CG News: शिवरीनारायण में त्रिवेणी संगम पर बना नर-नारायण मंदिर, दिव्य रूप के दर्शन से मिलता है मोक्ष
प्रकाश साहू (जांजगीर)
CG News: जांजगीर जिले के शिवरीनारायण में माता शबरी की जन्मभूमि से जुड़ी कई रोचक कहानियां है. यहां माता शबरी ने प्रभु श्रीराम को जूठे बेर खिलाए थे. माता शबरी और भगवान नारायण के अटूट स्नेह को दर्शाने वाले नर-नारायण मंदिर की बड़ी मान्यता है और इसी मंदिर को भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान माना जाता है.
त्रिवेणी संगम पर बना नर-नारायण मंदिर
वहीं ऐसा भी माना जाता है कि भगवान के इस दिव्य रूप के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐतिहासिक और पुरातत्विक महत्व से परिपूर्ण इस मंदिर की क्या विशेषता है. ये तस्वीर है, जांजगीर-चाम्पा जिले की धार्मिक नगरी और माता शबरी की जन्मभूमि शिवरीनारायण की, जहां भगवान राम और भाई लक्ष्मण नर-नारायण के रूप में विराजमान हैं. यह मंदिर हिंदुओं का तीर्थस्थान है और भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान माना जाता है. शिवरीनारायण को गुप्त प्रयाग भी कहा जाता है, क्योंकि यहां महानदी, शिवनाथ नदी और जोंक नदी का त्रिवेणी संगम है और इसी के तट पर भगवान नर-नारायण का मंदिर बना हुआ है. भगवान नर-नारायण मंदिर में रोहणी कुंड है, जिसका जल कभी कम नहीं होता और हमेशा भगवान नर-नारायण का चरण अभिषेक होता रहता है. भगवान नर-नारायण के दर्शन के लिए छग के अलावा विदेशों से भी दर्शनार्थी पहुंचते हैं.
दिव्य दर्शन से मिला है मोक्ष
भगवान राम ने वनवास के दौरान छग में अधिक समय व्यतीत किया था और माता शबरी ने जूठे बेर खिलाएं थे. छग, माता कौशल्या की जन्मभूमि है, जिसके चलते छग में श्रीराम को भांजा का रूप माना जाता है. शिवरीनारायण का मंदिर समूह दर्शनीय है. शिवरीनारायण रामायण कालीन घटनाओं से जुड़ा हुआ है. यहां की स्थापत्य कला और मूर्तिकला बेजोड़ है. भगवान नर-नारायण मंदिर का निर्माण राजा शबर ने करवाया था. यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. माना जाता है भगवान के इस दिव्य रूप के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
यहां शबरी ने भगवान राम को खिलाए थे जूठे बेर
शिवरीनारायण वह पावनभूमि है, जहां माता शबरी ने जन्म लिया था. भगवान राम ने शबरी की तपस्या और अटूट स्नेह को देखते हुए प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया था और माता शबरी के जूठे बेर खाए थे. आज भी शबरी और राम के मिलन का ये पवित्र स्थान आस्था का केंद्र बना हुआ है. भगवान श्रीराम ने वनवास का अधिक समय छग में बिताया है, और मान्यता है कि यहां प्रभु श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. नर-नारायण मंदिर परिसर में एक पेड़ ऐसा है, जिसके पत्तों की आकृति दोने के सामान है. माता शबरी ने इसी दोने के पत्ते में बेर रखकर श्रीराम और लक्ष्मण को बेर खिलाए थे. इस वट वृक्ष का वर्णन सभी युगों में मिलने के कारण इसे कृष्ण वट के नाम से जाना जाता है. साथ ही, जो भी दर्शनार्थी आते हैं, वे इस कृष्ण वृक्ष के पत्तों को देखकर आश्चर्य चकित हो जाते हैं और निहारते रहते हैं. खासकर के माता शबरी से इसका नाता होने की वजह से यह बेहद खास हो जाता है. माता शबरी का जन्मस्थलीय होने की वजह से इस जगह का नाम शबरी-नारायण पड़ा, जो कालांतर में शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है.
