Bilaspur: ‘मैं छत्तीसगढ़ का दूसरा बड़ा शहर… मुझे खोदापुर मत कहो, सजाओ-संवारो और विकास को पंख दो’

Bilaspur: केंद्र और राज्य सरकार की सहमति के बाद यहां कुछ साल पहले एयरपोर्ट बनाया गया. लेकिन नाइट लैंडिंग की सुविधा आज तक शुरू नहीं हो पाई है.
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बिलासपुर

Bilaspur News: “मैं बिलासपुर हूं…कहने को छत्तीसगढ़ का दूसरा बड़ा शहर. लेकिन विकास के मामले में उपेक्षित. मेरी गोद में हाईकोर्ट, एसईसीएल, रेलवे जोन, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, एयरपोर्ट, एनटीपीसी और न जाने कितनी ऐसी संस्थाएं हैं जिनकी विदेशों तक गूंज है. फिर भी मैं पिछले 24 सालों से यानी राज्य गठन के दौर से अब तक अपनामित महसूस कर रहा हूं. कभी मुझ पर बसी सड़कों को खोदकर छोड़ दिया जा रहा… तो कभी मेरी अनदेखी हो रही…तो कभी जानबूझकर लोग मुझे संवारना नहीं चाह रहे हैं. मैंने राज्य को स्वास्थ्य, शिक्षा, राजनीति समेत कहीं दूसरे क्षेत्रों में ऐसे बड़े दिग्गज दिए, जिन्होंने हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया. शासन प्रशासन सरकारें सब यहीं से चलने लगीं. लेकिन दुर्भाग्य, मेरा विकास आज भी अधूरा है. कभी सीवरेज, अमृत मिशन, तो कभी कुछ और… मेरा अनवरत खुदाई जारी है. छलनी होना जैसे प्रारब्ध बन गया हो. लोग मुझे खोदापुर कहने लगे हैं. यह मेरा नहीं, बिलासपुर के उन लोगों का अपमान है जो बिलासपुर यानी मेरी गोद में रहकर पल रहे, बड़े हो रहे हैं. मेरे सीने पर बसी और जीवन रेखा बन चुकी अरपा का पानी पी रहे हैं. मैं कराह रहा हूं लेकिन मेरी चीख-पुकार सुनने वाला कोई नहीं! शायद यही कारण है कि पिछले 24 सालों से मेरा विकास अधूरा पड़ा है.” कुछ इस तरह नजरअंदाज किए जाने के बाद बिलासपुर का दर्द छलक पड़ता है.

अविभाजित बिलासपुर की 9 सीट, संभाग में डिप्टी सीएम से मंत्री तक हुए

छत्तीसगढ़ में जब से चुनाव शुरू हुए तब से बिलासपुर जिले से न सिर्फ मंत्री, बल्कि डिप्टी सीएम तक आए. विधानसभा चुनाव में बिलासपुर संभाग की 24 सीटें राजनीति का बड़ा केंद्र हैं और राज्य में सरकार बनने और बिगड़ने में इस जिले की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है. चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और संगठन के बड़े पदों पर बैठे लोग आते जाते रहे हैं और विकास का दावा करते रहे हैं, लेकिन हालात नहीं बदले हैं.

पैसों की कमी नहीं, इच्छा शक्ति कम

छत्तीसगढ़ कोल फील्ड्स लिमिटेड यानी एसईसीएल सबसे बड़ा एक ऐसा संस्थान है जो पूरे राज्य को बजट के तौर पर बूस्टर देने का काम कर रहा. कोयले, डिस्टिक माइनिंग फंड यानी डीएमएफ और सीएसआर के बजट अरबों के बजट से न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि दूसरे राज्यों में भी बड़े-बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े हो रहे हैं. रेल, सड़कें, संस्थाएं, सब बन रहीं. तो फिर शहर को संवारने में कोताही क्यों?

