Chhattisgarh News: हाई कोर्ट ने मेरिट में शीर्ष स्थान आने के बाद भी पीएचडी से शोधार्थियों को वंचित करने के मामले में सुनवाई करते हुए गुरु घासीदास केन्द्रीय विवि पर 10 हजार का जुर्माना लगाते हुए, याचिकाकर्ता छात्राओं को नियमानुसार पीएचडी करने चयनित किये जाने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता सत्र 2024- 25 के लिये पंजीकृत होंगे, उन्हें ही दस हजार की राशि गुरु घासीदास विवि द्वारा दी जाएगी.
जानिए क्या है पूरा मामला?
अधिवक्ता पलाश तिवारी के माध्यम से प्रस्तुत याचिका में बताया गया कि वाड्रफनगर निवासी अंजली तिवारी और ज्योतिका ने गुरु घासीदास सेन्ट्रल युनिवर्सिटी के बायोटेक विभाग में इसी विषय पर पीएचडी करने लिखित परीक्षा और इंटरव्यू दिया. सिर्फ दो निर्धारित सीटों के लिये यह प्रक्रिया कराई गई जिसमें करीब 40 लोग शामिल हुए. यूजीसी के अनुसार लिखित परीक्षा में 70 और इंटरव्यू में 30 प्रतिशत निर्धारित थे. अंजलि ने इसमें टॉप किया ज्योतिका इसके बाद दुसरे स्थान पर रही. इसके बाद भी 11वे रैंक पर आई प्राची और 32वे रैंक पर आई शिवांगी का चयन कर लिया गया. इन दोनों को इंटरव्यू में 30 में से 30 और 29 अंक मिले थे, जबकि टॉप टेन पर रहे अभ्यर्थियों को 15 से अधिक अंक नहीं मिले , इस तरह जानबूझकर इतने अधिक अंक दिये गए.
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इसे लेकर पहले सिंगल बेंच में याचिका लगाई गई थी, यहाँ अपेक्षाकृत परिणाम नहीं मिलाने पर डिवीजन बेंच में अपील की गई. चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डीबी में एडवोकेट पलाश तिवारी ने तर्क दिया कि, दोनों परीक्षा के अंक प्रतिशत के आधार पर निकले जाते हैं , यह नहीं किया गया. यूजीसी का नियम प्रतिशत के लिये हैं, यहां विवि ने प्रतिशत को ही सीधे अंकों में बदला दिया. इसमें प्राप्त अंकों का पर्तिशत निकाला जाना था मगर इंटरव्यू में पूरे अंकों को ही प्रतिशत बनाया गया. विवि ने गलत प्रक्रिया अपनाई
हाई कोर्ट ने जारी किया नोटिस
सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि, विवि ने गलत प्रक्रिया अपनाई है. परसेंट और मार्क्स को निमानुसार लिया जाना था. इसके साथ ही डीबी ने गुरु घासीदास के कुलपति, डीन, विभाग एचओडी को नोटिस जारी कर दस हजार का जुर्माना आरोपित किया है.