं, बल्कि पाकिस्तान के डूबते विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने के लिए लिया गया है.
50 साल का इंतजार
रावलपिंडी में स्थित ‘मुर्री ब्रेवरी’ (Murree Brewery) के लिए यह पल किसी ऐतिहासिक जीत से कम नहीं है. 1860 में अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुई यह कंपनी पाकिस्तान की सबसे पुरानी और बड़ी शराब निर्माता है. कंपनी के मौजूदा मालिक इस्फनयार भंडारा बताते हैं कि उनके दादा और पिता ने अपनी पूरी जिंदगी इस कोशिश में लगा दी कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार में माल बेचने की इजाजत मिल जाए, लेकिन कट्टरपंथी नीतियों के आगे उनकी एक न चली. अब करीब आधी सदी बाद, हुकूमत ने उन्हें ‘ग्रीन सिग्नल’ दे दिया है.
क्यों बदलना पड़ा फैसला?
पाकिस्तान इस वक्त भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा है. उसके पास जरूरी सामान आयात करने के लिए डॉलर की भारी कमी है. ऐसे में सरकार उन सभी रास्तों को खोल रही है जिससे विदेशी मुद्रा देश में आ सके. मुर्री ब्रेवरी का सालाना टर्नओवर पहले से ही 100 मिलियन डॉलर, करीब 830 करोड़ रुपये के पार है. अब जब यह कंपनी विदेशों में अपनी बीयर और व्हिस्की बेचेगी, तो पाकिस्तान को भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा मिलने की उम्मीद है.
आर्मी चीफ के घर के सामने ‘जाम’ की तैयारी
दिलचस्प बात यह है कि मुर्री ब्रेवरी का कारखाना रावलपिंडी में ठीक उसी जगह है, जहां पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर का आधिकारिक निवास है. कड़ी सुरक्षा के बीच चलने वाली इस कंपनी का आधा बिजनेस शराब से आता है, जबकि बाकी आधा हिस्सा जूस और कोल्ड ड्रिंक्स का है. पाकिस्तान में मुसलमानों के लिए शराब खरीदना कानूनी तौर पर मना है, यह सुविधा सिर्फ अल्पसंख्यकों और विदेशियों को हासिल है. लेकिन अब पाकिस्तान का लक्ष्य जापान, ब्रिटेन और पुर्तगाल जैसे देशों के बार और टेबल तक पहुंचना है.
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सऊदी का असर या मजबूरी?
हाल ही में सऊदी अरब ने भी गैर-मुस्लिमों के लिए शराब की पहली दुकान खोलकर दुनिया को चौंका दिया था. जानकारों का मानना है कि खाड़ी देशों में आ रहे इस बदलाव ने पाकिस्तान को भी अपनी कट्टर नीतियों पर दोबारा सोचने का मौका दिया है. कभी मुर्री ब्रेवरी की बीयर काबुल के बाजारों में शान से बिकती थी, लेकिन तालिबान और कट्टरपंथ के दौर ने सब बदल दिया. अब कंपनी को उम्मीद है कि वे फिर से अपनी पुरानी ग्लोबल पहचान बना पाएंगे.
कंपनी ने फिलहाल जापान और यूरोप में सैंपल भेजने शुरू कर दिए हैं. 2,200 कर्मचारियों वाली इस कंपनी का फोकस अभी सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी साख बनाना है. पाकिस्तान में शराब के विज्ञापन पर पूरी तरह रोक है, इसलिए कंपनी के लिए विदेशी जमीन ही अपनी ब्रांडिंग करने का एकमात्र जरिया बची है.
