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बिना गुनाह के जेल में काटे 43 साल, रिहा होते ही फिर हिरासत…सुब्रमण्यम ‘सुबु’ के साथ अमेरिका में हुए ‘अन्याय’ की अनकही कहानी

Subramanyam Vedam Story

जवानी में गया जेल और बूढ़ा होकर लौटा सुबु

Subramanyam Vedam Story: कल्पना कीजिए कि आप 20 साल के हैं, कॉलेज में पढ़ रहे हैं, दोस्तों के साथ हंसते-खेलते हैं. अचानक एक दिन पुलिस आती है और कहती है, “तुमने अपने दोस्त को मार डाला.” कोई सबूत नहीं, कोई गवाह नहीं, फिर भी जेल. 43 साल बाद कोर्ट कहता है, “माफ़ कीजिए, गलती हो गई.” दरवाज़ा खुलता है, लेकिन बाहर इंतज़ार कर रही है इमिग्रेशन पुलिस. अब आपको भेजा जा रहा है उस देश, जहां आपका कोई नहीं. जहां की भाषा तक नहीं आती. ऐसी ही कुछ दर्द भरी कहानी है 64 साल के सुब्रमण्यम वेदम ‘सुबु’ का.

बचपन से जवानी तक, अमेरिका ही था सुबु का घर

सुबु का जन्म 1961 में भारत में हुआ था, लेकिन सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उनके माता-पिता एक पारिवारिक समारोह में भारत आए थे. नौ महीने की उम्र में वो पेंसिल्वेनिया, अमेरिका पहुंच गए. वहां की सड़कें, वहां का स्कूल, वहां का कॉलेज सब कुछ सुबु का था. उनके पिता के वेदम पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर थे. मां लोकल लाइब्रेरी चलाती थीं. सुब्रमण्यम वेदम का निकनेम ‘सुबु’ था. दोस्तों के बीच हंसमुख, शांत और मददगार. उनकी बड़ी बहन सरस्वती वेदम बताती हैं, “सुबु हिंदी नहीं बोलता. उसका लहजा पेंसिल्वेनिया का है. वो भारत सिर्फ़ बच्चे के रूप में आया था. उसके माता-पिता, दादा-दादी सब गुज़र चुके है. भारत में उसका कोई नहीं.”

टॉम किंसर मर्डर केस में फंसे सुबु

सुबु 19 साल के थे. उनके रूममेट और दोस्त टॉम किंसर एक रात गायब हो गए. आखिरी बार टॉम को सुबु के साथ देखा गया था. महीनों बाद जंगल में टॉम की लाश मिली, गोली लगी हुई. पुलिस ने सुबु को पकड़ लिया. कोई गवाह नहीं. कोई हथियार नहीं. कोई दुश्मनी का इतिहास नहीं.

फिर भी गिरफ़्तारी. सुबु को “विदेशी” कहकर जमानत तक नहीं दी गई. उनका ग्रीन कार्ड और पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया गया. 1983 में कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुना दी. उस वक्त सुबु के माता-पिता जर्मनी में थे. लौटकर आए तो बेटे को बचाने के लिए घर तक गिरवी रखने को तैयार थे. लेकिन तब तक हत्या का केस जोड़ दिया गया. पढ़ाई, दूसरों को पढ़ाना और उम्मीद. जेल में सुबु ने हार नहीं मानी. कॉलेज की डिग्री पूरी की. दूसरों को पढ़ाया. अपील पर अपील की.

2021 में नया सबूत मिला. 2022 में फॉरेंसिक रिपोर्ट ने साबित किया कि गोली उस हथियार से नहीं चली थी, जो कोर्ट में पेश किया गया था. प्रॉसिक्यूशन ने हज़ारों पेज के सबूत छिपाए थे, जो सुबु की बेगुनाही साबित करते थे. अब पेंसिल्वेनिया कोर्ट ने सुबु को पूरी तरह बरी कर दिया. जज ने कहा, “यह राज्य का सबसे लंबा गलत दोषसिद्धि का मामला है.”

रिहाई और फिर हिरासत!

जेल का दरवाज़ा खुला. परिवार बाहर इंतज़ार कर रहा था. लेकिन जैसे ही सुबु बाहर आए तो अमेरिकी इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) ने उन्हें हिरासत में ले लिया. दरअसल, 1988 में एक पुराने ड्रग केस के आधार पर सुबु को “डिपोर्टेबल” घोषित किया गया था. भले ही वो केस भी संदिग्ध था, और भले ही अब वो मर्डर केस में निर्दोष साबित हो चुके हैं , पुराना डिपोर्टेशन ऑर्डर अब भी लागू है. अब सुबु एक इमिग्रेशन डिटेंशन सेंटर में हैं. कोर्ट तय करेगा कि अमेरिका में रहने देंगे या भारत भेज देंगे?

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“ये इंसाफ नहीं, दूसरी सजा है”

उनकी बहन सरस्वती वेदम रोते हुए कहती हैं, “43 साल जेल में काटे, मां-बाप खोए, जवानी खोई, बचपन खोया. फिर भी सुबु ने कभी शिकायत नहीं की. वो आज भी वही शांत, नेक इंसान है. अब उसे भारत भेजोगे? जहां उसकी भाषा नहीं, जहां उसका कोई नहीं? ये कैसा न्याय है?” परिवार के और लोग कह रहे हैं, “अमेरिका में हम हैं. हम उसकी देखभाल करेंगे. भारत में वो अकेला मर जाएगा.” सुबु के वकील इमिग्रेशन कोर्ट में लड़ रहे हैं

जब एक निर्दोष 43 साल जेल में काटता है और रिहा होने पर भी आज़ादी नहीं मिलती तो सवाल उठता है कि क्या इंसाफ सिर्फ़ कागज़ पर होता है? सुबु आज 64 साल के हैं. उनकी आंखों में अब भी अमेरिका बसता है. लेकिन उनका भविष्य अनिश्चित है. क्या सुबु को अमेरिका में रहने दिया जाएगा? या 43 साल की सजा के बाद एक और सजा मिलेगी अकेलेपन की?

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