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बस्तर में ‘घर वापसी’ अभियान, ‘लाल आतंक’ पर बड़ी चोट! दंतेवाड़ा में 1000 से ज्यादा नक्सलियों ने हथियार फेंक किया आत्मसमर्पण

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1000 से ज्यादा नक्सलियों ने किया सरेंडर

CG News: छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने लोन वर्राटू (घर वापसी) अभियान में बड़ी सफलता हासिल की है. 9 जुलाई को दंतेवाड़ा में 8 लाख के इनामी समेत कुल 12 नक्सलियों ने सरेंडर किया. इसके बाद क्षेत्र में अब तक 1000 से ज्यादा नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है. सरेंडर करने वाले नक्सलियों पर 4 करोड़ 96 लाख 50 हजार रुपए का इनाम था.

1000 से ज्यादा नक्सलियों ने किया सरेंडर

छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में स्थित दंतेवाड़ा जिले में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और पुनर्वास की दिशा में एक बड़ा कदम सामने आया है. ‘लोन वर्राटू’, जिसका अर्थ गोंडी भाषा में ‘घर लौटें’ होता है. इस अभियान के तहत 9 जुलाई 2025 तक 1005 नक्सलियों ने सरेंडर किया है. इसमें 813 पुरुष और 192 महिलाएं शामिल हैं, जो कभी देश की आंतरिक सुरक्षा के सबसे बड़े संकट नक्सलवाड से जुड़े रहे थे. आत्मसमर्पण करने वालों में कई वरिष्ठ नक्सली नेता, सेक्शन कमांडर, मेडिकल यूनिट सदस्य और स्थानीय जनमिलिशिया कार्यकर्ता शामिल हैं.

2020 में हुई थी अभियान की शुरुआत

इसलोन वर्राटू (घर वापसी) अभियान की शुरुआत जून 2020 में की गई थी. तब से यह भारत में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए सबसे सफल पुनर्वास अभियानों में से एक बनकर उभरा है. 9 जुलाई 2025 को ही 12 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया- जिनमें से 9 पर इनाम घोषित था और एक नक्सली दंपति भी शामिल है.

इन 12 नक्सलियों ने किया सरेंडर

पुनर्वास नीति और आत्मसमर्पण के पीछे की वजहें

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चलाई जा रही पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को मिलती हैं-

पुलिस व प्रशासन का दावा है कि आत्मसमर्पण के पीछे संगठन में व्याप्त आंतरिक संघर्ष, भेदभाव और शोषण, परिवार से जुड़ने की इच्छा और सुरक्षा बलों की बढ़ती घेराबंदी जैसे प्रमुख कारणों की वजह से बड़ी संख्या में नक्सली सरेंडर कर रहे हैं.

‘लोन वर्राटू’: सिर्फ आत्मसमर्पण नहीं, विश्वास निर्माण भी

‘लोन वर्राटू’ अभियान के जरिए गांव-गांव में सक्रिय माओवादियों की सूचियां चस्पा की गईं, परिवारों से संपर्क साधा गया और माओवादियों को सम्मानजनक जीवन में लौटने के लिए संवेदनशील अपीलें की गईं. यह अभियान सिर्फ माओवादी गतिविधियों को रोकने का प्रयास नहीं है, बल्कि सरकार की ओर से संवाद, अवसर और पुनर्वास के जरिए विश्वास निर्माण की प्रक्रिया भी है.

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क्या ‘लोन वर्राटू’ बना मॉडल

भारत में इससे पहले भी कई आत्मसमर्पण अभियान चलाए गए हैं, जिनमें अधिकतर की सफलता सीमित रही है. मगर ‘लोन वर्राटू’ ने जो आंकड़े सामने रखे हैं, वे इसे एक मॉडल पुनर्वास पहल के रूप में स्थापित कर सकते हैं – विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए जहां नक्सलवाद अब भी जड़ें जमाए हुए हैं.

सरकार और प्रशासन की अपील

‘जो माओवादी अब भी संगठन में सक्रिय हैं, वे आगे आकर आत्मसमर्पण करें. शासन और प्रशासन द्वारा सुरक्षा, पुनर्वास और सम्मान की पूरी गारंटी दी जाएगी.’

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