CG News: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के निजी स्कूल फीस विनियमन अधिनियम 2020 को संवैधानिक करार देते हुए निजी स्कूलों की याचिकाएं खारिज कर दी हैं. कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में मुनाफाखोरी और शोषण पर अंकुश लगाने के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाना राज्य सरकार का संवैधानिक अधिकार है. यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं करता. न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि निजी स्कूलों की स्वायत्तता बनी रहेगी, लेकिन फीस के नाम पर मनमानी वसूली और मुनाफाखोरी पर सख्त नियंत्रण आवश्यक है.
निजी स्कूल संगठनों ने अधिनियम को बताया था अवैध, कोर्ट में दी थी ये दलीलें
छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन और बिलासपुर प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन ने अधिनियम 2020 और उसके तहत बनाए गए नियमों को असंवैधानिक बताते हुए याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि, यह अधिनियम स्कूलों की स्वायत्तता में दखल है. अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है. साथ ही कहा कि सुप्रीम कोर्ट के टीएमए पाइ फांउडेशन और मार्डन स्कूल जैसे निर्णयों के अनुसार, निजी स्कूलों को फीस निर्धारण का अधिकार है. अधिनियम में फीस निर्धारण समितियों रिकॉर्ड्स की अनिवार्यता और शुल्क वृद्धि पर नियंत्रण जैसी शर्तें स्कूलों की स्वायत्तता खत्म कर देती हैं.
रायपुर, बिलासपुर सहित 11 जिलों के जिला शिक्षा अधिकारियों ने आदेश जारी किया था. इस आदेश में सभी सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों और गैर-सहायता प्राप्त गैर-सरकारी, निजी विद्यालयों को दिशा-निर्देश जारी कर शैक्षणिक सत्र 2025-2026 के लिए कक्षा 1 से कक्षा 10 तक के पाठ्यक्रम में केवल एनसीईआरटी, एससीईआरटी प्रकाशन की पुस्तकों का ही उपयोग सुनिश्चित करने कहा था. ऐसा नहीं करने पर ऐसे विद्यालयों की मान्यता रद्द करने की चेतावनी दी गई थी.
