Ramnami: अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के पहले छत्तीसगढ़ के रामनामियों की चर्चा क्यों हो रही है? जानिए कौन हैं ये प्रभु राम के अनोखे भक्त

Ramnami: रामनामियों के राम-राम शरीर पर गुदवाना अनिवार्य है. गोदना करवाने के बाद समाज के भीतर अलग अलग पदवी का विभाजन होता है.
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रामनामी

Chhattisgarh Ramnami: देश में भगवान राम के करोड़ों भक्त हैं. कोई भगवान राम के दयालु राजा राम के रूप को मानता है, कोई युद्धवीर राम तो कोई बजरंग बली के साथ दोस्ती के रूप में भगवान राम की पूजा करता है. लेकिन आज हम भगवान राम के कुछ अनोखे भक्तों की कहानी बताने जा रहे हैं, जो भगवान राम की मूर्ति की जगह उनके नाम की पूजा करते हैं. यहां तक उन्होंने अपने रोम-रोम को ही राम के नाम को अर्पण कर दिया हैं. इसलिए राम के इन अनोखे भक्तों को पूरी दुनिया जानना चाहती है.

जानिए रामनामियोंं की कहानी

दरअसल अयोध्या में रामलला की 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. इसको लेकर देशभर में उत्साह का गजब माहौल देखने को मिल रहा है. भक्तों का जनसैलाब सिर्फ अयोध्या में ही नहीं देश के कोने-कोने तक महसूस हो रहा है. लोगों की जुबान पर ‘राम आएंगे…’ ये लाइन चढ़ गई है. ऐसे समय में छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज के भत्तों की काफी चर्चा है. क्योंकि ये भक्त अपने पूरे शरीर में राम-राम का अमिट निशानी बनाए हुए हैं. यकीन करना मुश्किल है लेकिन रामनामी अपने सिर के बाल तक कटवा कर सिर में भी राम- राम लिखवाते हैं.

अस्तित्व में क्यों आया रामनामी संप्रदाय?

ये कहानी छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले की है. जहां 123 साल पहले रामनामी संप्रदाय की शुरुआत हुई है. जब देश में धार्मिक आयोजनों में समाजवाद को परिभाषित करना मुश्किल था. इसेसे परेशान होकर 1890 के आस पास जांजगीर चांपा में एक छोटे से गांव चारपारा में एक दलित युवक परशुराम ने रामनामी संप्रदाय की स्थापना की. तब ऊंच-नीच के जहर को झेल रहे लोगों के लिए एक बड़ा आंदोलन बन गया. तेजी लोग रामनामियों से जुड़ने लगे और धीरे-धीरे राज्य के बलौदाबजार, जांजगीर चांपा,बिलासपुर , सारंगढ़ और रायगढ़ जिले में इनका वर्चस्व बढ़ गया.

रामनामी अपने शरीर के साथ घर तक में राम-राम लिखवाते हैं

इन रामनामियों ने भगवान राम की मूर्ति पूजा की जगह निर्गुण राम को अपने दिल के गहराइयों पर जगह दी है. इस लिए रामनामी सम्रदाय के लोग अपने शरीर के हर हिस्से में राम – राम का नाम गुदवाते हैं.उनके कपड़ों में ‘राम’ लिखा हुआ होता है. पुराने मिट्टी के घरों में राम-राम लिखते हैं. मयूर पंख से बने मुकुट पहने हैं और पैरो में घुंघरू का भी पहनते हैंं. इसके अलावा ये सभी जब भी किसी से मिलते है तो राम राम कहकर पुकारते हैं और अभिवादन करते हैं. राम नाम की पूजा के लिए ये भजन गाते हैं और राम को अपनी दुख सुख बताते हैं.

राम -राम गुदवाने से तय होती है रामनामियों की पदवी

रामनामियों के राम-राम शरीर पर गुदवाना अनिवार्य है. गोदना करवाने के बाद समाज के भीतर अलग अलग पदवी का विभाजन होता है. समाज के महासचिव गुलाराम रामनामी ने बताया कि अपने शरीर के किसी भी हिस्से में राम-नाम लिखवाने वाले को ही रामनामी कहते हैं. माथे पर दो बार राम-नाम गुदवाने वाले शिरोमणी कहलाते हैं. पूरे माथे पर राम-राम नाम लिखवाने वाले सर्वांग कहलाते हैं और शरीर के प्रत्येक हिस्से में यानी अपने सिर से लेकर पैर तक राम -राम नाम लिखवाने वाले को नखशिख कहा जाता है.

पहले दलितों को मंदिरों से दूर रखा जाता था

आपको बता दें कि रामनामियों के भजन के सारे शब्द राम-राम ही है. रामनामी मंदिर नहीं जाते हैं. लेकिन ये मानते हैं कि राम भगवान कण कण में बसते हैं. रामनामी संप्रदाय के गुलाराम रामनामी कहते हैं कि पहले के दौर में दलितों को मंदिरों से दूर रखा जाता था. कपड़े और कागज में राम लिखवाने पर मिटा देने का डर लगा रहता था. इस लिए हमारे पूर्वजों ने अपने मस्तक में राम का नाम स्थाई लिखवा लिया. तब से आज तक हम राम नाम के सहारे ही रहते हैं. अब तो देश और दुनिया के लोग हमसे मिलने आ रहे हैं. साल में 4 से 5 देश के लोग हमें जानने के लिए आते हैं.वहीं इसके प्रचार के लिए हर साल अलग-अलग इलाकों में भजन मेला का आयोजन किया जाता है. ये मेला राज्य में प्रसिद्ध है और हजारों की संख्या में मेला में रामनामी जुटते हैं.

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