भगवान नर-नारायण मंदिर लगभग ढाई से 3 हजार साल पहले बना है, जिसकी ऊंचाई लगभग 172 फीट है और सबसे खास बात यह है कि यह केवल 4 पत्थरों पर टिका हुआ है. मंदिर के गर्भगृह में रोहणी कुंड है और स्कन्द पुराण में इसका उल्लेख है. रोहणी कुंड की खासियत यह है कि कुंड जमीन से ऊपर है और इसका जल न तो कम होता है, ना ही अधिक होता है. साथ ही, जल कभी गंदा नहीं होता और हमेशा भगवान के चरण अभिषेक होता रहता है. रोहणी कुंड के जल को अक्षय जल भी कहा जाता है. मंदिर के पत्थरों में अद्भुत नक्कासी बनी हुई है और सबसे खास बात यह भी है कि मंदिर के गर्भगृह में आपको श्री यंत्र देखने को मिलेगा. जो गुम्माज पर बना हुआ है. श्री यंत्र भारत के गिने-चुने मंदिरों पर देखने को मिलता है, जो इसे और भी खास बनाता है.
माघ में लगता है 15 दिन का मेला
माघ में यहां 15 दिनों का मेला भी लगता है, जो छग का सबसे प्राचीन और बड़ा मेला है. महाशिवरात्रि के दिन मेले का समापन होता है. माघी पूर्णिमा के दिन यहां साधु संत शाही स्नान करते हैं. यहां बहुत दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ एक दिन के लिए शिवरीनारायण मंदिर में विराजते हैं और माघी पूर्णिमा के दिन ओड़िसा के पूरी के जगन्नाथ मंदिर का कपट बंद रहता है और भगवान जगन्नाथ को शिवरीनारायण मंदिर में भोग लगाया जाता है. जिसके चले माघ में श्रद्धालु लाखों की संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं, वहीं मंदिर त्रिवेणी संगम में होने की वजह से भगवान के दर्शन के बाद दर्शनार्थी नौका विहार का आनंद लेते हैं. इस तरह नाविकों को रोजगार का जरिया मिल गया है और उनका जीवनयापन हो रहा है.
3 सालों में बढ़ी श्रद्धालुओं की संख्या
पिछले तीन सालों में दर्शनार्थियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. 2024 में 15 से 20 लाख श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन किए, वहीं 2023 में यहां 8 से 10 लाख श्रद्धालु और 2022 में 6 से 8 लाख श्रद्धालुओं ने भगवान नर-नारायण के दर्शन किया है. यहाँ सैकड़ों नाव चल रही है. इससे नाविकों को रोजगार मिला है. इधर, व्यापारियों को भी व्यापार में लाभ हो रहा है. इन वर्षों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं, व्यापारियों का व्यापार बढ़ा है और विकास में तेजी आई है.
पुरातन धार्मिक नगरी शिवरीनारायण की मान्यता बड़ी है. नदियों के त्रिवेणी संगम की वजह से शिवरीनारायण की महत्ता और भी बढ़ जाती है. आज देश और दुनिया के पर्यटक शिवरीनारायण आते हैं और रामायणकालीन इतिहास को संजोए इस नगरी के ऐतिहासिकता को जानकर वे प्रभावित हुए नहीं रहते. यही वजह है कि धार्मिक नगरी शिवरीनारायण के बारे में जानने इतिहासकार और पुरात्ववेत्ता भी पहुंचते हैं. शिवरीनारायण शहर से लगे छग की काशी कहे जाने वाले खरौद नगरी में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के अनेक मंदिर हैं, इनमें मुख्य रूप से दुल्हादेव मंदिर, लक्ष्मणेश्वर मंदिर, शबरी मंदिर प्रसिद्ध है.