सबसे बड़ी समस्याएं

1. एयरपोर्ट है पर नाइट लैंडिंग नहीं: केंद्र और राज्य सरकार की सहमति के बाद यहां कुछ साल पहले एयरपोर्ट बनाया गया. लेकिन नाइट लैंडिंग की सुविधा आज तक शुरू नहीं हो पाई है. बिलासपुर के लोगों के संघर्षों के बाद विमान की सेवा शुरू तो हो गई है लेकिन कनेक्टिविटी कम है. बिलासपुर से प्रयागराज की फ्लाइट शुरू की गई. सरकारों ने बिलासपुर से दिल्ली और मुंबई को जोड़ने का दावा किया लेकिन प्रक्रियाएं अभी बाकी हैं.

2. रेलवे: ट्रेनों की धीमी चाल पूरे छत्तीसगढ़ को परेशान कर रही है. कोरोना के बाद से यात्री गाड़ियों की रफ्तार इतनी कम हो गई है कि लोग चाहकर भी समय पर अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. मुसाफिर कहते हैं हमें अब इसकी आदत पड़ गई है. क्या करें, रेलवे माल गाड़ियों पर ज्यादा फोकस कर रहा है जिसके चलते कुछ यात्री ट्रेनें कभी भी रद्द हो जाती हैं, तो कभी ट्रेनों का रूट बदल दिया जाता है. ऐसे में यह समस्या गंभीर होती जा रही है.

3. मेडिकल कॉलेज: राज्य गठन के कुछ साल बाद बिलासपुर को छत्तीसगढ़ आयुर्वेद विज्ञान संस्थान यानी सिम्स के रूप में एक बड़ा मेडिकल कॉलेज मिला. उम्मीद थी कि लोगों को बेहतर इलाज मिलेगा और डॉक्टर भी बनते चले जाएंगे. स्थिति यह है कि मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पास आज भी सीटों के हिसाब से संसाधनों की सुविधा नहीं है. 180 सीटों में सिर्फ 700 के करीब बेड हैं.

4. यूनिवर्सिटी: बिलासपुर जिले में तीन बड़ी यूनिवर्सिटीज हैं. सेंट्रल यूनिवर्सिटी, अटल यूनिवर्सिटी और पंडित सुंदरलाल शर्मा ओपन यूनिवर्सिटी. केंद्र को छोड़ दें तो अटल और ओपन यूनिवर्सिटी से संबद्ध कॉलेजों में छात्रों को पढ़ने की सुविधा न के बराबर है. बिलासपुर के कई कॉलेजों को ए ग्रेड की सुविधा तो मिली है लेकिन उनमें भी कमियां देखी जा सकती हैं.

5. हाई कोर्ट: बिलासपुर की न्यायधानी के तौर पर पहचान है, लेकिन जज की कमी के चलते कई अहम केस की पेंडेंसी है. सुनवाई की तारीख बढ़ती चली जा रही है. लोग न्याय की आस में हैं. शहर के विकास को लेकर 30 से अधिक जनहित याचिका के मामले लगे हैं और कई मामलों में कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है लेकिन अदालत की बीसियों तल्खी के बाद भी अफसर शहर सुधारने तैयार नहीं.  ट्रैफिक, प्रशासनिक कामकाज, सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर और स्टाफ की मनमानी, सड़कों की खुदाई, अरपा से रेत निकालने का मामला ठंडा पड़ा है. यही वजह है कि बिलासपुर पिछड़ रहा है.

6. सड़कें-पानी: शहर के चारों तरफ सड़कों का जाल बिछ चुका है. कनेक्टिविटी के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों ने काफी अच्छा काम किया है. लेकिन शहर की सड़क मरम्मत मांग रही है. कांग्रेस सरकार ने बिलासपुर जिले के विस्तार के लिए 18 पंचायत को शहर का हिस्सा बनाया. यानी 18 गांव निगम में शामिल किए गए. लेकिन आज तक उन 18 गांवों की तस्वीर नहीं बदली है. सड़क, नाली, पानी बिजली की सुविधा न के बराबर उपलब्ध करवाई गई है. हां, इन पंचायत से निगम टैक्स जरूर वसूल रहा लेकिन सुविधा कुछ भी नहीं दी जा रही है. लोग लगातार जनप्रतिनिधियों से मांग कर रहे हैं कि सड़कों को बनाने का काम हो और बुनियादी सहूलियतें दी जाएं. लेकिन अफसर और शासन-प्रशासन फिलहाल मामले को अनदेखा कर रहे हैं.

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